मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और ज्योतिरादित्य के बीच बिगड़ने लगे थे रिश्ते

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी द्वारा पार्टी में तवज्जो नहीं देने के बाद कांग्रेस और सिंधिया के बीच अनबन शुरू हो गयी थी.

By Pritish Sahay | March 12, 2020 5:42 AM

मध्य प्रदेश में मचे सियासी घमसान के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया बुधवार को भाजपा में शामिल हो गये. हालांकि, उनके भाजपा में शामिल होने की पटकथा पिछले कई महीनों से लिखी जा रही थी. मप्र विस चुनाव के बाद सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी द्वारा पार्टी में तवज्जो नहीं देने के बाद कांग्रेस और सिंधिया के बीच अनबन शुरू हो गयी थी.

दोनों के बीच रिश्ते उस समय ज्यादा बिगड़ गये, जब कमलनाथ को सीएम बनाया गया. अटकलें थीं कि सिंधिया डिप्टी सीएम बनाये जा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 2019 लोस चुनाव में सिंधिया को गुना से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी उनकी दावेदारी कमजोर हो गयी और इस पद पर कमलनाथ विराजमान रहे. इसके बाद सिंधिया ने राजनीतिक रास्ता तलाशना शुरू कर दिया.

बताया जा रहा है कि सिंधिया के ससुराल पक्ष से बड़ौदा राजपरिवार की महारानी राजमाता शुभांगिनी देवी गायकवाड़ ने ज्योतिरादित्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मध्यस्थता कराने में अहम भूमिका निभायी है. सूत्र ने बताया कि राजमाता शुभांगिनी देवी ने सिंधिया और मोदी के बीच बातचीत का रास्ता तैयार किया. उन्हीं की बदौलत सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये. दरअसल, ज्योतिरादित्य की पत्नी प्रियदर्शनी गायकवाड़ राजघराने से हैं. बड़ौदा की महारानी का पीएम मोदी अत्यधिक सम्मान करते हैं और उनसे उनके अच्छे संबंध हैं.

ऑपरेशन लोटस पांच महीने में हुआ पूरा

सिंधिया को पार्टी में शामिल कराने का काम भाजपा ने अपने प्रवक्ता जफर इस्लाम को सौंपा. इस्लाम ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभायी और ‘ऑपरेशन लोटस’ को करीब पांच महीने में पूरा कर दिया. इसकी पुष्टि बुधवार को उस समय हुई, जब सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से पहले जफर खुद उनसे मिलने दिल्ली स्थित उनके निवास पर पहुंचे. इसके बाद इस्लाम उन्हें उनकी ही गाड़ी में लेकर भाजपा मुख्यालय पहुंचे. बताया जा रहा है कि जफर और सिंधिया के रिश्ते पुराने हैं. हाल ही में सिंधिया और जफर की पांच बैठकें हुई थीं. खुद सिंधिया ने भाजपा में आने की पेशकश की थी.

गांधी परिवार के मित्र व वफादार रहे सिंधिया

सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना गांधी परिवार के लिए हाल के वर्षों में किसी अन्य नेता के पार्टी से निकलने के मुकाबले कहीं अधिक पीड़ादायक है. सिंधिया एक वफादार कांग्रेसी नेता भर ही नहीं थे, बल्कि वह राहुल और प्रियंका के लिए परिवार के एक सदस्य जैसा बन गये थे. वह कांग्रेस के उन युवा नेताओं में शुमार रहे हैं, जिनके साथ राहुल सहजता महसूस करते थे और संसद में अधिकांश समय दोनों को एक साथ देखा जाता था. सिंधिया से राहुल की मित्रता उनके कांग्रेस में शामिल होने से पहले की है. वह देहरादून के दून स्कूल में राहुल के सहपाठी थे. अपनी दादी और पिता के विपरीत ज्योतिरादित्य ने कभी कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ा था. इस कारण भी उन्हें गांधी परिवार का स्नेह हासिल था.

डीके को कर्नाटक, अनिल को दिल्ली की कमान

कर्नाटक के पूर्व मंत्री डीके शिवकुमार को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. वहीं, अनिल चौधरी को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी का नया अध्यक्ष बनाया गया है. ईश्वर खंडरे, सतीश झारकीहोली, सलीम अहमद को कर्नाटक में कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है.

कांग्रेस के ‘महाराज’ से भाजपा नेता तक का सफर, 31 साल की उम्र में पहली बार सिंधिया बने सांसद

दिल्ली : ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता माधव राव सिंधिया की 30 सितंबर, 2001 को एक हादसे में मौत हो गयी. माधव राव सिंधिया गुना से सांसद थे. इसके बाद दिसंबर, 2001 में ज्योतिरादित्य आधिकारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हुए और 2002 में गुना सीट से ही उपचुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे.

मुख्यमंत्री बनने का सपना

केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद ज्योतिरादित्य मप्र में सक्रिय हुए. 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी. चुनाव से लगभग एक साल पहले कमलनाथ की एंट्री हुई और वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बन गये. इसके बावजूद ज्योतिरादित्य लगे रहे और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई.

राहुल ने सिंधिया को मनाया था

मध्य प्रदेश में सीएम बनने के लिए कमलनाथ और सिंधिया दोनों ने जोर लगाया. राहुल गांधी सिंधिया को ही सीएम बनाना चाहते थे, लेकिन सोनिया गांधी का हाथ कमलनाथ के सिर पर था. आखिर में राहुल गांधी ने सिंधिया को मनाया और कमलनाथ सीएम बन गये. उस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उप मुख्यमंत्री सीएम बनने से इंकार कर दिया.

लोकसभा चुनाव में हार और सिंधिया की नाराजगी

2019 लोस चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य मप्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे. यह पद तो उन्हें नहीं मिला, लेकिन उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया. पूर्वी यूपी में सिंधिया ने काम भी किया, लेकिन वह एक भी सीट नहीं जिता सके. खुद गुना से हार गये. इसके बाद सिंधिया खुद को किनारे महसूस करने लगे. इसके बाद अपने ट्विटर बायो से कांग्रेस का नाम हटा दिया.

राज्यसभा चुनाव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद

लंबे समय से ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने कभी उन्हें भाव नहीं दिया. इस महीने राज्यसभा के चुनाव होने हैं. ज्योतिरादित्य खुद के लिए एक सीट चाहते थे, लेकिन कांग्रेस उन्हें भाव नहीं दे रही थी. इसको लेकर सिंधिया, कांग्रेस से नाराज हो गये और उन्होंने बड़ा फैसला ले लिया.

दादी विजयाराजे के नक्शे कदम पर चल कर सिंधिया ने की ‘घर वापसी’

भोपाल. ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना और भाजपा में शामिल होना दादी विजयाराजे सिंधिया के नक्शे कदम पर चलते हुए ‘घर वापसी’ करने जैसा है. सिंधिया की बुआ वसुंधरा राजे (राजस्थान की पूर्व सीएम) और यशोधरा राजे सहित समूचा ग्वालियर शाही परिवार अब भाजपा के खेमे में हैं.

यशोधरा ने कहा कि सिंधिया के लिए यह घर वापसी जैसा है. उन्होंने लंबे समय तक अपने खुद के राजनीतिक मार्ग का अनुसरण किया है. उनकी दिवंगत दादी विजयाराजे सिंधिया 1967 में जनसंघ की संस्थापक रही थीं. उनके पिता ने 1980 में कांग्रेस में शामिल होने से पहले 1971 में जनसंघ से राजनीति में पदार्पण किया था. बाद में, माधवराव ने 1996 में कांग्रेस छोड़ दी थी. हालांकि, बाद में उन्हें मना लिया गया था.

राजमाता ने 52 साल पहले गिरायी थी मप्र की कांग्रेस सरकार, तोड़ दिये थे 36 विधायक

मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार 52 साल पुराने इतिहास को दोहरा रहा है. 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वजह से कांग्रेस मप्र की सत्ता से बेदखल हुई थी और अब उनके पोते ज्योतिरादित्य की वजह से कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

दरअसल, ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता विजयाराजे देश के प्रथम प्रधानमंत्री और राहुल के परनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहुत करीबी थीं. विजयाराजे ने अपना राजनीतिक जीवन 1957 में कांग्रेस से शुरू किया था. 1967 में लोकसभा एवं मप्र विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए थे. राजमाता इस सिलसिले में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा से मिलने गयी थीं, मिश्रा ने उनको दो घंटे प्रतीक्षा करवायी और तब उनसे मुलाकात की. इससे वह खफा हो गयीं और उन्होंने कांग्रेस ही छोड़ दी थी.

इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के चुनाव चिह्न पर लोकसभा चुनाव लड़ीं और जीतीं, लेकिन कुछ ही दिनों बाद राज्य की राजनीति करने के लिए उन्होंने सांसद के पद से त्यागपत्र दे दिया और भारतीय जनसंघ में शामिल होकर मध्यप्रदेश की करेरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनीं. इसके बाद उन्होंने उसी साल मिश्रा की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभायी. उन्होंने कांग्रेस के 36 विधायक तोड़े और गोविंद नारायण सिंह को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री बनवाया.

जीवन परिचय

नाम : ज्योतिरादित्य सिंधिया

जन्म : 1 जनवरी, 1971 (मुंबई में)

शिक्षा : 1993 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक. 2001 में स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए.

शादी : 1994 में बड़ौदा के गायकवाड़ घराने की प्रियदर्शिनी से हुई. उनका एक बेटा महाआर्यमन और बेटी अनन्याराजे हैं

राजनीतिक जीवन : 2002 में गुना से सांसद बने और 2019 तक यहां से सांसद रहे. यूपीए सरकार में मंत्री भी बने.

जम्मू-कश्मीर तक होगा असर

सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का असर आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर के डोगरा शाही परिवार के राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ सकता है. सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने पर जिस ढंग से उनके बहनोई विक्रमादित्य सिंह द्वारा ट्वीट किये गये हैं, उससे अटकलें तेज हो गयी हैं.

उन्होंने ट्वीट किया कि कांग्रेस ने अपना एक कद्दावर युवा नेता खो दिया है. यह दुख की बात है कि उन जैसे (सिंधिया) एक समर्पित नेता द्वारा दिये गये योगदान के लिए उन्हें पुरस्कृत करने की जगह उन्हें नजरअंदाज किया गया. पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. कांग्रेस नेता कर्ण सिंह के बड़े पुत्र विक्रमादित्य हैं.

कांग्रेस और सिंधिया के बीच ऐसे बनी दूरी

मध्य प्रदेश विस चुनाव में कांग्रेस ने सिंधिया का प्रचार के रूप में इस्तेमाल किया था, लेकिन कमलनाथ को सीएम बनाया.

लोस चुनाव के बाद सिंधिया ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी की थी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने भाव नहीं दिया.

सिंधिया ने भोपाल स्थित बंगला मांगा, लेकिन वह कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को दे दिया गया.

25 नवंबर, 2019 को सिंधिया ने ट्विटर पर प्रोफाइल से कांग्रेस का नाम हटा दिया. केवल जनसेवक व क्रिकेट प्रेमी लिखा.

14 फरवरी, 2020 को सिंधिया ने कहा कि यदि वचन पत्र की मांग पूरी नहीं हुई, तो वे सड़क पर उतरेंगे. इस पर कमलनाथ ने कहा- ऐसा है, तो उतर जाएं.

समझने में गलती हुई कि सिंधिया कांग्रेस छोड़ देंगे : दिग्विजय

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने विधानसभा में कमलनाथ सरकार के बहुमत साबित करने का विश्वास जताया है. उन्होंने दावा किया कि 22 बागी विधायकों में 13 ने कांग्रेस नहीं छोड़ने का भरोसा दिया है. कहा कि कांग्रेस नेताओं से यह समझ पाने में गलती हुई कि सिंधिया कांग्रेस छोड़ने जैसा कदम उठा सकते हैं.

कांग्रेस ने उन्हें क्या नहीं दिया. चार बार सांसद बनाया, दो बार केंद्रीय मंत्री बनाया और कार्य समिति का सदस्य बनाया. उन्होंने दावा भी किया कि सिंधिया के भाजपा में जाने का षड्यंत्र तीन महीने से चल रहा था और वह कैबिनेट मंत्री बनने की ‘अतिमहात्वाकांक्षा’ के चलते भाजपा में शामिल हुए हैं.

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