राम नाम लेकर दो से 303 सीटों तक पहुंच गई बीजेपी, 35 साल में भगवा दल ने रच दिया इतिहास

बीजेपी की स्थापना के छह साल बाद यानी 1986 में लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष बने. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन छेड़ा. राम नाम बीजेपी के लिए वरदान बन गई. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 86 सीटों पर जीत दर्ज की.

By Pritish Sahay | December 25, 2023 9:02 PM

जनसंघ के जमाने से लेकर पीएम मोदी के नेतृत्व तक बीजेपी ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है. बीते 35 सालों में बीजेपी न सिर्फ भारत में सरकार चला रही है, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का भी दावा करती है. पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी का जो गौरवशाली वर्तमान दिख रहा है उसके पीछे अतीत का लंबा संघर्ष है, जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जनसंघ से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का लंबा संघर्ष रहा है. बीजेपी की सफलता की राह में राम नाम का सबसे बड़ा योगदान रहा है. शून्य से शिखर तक पहुंचने की बीजेपी का सियासी सफर काफी कठिनाइयों वाला रहा है. लेकिन हर बार बीजेपी के लिए राम नाम एक सहारा बना है.

यूं तो बीजेपी की स्थापना 1980 में हुई थी, लेकिन इसकी बुनियाद स्वतंत्रता सेनानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में ही भारतीय जनसंघ बनाकर कर दी थी. हालांकि उस राजनीतिक रूप से जनसंघ की कोई खास अहमियत नहीं थी. लेकिन कांग्रेस के वर्चस्व को कम करने के लिए जनसंघ को मजबूत करने का लगातार प्रयास किया जा रहा था. कहा जाता है कि जनसंघ की विचारधारा हिन्दू राष्ट्रवाद से काफी प्रभावित थी और इसी एजेंडे पर चलकर ये कांग्रेस के वर्चस्व को कम करने की कोशिश में जुटी थी. अपने स्थापना के समय से ही जनसंघ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरा साथ मिला था, जो आज भी जारी है. शुरूआती दिनों में जनसंघ की तीन मांगे थी. पहला पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करना. दूसरा गौ हत्या पर रोक लगे और तीसरा जम्मू-कश्मीर को दिए विशेष दर्जे को खत्म कर दिया जाए.

जनसंघ को नहीं मिल सका मुकाम
कांग्रेस से इतर जनसंघ लगातार राजनीति में अपना वजूद तलाश की कोशिश कर रही थी. लेकिन कांग्रेस की लोकप्रियता के सामने वो कहीं भी ठहर नहीं पा रही थी. चुनावों में पार्टी कुछ खास हासिल नहीं कर पाई. 1967 में जब दीनदयाल उपाध्याय जन संघ के महासचिव थे उस समय जनसंघ में दो नेताओं का प्रवेश हुआ. एक थे अटल बिहारी वाजपेयी और दूसरे थे लाल कृष्ण आडवाणी. इसी दौरान 1968 में अटल बिहारी वाजपेयी को जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया.

जनसंघ का जनता पार्टी में विलय
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लागू कर दिया. आपातकाल के खिलाफ जनसंघ ने आंदोलन छेड़ दिया. पार्टी के कई नेताओं को  गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. वहीं 1977 जब आपातकाल खत्म  हुआ तो देश में आम चुनाव की तैयारी शुरू हो गई. इस दौरान जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. कांग्रेस चुनाव हार गई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. जनता दल में विलय से जनसंघ को भी काफी फायदा मिला. अटल बिहारी वाजपेयी मोरारजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री बने.

बीजेपी की स्थापना
राजनीतिक गलियारों में बीजेपी की स्थापना जनसंघ के लिए युगांतकारी घटना मानी जाती है. 1980 के दौर में जब मोरारजी सरकार गिर गई. कांग्रेस के खिलाफ बड़ा आंदोलन विफल हो गया, इसी दौर में बीजेपी अस्तित्व में आया. 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी के नाम से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की गई. नये दल के पहले अध्यक्ष उस समय के युवा नेता अटल बिहारी वाजपेयी बने. 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में आम चुनाव हुए. इस चुनाव में कांग्रेस की बंपर जीत हुई. हालांकि सिर्फ दो सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.

बीजेपी ने शुरू किया राम मंदिर आंदोलन
कांग्रेस की प्रचंड जीत से इतर बीजेपी ने दो सीट जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी थी. इसी दौरान बीजेपी की स्थापना के छह साल बाद यानी 1986 में लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष बने. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन छेड़ा. राम नाम बीजेपी के लिए वरदान बन गई. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 86 सीटों पर जीत दर्ज की. 1991 के चुनाव में बीजेपी देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.  120 सीटों पर बीजेपी ने अपना परचम लहराया.

पहली बार अटल बने पीएम
राजनीतिक दल के रूप में बीजेपी का सियासी सफर की शुरुआत 1991 में ही हो गई थी. इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 161 सीटों पर जीत दर्ज किया. और देश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. पहली बार बीजेपी  देश में सरकार बनाई. गठबंधन सरकार के तहत अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. हालांकि पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण सदन में बाजपेयी विश्वास मत हासिल नहीं कर सके और सरकार 13 दिन में ही गिर गई. इसके बाद 1998 के चुनाव में पार्टी ने 182 सीटें जीतीं. गठबंधन एनडीए की स्थापना हुई और एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. इस बार वाजपेयी 13 महीने तक पीएम बने. लोकसभा में अल्पमत होने के कारण वाजपेयी सरकार गिर गई.बीजेपी लीड एनडीए सरकार गिरने के बाद 1999 में देश में मध्यावधि चुनाव कराये गये. हालांकि बीजेपी बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकी लेकिन इस बार अटल बिहारी वाजपेयी पूरे 5 साल तक पीएम बने रहे.

10 साल तक सत्ता से दूर रही बीजेपी
साल 2004 में देश में एक बार फिर आम चुनाव हुए. यह चुनाव बीजेपी ने अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे पर लड़ा. लेकिन चुनाव में बीजेपी को पराजय मिली. कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन ने चुनाव जीत लिया. तीन बार सत्ता का स्वाद चखने के बाद वाजपेयी विपक्ष में बैठे. हालांकि चुनाव में मिली का असर वाजपेयी की सेहत भी दिखने लगा था. इस दौरान लालकृष्ण आडवाणी आये. वहीं कांग्रेस पार्टी ने नेता मनमोहन सिंह को देश की पीएम बनाया गया.

2009 के चुनाव में फिर हार गई बीजेपी
इसके बाद साल 2009 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी जनता का विश्वास जीतने में पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी थी. केंद्र में एक बार फिर यूपीए की सरकार बनी. एक बार फिर मनमोहन सिंह सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने. लगातार दो बार की जीत से कांग्रेस का मनोबल काफी मजबूत दुआ.

बीजेपी की केंद्रीय राजनीति में मोदी का प्रवेश
साल 2014 से देश में मोदी युग की शुरुआत हुई. इससे पहले साल 2013 में गुजरात से निकलकर नरेंद्र मोदी केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हो हुए. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सपने को साकार करते हुए बीजेपी ने केंद्र में अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार किया. 282 सीटें जीतकर बीजेपी ने पहली बार केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाई. हालांकि सरकार में एनडीए सहयोगियों को भी शामिल किया गया.

Also Read: Look Back 2023: महुआ मोइत्रा से लेकर स्मृति ईरानी तक- बयान, विवाद और पद के कारण सुर्खियों में रहीं ये 5 नेता

303 सीटों पर बीजेपी की जीत
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पीएम मोदी का जादू भारत की जनता के सिर चढ़कर बोला. अपने दमदार नेतृत्व की क्षमता के कारण एक बार फिर लोगों ने बीजेपी और पीएम मोदी के सिर ताज रख दिया. बीजेपी ने 303 सीटों पर जीत दर्ज की. 35 साल के सियासी सफर में बीजेपी ने अर्श से फर्श तक का सफर तय किया है. 

Next Article

Exit mobile version