Republic Day 2022: स्वर्णिम भविष्य की ओर भारतीय गणतंत्र की अनवरत यात्रा, पढ़ें ये खास लेख

Republic Day 2022: आज हम अपना 73वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं. तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए भारत ने बीते 73 वर्षों में कई उपलब्धियां हासिल की. इस विशेष अवसर पर पढ़ें ये खास आलेख

By Prabhat Khabar News Desk | January 26, 2022 8:27 AM

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के वर्ष में राष्ट्र इस बार गणतंत्र दिवस मना रहा है. यह अवसर भारतीय गणराज्य की बहत्तर वर्षों की उपलब्धियों का उत्सव तो है ही, भविष्य को सजाने-संवारने के संकल्प के नवीनीकरण का भी दिवस है. अनगिनत सेनानियों के त्याग एवं बलिदान से हासिल की गयी स्वतंत्रता को स्थायी आधार देनेवाले भारतीय संविधान के आदर्शों और मूल्यों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर भी है गणतंत्र दिवस. साम्राज्यवादी शक्तियों से स्वाधीनता प्राप्त करनेवाले अधिकतर राष्ट्र लोकतांत्रिक व्यवस्था को उचित रूप से अंगीकार नहीं कर सके, परंतु भारत सात दशकों से न केवल संविधान के अनुसार लोकतंत्र को जी रहा है, बल्कि उसे उत्तरोत्तर गहन बनाता जा रहा है. इस कारण भारत आज विश्व के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित है. पढ़ें जेएस राजपूत (शिक्षाविद एवं पूर्व निदेशक एनसीईआरटी) से खास बातचीत

वर्ष 1960 के बाद बहुधा एक चर्चा होती थी कि भारत में गणतंत्र ने अपनी जड़ें जमा ली हैं. हम सब विश्वविद्यालयों में थे और हमें यह अच्छा लगता था. हमारे यहां जिस तरह से सरकार बनती और बदलती थीं, जिस तरह से नेता चुने जाते थे, उससे जनता और उसके द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के बीच परस्पर विश्वास का वातावरण था. ज्यादातर नेता उस समय ऐसे थे, जो अपनी संपत्ति के लिए नहीं, बल्कि अपने त्याग के लिए जाने जाते थे.

मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, नेताओं के बारे में चर्चा होती थी कि किसने कितना बड़ा त्याग किया. बड़े स्तर पर जो नाम आते थे, उनमें सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित करते थे डॉ राजेंद्र प्रसाद. गांधी जी जब चंपारण गये थे, तो उस समय कहा जाता था कि डॉ राजेंद्र प्रसाद की बहुत बड़ी प्रैक्टिस थी. उस समय वे बड़े नामी वकील थे. लेकिन, उन्होंने गांधी जी का मुंशी बनना स्वीकार किया. वही राजेंद्र प्रसाद 12 साल राष्ट्रपति रहने के बाद जब पटना वापस गये, तो उनके पास रहने की जगह नहीं थी. वे सीलन भरे एक कमरे में रहे. जयप्रकाश नारायण ने उस कमरे को देखा, तो उन्हें बहुत कष्ट हुआ. यह त्याग का एक उदाहरण है. समझ सकते हैं कि ऐसे व्यक्ति के प्रति लोगों के मन में कितनी बड़ी श्रद्धा थी.

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अनेक महान लोगों के उदाहरण दिये जा सकते हैं. आज जब हम गणतंत्र भारत के 75वें साल का जश्न मना रहे हैं, तो अगर कोई पूछे कि हमारे देश में जनतंत्र की जड़ें मजबूत हुईं या कमजोर, तो मुझे इसका उत्तर देने में निराशा होगी. आज हम नहीं कह सकते कि जनता और तंत्र के बीच में, जनता और उसके द्वारा सत्ता में भेजे गये लोगों के बीच में, वैसी पारस्परिकता बची है, जो प्रारंभ में हमारे नेताओं ने इस देश में स्थापित की थी. आज चुनाव को लेकर हर तरफ चर्चा हो रही है. मुझे आश्चर्य है कि देश की बड़ी-बड़ी समस्याओं पर चर्चा नहीं होती. अभी मेवात में एक व्यक्ति ने कोर्ट में मुकदमा किया है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया. उसने कहा कि मेरी बच्ची जिस विद्यालय में पढ़ती है, वहां कक्षा छह से आठ तक के लिए पिछले पांच साल से केवल एक अध्यापक है. उसके लिए शिक्षा के अधिकार का कोई मतलब नहीं है. ऐसी स्थिति क्यों बनी है, बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की व्यवस्था तक नहीं है.

देश में एक लाख से अधिक ऐसे स्कूल हैं, जहां एक अध्यापक की नियुक्ति की गयी है. देश में 10 से 11 लाख अध्यापकों के पद रिक्त हैं. हमने स्पेस रिसर्च, हथियार बनाने और नाभिकीय ऊर्जा आदि क्षेत्रों में प्रगति की है. हमने आईआईटी, आईआईएम बनाये हैं, क्या हम देश के प्रत्येक बच्चे के लिए स्कूल उपलब्ध नहीं करा सकते थे? हम कर सकते थे, लेकिन हमारी राजनीति में नकारात्मकता इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि जो सकारात्मक कार्य संभव हैं, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता. देश की अनेक समस्याएं हैं, जिन पर सभी राजनीतिक दलों को एक हो जाना चाहिए. अगर वे जनतंत्र का मूल अर्थ और उसकी आत्मा को समझते, तो यहां विरोधाभास का कोई प्रश्न नहीं होता. गरीबों के लिए मकान और शौचालय बनाने जैसे विषयों पर सभी दलों को एक मत हो जाना चाहिए.

पूर्ववर्ती सरकारें भी जब ऐसी योजनाओं को आगे बढ़ाती थीं, तो कई राज्य सरकारें विरोध में खड़ी हो जाती थीं. यह देशहित में नहीं है, यह विरोध लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है. राजनीति और चुनावों को प्राथमिकता देकर अनेक दलों ने लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास किया है. व्यक्तिगत स्वार्थ इतना अधिक हावी हो गया है कि इससे राष्ट्रीय महत्व की चीजें कमजोर हो जाती हैं.

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आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. हमने इन 75 वर्षों में बहुत कुछ हासिल किया है. लेकिन, सबसे बड़ी कमी है कि हम बच्चों की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. उसका कारण केवल राजनीति है. केवल विरोध करने के लिए राजनीति नहीं होनी चाहिए. पुलवामा घटना के बाद एयर स्ट्राइक की गयी थी, उस पर भी हमारे नेताओं ने राजनीति शुरू कर दी थी. यह देखना कष्टदायक था. हमने 1962 के उस दौर को देखा, जब देश हित में पूरा विपक्ष और देश की जनता सरकार के साथ थी. ऐसा ही 1965, 1971 में देखा गया. लेकिन, पुलवामा जैसी घटना को लेकर शर्मनाक बयान दिये गये, सर्जिकल स्ट्राइक पर भी सवाल किये गये. ऐसी बातें, राष्ट्र से प्रेम करनेवाले किसी भी व्यक्ति के लिए कष्टदायी हैं.

ऐसी मानसिकता क्यों बढ़ रही है. इसका सबसे बड़ा कारण नैतिकता में लगातार कमी होना. कहा जाता है कि जिस राह पर अग्रणी लोग चलते हैं, उसी का लोग अनुसरण करते हैं. मैंने कृपलानी जी, लोहिया जी को देखा, गांधीवाद को मैंने विश्वविद्यालयों में रहकर समझने की कोशिश की. जेपी ने जिन्हें तैयार किया, उनमें सब के सब आज इसलिए जाने जाते हैं कि किसने कितनी संपत्ति अर्जित की.

देश में नैतिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए जरूरी है कि नागरिक समाज आगे आये. डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, समाजसेवी लोग इसमें रचनात्मक भूमिका निभा सकते हैं. एनसीइआरटी की जो पुस्तकें बनायी जा रही हैं, उनका लक्ष्य ऐसी पीढ़ी तैयार करने का हो, जो देश की संस्कृति से परिचित हो, देश से प्रेम करती हो और इस देश की विशेषताओं को जानती हो. देश में हर व्यक्ति को अपने धर्म और आस्था को मानने का अधिकार है. इस देश में धर्म परिवर्तन, खासकर लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने की संस्कृति नहीं थी. समाज में वैमनस्यता को रोकने के लिए जरूरी है कि अध्यापकों का आचरण सही हो. हमारे जनप्रतिनिधियों का आचरण अनुकरणीय हो. जेपी जैसा व्यक्ति जब आगे आया, तो लोग जुड़े, मगर साथ नहीं रह सके और वह आंदोलन बिखर गया.

नैतिकता और मानवीयता के मूल्यों की स्थापना से ही हमारा लोकतंत्र मजबूत होगा. लोकतंत्र हमारे स्वभाव में रहा है. हम वैशाली और लिच्छवी गणराज्यों की बात करते हैं. वह हमें अपने बच्चों को बताने की जरूरत है. गांधीजी की शिक्षा का जितना हो सके, प्रचार-प्रसार करना चाहिए. देश का तभी विकास हो सकता है, जब पंक्ति में खड़ा अंतिम व्यक्ति एक सम्मानपूर्ण जीवन जी सके. बीते 75 वर्षों में गरीबी चिंताजनक रही है, वहीं देश में अरबपतियों-खरबपतियों की संख्या भी बढ़ती गयी है. गरीबी-अमीरी के अंतर को पाटने की जरूरत है. इसके लिए युवा पीढ़ी आगे आकर उल्लेखनीय भूमिका निभा सकती है. हमें सक्षम और योग्य युवा पीढ़ी तैयार करने की जरूरत है.

(ब्रह्मानंद मिश्र से बातचीत पर आधारित)

Posted By : Amitabh Kumar

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