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RURAL DEVELOPMENT: गांव की तरह शहरों का भी भूमि रिकार्ड होगा तैयार

एक वर्ष की अवधि के भीतर सभी प्रदेशों के लगभग 130 शहरों में भूमि रिकॉर्ड तैयार करना है, जिसके बाद अगले 5 वर्षों की अवधि के भीतर लगभग 4900 शहरी स्थानीय निकायों में संपूर्ण प्रक्रिया पूरी करने के लिए और चरण अपनाए जाएंगे.

RURAL DEVELOPMENT: पिछले एक दशक में भारत ने डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) जैसी पहलों के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रगति की है.  भारत ने 6.25 लाख से ज़्यादा गांवों में अधिकारों के अभिलेखों (आरओआर) का डिजिटलीकरण किया है, विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (यूएलपीआईएन) शुरू की है, जिसे भू-आधार के नाम से भी जाना जाता है, और राजस्व और पंजीकरण प्रणालियों के बीच सहज एकीकरण बनाया है. हालांकि जैसे-जैसे ग्रामीण भूमि अभिलेख विकसित होते हैं, शहरी भूमि प्रबंधन को भी तेजी से बढ़ते शहरीकरण की मांगों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना होगा, अन्यथा शहर ही शहरीकरण की प्रक्रिया से दूर हो जायेंगे. शहर ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज रूप से फैल रहे हैं, और भूमि प्रशासन को समान विकास सुनिश्चित करने के लिए गति बनाये रखनी होगी. गांव की तरह शहरों में भूमि की माप एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण कई प्रोजेक्ट का काम लंबित हो जाता है. इस समस्या के समाधान तकनीकी माध्यम से करने को लेकर केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग की ओर से एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया , जिसमें  शहरी भूमि अभिलेखों के लिए सर्वेक्षण- पुनः सर्वेक्षण में आधुनिक प्रौद्योगिकियों आदि के इस्तेमाल पर विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे.

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सक्षम भूमि रिकार्ड बनाना जरूरी

केंद्रीय ग्रामीण राज्य मंत्री डॉ. पेम्मासानी ने कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि  शहरी भूमि प्रबंधन केवल एक तकनीकी अभ्यास नहीं है बल्कि यह आर्थिक विकास, औद्योगिक विकास और सामाजिक सद्भाव की नींव है. शासनिक उपकरणों से अधिक, सटीक भूमि रिकॉर्ड – सामाजिक आर्थिक नियोजन, सार्वजनिक सेवा वितरण और संघर्ष समाधान की रीढ़ हैं. इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में सर्वेक्षण-पुनः सर्वेक्षण तकनीकों, भू-स्थानिक उपकरणों, ड्रोन और विमान प्रौद्योगिकियों तथा जीआईएस एकीकृत समाधानों में प्रगति सहित अनेक नये विचारों पर चर्चा की गयी. इस कार्यशाला में साझा की गई सामूहिक अंतर्दृष्टि भारत में स्मार्ट और अधिक कुशल शहरी प्रबंधन प्रणाली के निर्माण के लिए आधारशिला के रूप में कार्य करेगी. डॉ. पेम्मासानी ने कहा कि इसके अलावा स्थानिक रूप से सक्षम भूमि रिकॉर्ड बनाकर हम ओवरलैपिंग स्वामित्व दावों, असंगत भूमि मूल्यांकन और सीमा विवादों जैसे दीर्घकालिक मुद्दों को हल कर सकते हैं. समय आ गया है कि पारंपरिक महंगे और समय लेने वाले सर्वेक्षणों से आगे बढ़कर शहरी शासन में एक नए युग के लिए इन उन्नत तकनीकों को अपनाया जाए. 

कार्यशाला में कई देशों के केस स्टडी पर किया गया मंथन

इस कार्यशाला में प्रभावशाली केस स्टडीज को शामिल कर उस पर विचार-विमर्श किया गया. दुनिया भर के कई देशों, अमेरिका, दक्षिण कोरिया, स्पेन, जर्मनी, भारत और अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने शहरी भूमि प्रबंधन की चुनौतियों पर काबू पाने के अपने अनुभव साझा किये. सभी ने शहरी भूमि प्रबंधन की एक पारदर्शी, कुशल और न्यायसंगत प्रणाली बनाने पर सहमति जतायी.डॉ. पेम्मासानी ने इस बात पर जोर दिया कि यह कार्यशाला अंत नहीं बल्कि एक परिवर्तनकारी यात्रा की शुरुआत है. यहाँ प्राप्त अंतर्दृष्टि शहरी भूमि अभिलेखों को आधुनिक बनाने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम को आकार देगी.

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 लगभग 130 शहरों का भूमि रिकॉर्ड होगा तैयार


भूमि संसाधन विभाग ने “राष्ट्रीय भू-स्थानिक ज्ञान-आधारित शहरी आवास सर्वेक्षण (नक्शा)” नामक एक पायलट कार्यक्रम को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य एक वर्ष की अपेक्षित अवधि के भीतर सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के लगभग 130 शहरों में भूमि रिकॉर्ड तैयार करना है, जिसके बाद अगले 5 वर्षों की अपेक्षित अवधि के भीतर लगभग 4900 शहरी स्थानीय निकायों में संपूर्ण प्रक्रिया पूरी करने के लिए और चरण अपनाए जाएंगे. कार्यशाला का आयोजन भूमि अभिलेखों के निर्माण और संकलन पर अन्य देशों के विशेषज्ञों से परामर्श करने, हितधारकों, विशेष रूप से राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के लाभ के लिए नयी और उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं पर चर्चा करने और समझने के उद्देश्य से किया गया था.

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