‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई मौकों पर अकेले ही खड़ा रहा भारत, पर सिद्धांतों से नहीं किया समझौता’
रुचिरा कंबोज ने भारत के एक जनवरी, 2021 को परिषद का सदस्य बनने से पहले सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की प्रतिष्ठा और अनुभव का इस्तेमाल पूरी दुनिया के हित के लिए करेगा.
नई दिल्ली/संयुक्त राष्ट्र : संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने शुक्रवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में 2021-22 के कार्यकाल के दौरान कई मौकों पर भारत को अकेला ही खड़ा होना पड़ा, मगर उसने कभी अपने सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं किया. भारत ने 2021-22 में परिषद के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल में दूसरी बार एक दिसंबर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाली. इससे पहले अगस्त 2021 में उसने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की थी.
दो साल में भारत ने शांति, सुरक्षा और समृद्धि की बात की
दिसंबर महीने के लिए 15 देशों की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष रुचिरा कंबोज ने गुरुवार को कहा कि पिछले दो साल में हमने शांति, सुरक्षा और समृद्धि की बात की. आतंकवाद जैसे मानवता के दुश्मनों के खिलाफ आवाज उठाने में कभी कोई संकोच नहीं किया. दिसंबर के महीने के लिए सुरक्षा परिषद के गैर-सदस्य देशों की अंतिम बैठक में कंबोज ने पिछले सप्ताह विदेश मंत्री एस जयशंकर की अध्यक्षता में बहुपक्षीय सुधारों और आतंकवाद-रोधी नीति पर हुई महत्वपूर्ण बैठकों के साथ-साथ भारत की अध्यक्षता में इस महीने के लिए परिषद के एजेंडे को रेखांकित किया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अगले सप्ताह अवकाश रहेगा, उससे पहले इस महीने इसे गैर-सदस्य देशों की आखिरी बैठक माना जा रहा है.
जलवायु परिवर्तन पर भारत का विरोध सैद्धांतिक
रुचिरा कंबोज ने कहा कि भारत के यूएनएससी कार्यकाल के दौरान ऐसे कई मौके आए जब हमें अकेले खड़े होना पड़ा, जबकि उस समय हमारे पास एक विकल्प था कि हम उन सिद्धांतों को छोड़ दें, जिनमें हम वास्तव में विश्वास करते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में सुरक्षा परिषद के कुछ सदस्यों के साथ हमारे वास्तविक मतभेद थे, जैसे कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में सुरक्षा परिषद की भूमिका के मुद्दे पर भारत का विरोध सिद्धांतों पर आधारित था.
सुरक्षा परिषद में सुधार समय की मांग
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा कि भारत इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ है कि सुरक्षा परिषद में सुधार आज समय की मांग है. उन्होंने कहा कि हमारे कार्यकाल के बाद यह विश्वास बढ़ेगा ही. परिषद के इस कार्यकाल के बाद भी हम इस बात पर कायम रहेंगे कि बदलाव का जितना अधिक विरोध किया जाएगा, इस निकाय के फैसलों की प्रासंगिकता व विश्वसनीयता खोने का खतरा उतना अधिक होगा. सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की मांग करने वाले प्रयासों में भारत सबसे आगे रहा है, जो वर्तमान चुनौतियों से निपटने में काफी बंटा हुआ नजर आया है.
दो साल तक सुरक्षा परिषद में ग्लोबल साउथ आवाज बना भारत
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पिछले दो सालों में भारत के कार्यकाल पर रुचिरा कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से कहा कि भारत इस बात से हमेशा वाकिफ था कि सुरक्षा परिषद में कोई भी विचार रखते समय हम 1.4 अरब भारतीयों या 1/6 मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि हम इस तथ्य से भी अवगत हैं कि हम अपने कार्यकाल के दौरान ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज भी रहे, जिसने विकासशील देशों के विशेष महत्व के मुद्दों को रेखांकित किया. उन्होंने शांति मिशन में भारत के सबसे अधिक योगदान देने के तथ्य को भी रेखांकित किया. इसके साथ ही, प्रस्ताव 2,589 पर भी ध्यान आकर्षित किया, जो शांतिरक्षकों के खिलाफ अपराधों के मामलों में जवाबदेही की मांग करता है.
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सुरक्षा परिषद में भारत का कार्यकाल हो रहा समाप्त
रुचिरा कंबोज ने भारत के एक जनवरी, 2021 को परिषद का सदस्य बनने से पहले सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की प्रतिष्ठा और अनुभव का इस्तेमाल पूरी दुनिया के हित के लिए करेगा. उन्होंने कहा कि इस महीने सुरक्षा परिषद ने अफगानिस्तान, आर्मेनिया, सीरिया, हैती, यूक्रेन, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य सहित कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की. रुचिरा कंबोज ने कहा कि हमारे परिषद से बाहर होने के बाद भी अफगानिस्तान हमारे दिलों में रहेगा. परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के तौर पर भारत का दो साल का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो रहा है.