Ratan Tata: भारत ने अपने ‘रतन’ मशहूर उद्योगपति रतन टाटा को गुरुवार को भावभीनी विदाई दे दी. उनका अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. टाटा से जुड़ी कई तरह की खबरें सामने आ रहीं हैं. इस बीच एक खबर उनके अखबार से जुड़ाव को लेकर आई है. दरअसल, दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपति के निधन ने उन्हें अखबार देने वाले हॉकर हरिकेष सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी कोराना काल है या टाटा का इस दुनिया से चले जाना?
39 साल के हरिकेष को बुधवार तक लगता था कि वैश्विक महामारी कोविड-19 उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी. लेकिन अब वह उससे भी ज्यादा दुखी है. दरअसल, संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान उसका अखबार वितरण का कारोबार बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हुआ था और लंबे समय तक उसे परेशानी का सामना करना पड़ा था.
कितना अखबार पढ़ते थे रतन टाटा?
कम से कम 14 अखबार लेने वाले पसंदीदा ग्राहक (रतन टाटा) के निधन की खबर सुनने के बाद हरिकेष को सोचना पड़ रहा है कि उसके लिए जीवन की सबसे बड़ी त्रास्दी क्या है? कोविड-19 महामारी या रतन टाटा का निधन…करीब दो दशक से अधिक समय तक टाटा के घर में अखबार देने वाले हॉकर ने कहा कि वह एक बहुत अच्छे इंसान थे. गरीबों के लिए वे किसी मसीहा से कम नहीं थे. उसने बताया कि साल 2001 में टाटा के घर में अखबार देना उसने शुरू किया था. उस वक्त टाटा कोलाबा की बख्तावर के एक अपार्टमेंट में रहते थे. कुछ सालों के बाद वह इसी इमारत के बगल में एक निजी बंगले ‘हलकाई’ में रहने लगे थे. हरिकेष ने कहा कि उसकी आंखों के सामने आज भी वह दृश्य घूम रहा है, जब टाटा सुबह अपने बंगले के गार्डन में बैठकर मुस्कराहट के साथ उसका दिया अखबार पढ़ते थे.
जब टाटा ने की 5 लाख की मदद की
गुरुवार को हरिकेष ने अखबार बांटने का काम जल्दी खत्म किया. इसके बाद वह टाटा को अंतिम विदाई देने के लिए कोलाबा बाइलेन पहुंचा, जहां हजारों लोग पहले से मौजूद थे. उसने बताया कि टाटा हाथ हिलाकर उसका अभिवादन स्वीकार करते, यही नहीं कई बार ऐसा हुआ कि उन्होंने उसका हालचाल भी पूछा. उसने बताया कि कुछ साल पहले उसके एक रिश्तेदार को कैंसर हो गया. जब टाटा को यह बात पता चली तो उन्होंने टाटा मेमोरियल अस्पताल को पत्र लिखकर उसका त्वरित उपचार सुनिश्चित करने को कहा, साथ ही उसे 5 लाख रुपये की आर्थिक मदद भी दी.