आज देश भर में विजया दशमी का त्योहार मनाया जा रहा है. इसी दिन आरएसएस (RSS) का स्थापना दिवस भी होता है. इस मौके पर आज नागपुर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. जहां पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शस्त्र पूजा की और लोगों को संबोधित किया. आज इस मौके पर आपकों बताते हैं कि पिछले 95 वर्षों में आरएसएस किस प्रकार आगे बढ़ा और आज इस मजबूत स्थिति में है.
27 नवंबर 1925 को हुई थी स्थापना
आरएसएस की स्थापना 27 नवंबर 1925 को हुई थी. इसकी स्थापना केशव राव बलिराम हेडगेवार ने की थी. जिन्हें संघ में डॉक्टरजी के नाम से जाना जाता है. केशव राव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर स्थित अपने घर में इसकी बुनियाद रखी थी जो आज आरएसएस का मुख्यालय है. आरएसएस की स्थापना के उद्देश्य हिंदुओं को एकजुट करना और उनका उत्थान करना था.
आरएसएस बना अधिकारिक नाम
इसके बाद 17 अप्रैल 1926 को आरएसएस का आधिकारिक रूप से नाम चुना गया. फिर इसी साल से आरएसएस की दैनिक बैठकें शुरु हो गयी. उस वक्त दैनिक बैठकों को नित्य शक और स्वयंसेवकों को स्वयंसेवक के रूप में जाना जाता था.
शाखा क्या है
शाखा आरएसएस की संगठनात्मक संरचना की मूल इकाई है. जिसे इसके संबद्ध संगठनों के साथ व्यापक रूप से संघ परिवार के रूप में जाना जाता है. “शाखा” वह जगह है जहां से आरएसएस को स्वयंसेवक मिलते हैं. कोई भी आरएसएस की बैठकों में आने और शामिल होने के लिए स्वतंत्र है, जो आमतौर पर पड़ोस के पार्कों में आयोजित किए जाते हैं. इसके लिए कोई आधिकारिक सदस्यता नहीं है.
इस तरह हुआ शाखा का विस्तार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2019 की RSS की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, संघ की कुल 84,877 शाखाएं लगती हैं, जिनमें 59,266 रोज़ आयोजित होती हैं. 17,299 शाखाएं साप्ताहिक होती हैं. विश्व के दूसरे देशों में भी ये कार्यक्रम होते हैं. 1975 में संघ की 8500 शाखाएं आयोजित होती थीं, जो 1977 में 11,000 हो गईं. 1982 में 20,000 थीं. 2004 तक 51,000 से ज़्यादा शाखाएं भारत में चलती थीं. 2014 तक इनकी संख्या बढ़कर 40,000 हो गई. अगस्त, 2015 तक 51,335 शाखाएं थीं. विश्व के 40 देशों से अधिक में इसका नेटवर्क फैला हुआ है.
मोहन भागवत बने छठे प्रमुख
आरएसएस के पहले प्रमुख केबी हेडगेवार थे. इसके बाद 1940 में एमएस गोलवलकर आये, जिन्हें गुरुजी के नाम से जाना जाता था.फिर 1973 में बालासाहेब देवरस आरएसएस के प्रमुख बनें. इसके बाद 1994 में राजेंद्र सिंह आये. वर्ष 2000 में केएस सुदर्शन संगठन के प्रमुख बनें. इसके बाद मोहन भागवत आरएसएस के प्रमुख बने. भागवत आरएसएस के छठे प्रमुख हैं. 1925 में नागपुर के एक मध्यम वर्गीय घर में पैदा होने के बाग हिंदू सोच को ढालने और राष्ट्रीय संघर्ष को प्रभावित करने के लिए एक उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है.
तीन बार लगा प्रतिबंध
आरएसएस एक ऐसा संगठन है जिसपर कई आरोप लगते रहे हैं इसके कारण कई बार यह विवादों में घिरा और सरकारो ने इसे प्रतिबंधित भी किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक 1947 से लेकर 2009 तक इसे तीन बार प्रतिबंधित किया गया. 1948 में, महात्मा गांधी की हत्या के बाद पहली बार स्वतंत्र भारत में आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था जो 1949 में हटा लिया गया. इसके बाद 1975 में आपातकाल के दौरान और 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद इस प्रतिबंध लगा.
कभी महाराष्ट्र के ब्राह्मणों का था वर्चस्व
सरसंघचालक और सरकार्यवाह आरएसएस के सबसे शक्तिशाली पद हैं. हालांकि यह विशेष रूप से पुरूषों के लिए हैं पर इसकी एक महिला विंग भी है जिसका नाम राष्ट्रीय सेविका समिति है. शुरूआत में इस पर महाराष्ट्र के ब्राह्मणों का वर्चस्व था पर बाद के दशकों में सभी वर्गों के लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हुई स्थापना
1949 में आरएसएस ने छात्रों के लिए काम करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की स्थापना की. फिर 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासियों के बीच काम किया. 1952 में, इसने श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा भारतीय जनसंघ (BJS) के गठन का सक्रिय समर्थन किया. 1955 में, इसने भारतीय मजदूर संघ (BMS) की शुरुआत की, जो अब देश की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियनों में से एक है. 2004 में भाजपा की हार के बाद, आरएसएस ने दलगत राजनीति से सुरक्षित दूरी बनाए रखने का फैसला किया.
Posted By : Pawan Singh