‘सम्मान अपने आप आना चाहिए, मांगा नहीं जाना चाहिए’ हाई कोर्ट में अधिकारियों के तलब पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि हाई कोर्ट (High Court) द्वारा अधिकारियों का बार-बार तलब किये जाने पर नाराजगी जतायी है और कहा है कि अदालतों के प्रति सम्मान अपने आप आना चाहिए, इसे मांगा नहीं जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को बार-बार तलब करने से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन की जो रेखा है, उसे लांघना पड़ता है. सीएनएन-न्यूज 18 की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर हाई कोर्ट को कई सलाह दिये हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 10, 2021 10:53 AM

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि हाई कोर्ट (High Court) द्वारा अधिकारियों का बार-बार तलब किये जाने पर नाराजगी जतायी है और कहा है कि अदालतों के प्रति सम्मान अपने आप आना चाहिए, इसे मांगा नहीं जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को बार-बार तलब करने से न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन की जो रेखा है, उसे लांघना पड़ता है. सीएनएन-न्यूज 18 की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर हाई कोर्ट को कई सलाह दिये हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने केस का जिक्र किया, जिसमें शक्तियों के विभाजन की रेखा पार करने की कोशिश हुई थी. कोर्ट ने कहा कि जजों को अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए. उनमें दयालुता और विनम्रता का भाव होना चाहिए, न कि शासकों की तरह बर्ताव करना चाहिए. न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह टिप्पणी की.

सुप्रीम कोर्ट ने सेवा के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ की एकल पीठ और खंडपीठ के फैसलों को रद्द कर दिया गया. हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि उत्तराखंड के एक स्थान से 6 मार्च, 2002 को तबादला किये जाने के बाद से 13 साल तक राज्य के बदायूं में अपने कार्यस्थल पर नहीं जाने वाले डॉक्टर मनोज कुमार शर्मा का पिछला 50 प्रतिशत वेतन दिया जाए.

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पीटीआई भाषा के मुताबिक जस्टिस गुप्ता ने इस मामले में फैसला लिखते हुए कहा कि कुछ हाई कोर्ट में अधिकारियों को तत्काल तलब करने और प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव बनाने का चलन विकसित हो गया है. जस्टिस गुप्ता के पीठ ने कहा कि अधिकारी भी सरकार के ही एक अंग के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के फैसले या कार्रवाई उनके खुद के फायदे के लिए नहीं होते, बल्कि प्रशासन के हित में तथा सरकारी कोष के संरक्षक के रूप ही होते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो न्यायिक फैसले न्यायिक समीक्षा में खरे नहीं उतरते हैं, वैसे फैसलों को रद्द करने का अधिकार हाई कोर्ट के पास हमेशा से है. ऐसे में बार-बार अधिकारियों को तलब करना बिल्कुल उचित नहीं है. इसकी कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा है कि अधिकारियों को बार-बार न्यायालय में सशरीर उपस्थित होने का आदेश देने से उनके काम-काज पर इसका प्रभाव पड़ता है.

Posted By: Amlesh Nandan.

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