EXCLUSIVE: एनजीटी ने जिसे बैन किया, उसी रैट होल माइनिंग ने दिया 41 श्रमिकों को जीवनदान, जानें इसकी डिटेल
कोल इंडिया के सीसीएल में काम कर चुके वीके जायसवाल ने कोयला खनन में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि तीन तरीके से माइनिंग होती है- वर्टिकल, इन्क्लाइंड और क्यूबिकल.
भारत में जिस रैट होल माइनिंग को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने करीब नौ साल पहले बैन कर दिया, उसी तकनीक ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुए टनल हादसे में फंसे 41 श्रमिकों की जिंदगी बचाई. माइनिंग की इस तकनीक के बारे में प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) की टीम ने सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के रिटायर्ड इंजीनियर विजय कुमार जायसवाल से बातचीत की. इंजीनियर ने उत्तरकाशी के सिल्कियारा में 17 दिन तक चले ऑपरेशन के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि अमेरिका से मंगाए गए ऑगर ड्रिलिंग मशीन से लोगों को काफी उम्मीदें थीं. टनल के मलबे के दूसरी ओर फंसे श्रमिकों तक इंजीनियर पहुंचने ही वाले थे कि बीच में चट्टानों में सरिया का गुच्छा मिल गया, जिसकी वजह से मशीन के पंखे ही टूट गए. दोबारा मशीन को चलाया गया, लेकिन वह भी कारगर साबित नहीं हुआ. विजय कुमार जायसवाल ने बताया कि रेस्क्यू टीम एक साथ कई विकल्प पर काम कर रही थी. जब ऑगर ड्रिलिंग मशीन और अमेरिकी एक्सपर्ट को लोगों को बाहर निकालने में सफलता नहीं मिली, तो वर्टिकल ड्रिलिंग भी शुरू कर दी गई. इसी बीच, वहां मौजूद एक्सपर्ट्स की टीम में से किसी इंजीनियर को रैट माइनिंग का आइडिया आया. भारत की इसी तकनीक ने काम किया और टनल में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सका.
अत्याधुनिक तकनीक फेल, तब काम आई रैट माइनिंग
कोल इंडिया के सीसीएल में काम कर चुके वीके जायसवाल ने कोयला खनन में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि तीन तरीके से माइनिंग होती है- वर्टिकल, इन्क्लाइंड और क्यूबिकल. कोयला निकालने के मामले में वर्टिकल और क्यूबिकल माइनिंग काफी सफल है, लेकिन अगर बात किसी राहत अभियान की हो, तो इसमें इन्क्लाइंड माइनिंग, जिसे रैट माइनिंग भी कहा जाता है, ही सबसे उपयुक्त है. उन्होंने कहा कि तमाम अत्याधुनिक मशीन जब मजदूरों को सुरक्षित निकालने में फेल हो गए, तब भारतीय तकनीक ही काम आई. उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ी सफलता है. इतने लोगों की जिंदगी बचाने के लिए भारत के इंजीनियरों ने जो कर दिखाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है.
2014 में रैट माइनिंग पर एनजीटी ने लगाया था प्रतिबंध
बता दें कि वर्ष 2014 में एनजीटी ने रैट माइनिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था. एनजीटी का कहना था कि यह पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक है. साथ ही इंसान की जिंदगी को भी खतरे में डालता है. इसलिए इसलिए इस तकनीक से कोयला खनन पर रोक लग गई. बता दें कि पूर्वोत्तर के राज्यों में रैट माइनिंग काफी लोकप्रिय है. इसमें खर्च काफी कम आता है. इस तरीके में खनन श्रमिक जमीन खोदते हुए आगे बढ़ते जाते हैं और मिट्टी और अन्य मलबे को पीछे की ओर फेंकते जाते हैं.