नदियां बचाओ-देश बचाओ, यमुना जी बचाओ-दिल्ली बचाओ के उद्घोष से शुरू होगा नदी संवाद

पिछले 500 वर्षों में ‘मानव केंद्रित विकास’ की अवधारणा पर चलकर ‘जलवायु परिवर्तन’ रूपी ऐसा भीषण संकट खड़ा हो गया है, जिसने मानव सहित संपूर्ण जीव-जगत सृष्टि के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2022 7:00 PM

नयी दिल्ली: नदियां बचाओ- देश बचाओ, यमुना जी बचाओ-दिल्ली बचाओ के उद्घोष के साथ 12 अप्रैल 2022 को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ‘नदी संवाद’ (River Dialogue) सम्मलेन आयोजित हो रहा है. ‘नदी संवाद’ (Nadi Samvad) केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि एक लंबे आंदोलन (Movement) का आगाज है.

कोरोना संकट की वजह से लगाये गये लॉकडाउन के दौरान में गोविंदाचार्य ने अपने सहयोगियों के साथ गंगाजी, नर्मदाजी और यमुना जी की अध्ययन यात्रा की थी. 1 सितंबर से 2 अक्टूबर 2020 तक श्रीराम तपस्थली (ऋषिकेश से ऊपर) से गंगासागर तक की गंगा यात्रा हुई थी. नर्मदा की यात्रा 19 फरवरी 2021 को अमरकंटक से प्रारंभ होकर 17 मार्च 2021 को अमरकंटक में संपन्न हुई. यमुना यात्रा विकास नगर (उत्तराखंड) से 28 अगस्त 2021 को शुरू होकर 15 सितंबर 2021 को प्रयागराज में संपन्न हुई.

नदियों की दशा का अध्ययन

भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली इन तीन नदियों की यात्रा ने नदियों की वर्तमान दशा को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर दिया, तो इन नदियों के आसपास बसे आम समाज एवं संत समाज से संवाद का अवसर भी प्रदान किया. पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों द्वारा ‘जलवायु परिवर्तन’ रूपी संकट का जो वर्णन हो रहा है, नदियों की यात्रा में उसका प्रत्यक्ष दर्शन हुआ. पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के संकट को समझने के लिए ‘नदियों की दशा का अध्ययन’ साधन है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव इन यात्राओं ने हमें कराया है.

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जलवायु परिवर्तन एक भीषण संकट

वर्षों से गोविंदाचार्य ‘प्रकृति केंद्रित विकास’ की संकल्पना की बात करते रहे हैं. पिछले 500 वर्षों में ‘मानव केंद्रित विकास’ की अवधारणा पर चलकर ‘जलवायु परिवर्तन’ रूपी ऐसा भीषण संकट खड़ा हो गया है, जिसने मानव सहित संपूर्ण जीव-जगत सृष्टि के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है. प्रकृति के शोषण एवं विध्वंस पर आधारित इस मानव केंद्रित विकास का विकल्प अब आगे केवल ‘प्रकृति केंद्रित विकास’ (Eco-Centric Development) ही है. नदियों की यात्रा ने हमारे इस विश्वास को अधिक पुष्ट ही किया है.

प्रकृति केंद्रित विकास पर बन रही सहमति

नदियों की वर्तमान दशा को देखकर सभी संवेदनशील और विवेकशील लोग ‘जलवायु परिवर्तन’ रूपी संकट और ‘प्रकृति केंद्रित विकास’ रूपी समाधान पर एकमत हो रहे हैं. उस सहमति को धरातल पर उतारने के लिए समान विचार वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के सम्मलेन का नाम है – ‘नदी संवाद’. नदी संवाद में पारित होने वाले प्रस्ताव इस समिति की भावी दिशा तय करेंगे.

नदी संवाद को सफल बनाने में जुटी संस्थाएं

राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के इस सम्मलेन को सफल बनाने में अनेक संगठन, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग कर रहे हैं. इनमें यमुना मिशन, शाश्वत हिंदू प्रतिष्ठान, भारत विकास संगम, उज्ज्वल भारत, राष्ट्र जागरण अभियान, छठ समितियां आदि शामिल भी हैं. नदियों को पुनर्जीवित करने में प्रयत्नशील अनेक सामाजिक नेताओं, पूज्य संतों और पर्यावरणविदों की सहभागिता इस सम्मलेन में होने जा रही है.

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नदी संवाद में शामिल होने वाले प्रमुख लोग

नदी संवाद में जो लोग भाग लेंगे, उनमें स्वामी राजेंद्र दास जी (मलूक पीठ), स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज (गीता मनीषी), सरयू राय, राम बहादुर राय, रवि चोपड़ा, विक्रम सोनी, यमुना मिशन के संयोजक प्रदीप बंसल व अन्य शामिल हैं.

Posted By: Mithilesh Jha

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