Russia Ukraine War : यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच वहां से अपनी मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़ कर घर लौटे भारतीय छात्रों के सामने अब एक नयी चुनौती आ गयी है. उनकी नियमित (ऑफलाइन) कक्षाएं और परीक्षाएं शुरू हो रही हैं. युद्ध प्रभावित यूक्रेन की राजधानी कीव में कुछ विश्वविद्यालयों ने छात्रों को सितंबर से नियमित कक्षाएं फिर से शुरू करने और अक्तूबर में नियमित तौर पर आयोजित होनेवाली अनिवार्य परीक्षा ‘क्रोक’ के बारे में सूचित किया है. यूक्रेन में मानदंडों के अनुसार, अपने अध्ययन के तीसरे वर्ष में चिकित्सा, दंत चिकित्सा और फार्मेसी के छात्रों को क्रोक-1 के लिए उपस्थित होना होता है. अंतिम वर्ष पूरा होने के बाद छात्रों को डॉक्टर या फार्मासिस्ट होने के लिए प्रमाणन के लिए सरकार की लाइसेंसिंग परीक्षा, क्रोक-2 के लिए बैठना पड़ता है.
छह महीने से ऑनलाइन क्लास कर रहीं कीव में तरास शेवचेंको नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की 20 वर्षीय छात्रा आशना पंडित अपने विश्वविद्यालय से एक संदेश प्राप्त करके चौंक गयी. संदेश में लिखा था कि हम नियमित कक्षाओं के संचालन के लिए तैयार हैं. शुरुआत एक सितंबर से होगी. आपकी सुरक्षा की गारंटी है. वहीं, नोएडा निवासी आशना और उसका जुड़वां भाई अंश दोनों चौथे वर्ष के चिकित्सा छात्र हैं. अब इस बात को लेकर परेशान हैं कि आगे क्या करें. आशना ने बताया कि युद्ध जब जारी है, तो ऐसे समय में यूक्रेन लौटने का विचार काफी डराने वाला है.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर गुरुग्राम के रहने वाले छात्र ने कहा कि विश्वविद्यालय हमसे परिसर में लौटने के लिए कह रहा है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? मैं अंतिम वर्ष में हूं और कोर्स पूरा होने में सिर्फ कुछ महीने बचे हैं. एक तरफ लग रहा है कि जोखिम लेकर वहां जाऊं और बची हुई पढ़ाई पूरी कर लूं, जबकि दूसरी तरफ यह तय नहीं कर पा रहा हूं कि क्या आने वाले समय में वहां रहना सुरक्षित होगा.
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नोएडा निवासी आशना ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों से बात की है. विवि ने उनसे बताया कि कीव में स्थिति सामान्य है. विश्वविद्यालय ने यह अब तक स्पष्ट नहीं किया है कि जो लोग परिसर नहीं पहुंच सकते, क्या उन्हें ऑनलाइन कक्षा की सुविधा मिलेगी? आशना ने कहा कि कक्षाओं के लिए छात्र भले ही यूक्रेन न लौटें, लेकिन उन्हें क्रोक के लिए तो वहां जाना ही होगा, क्योंकि यह चौथे वर्ष में जाने के लिए योग्यता परीक्षा है.
सूत्रों के अनुसार, इस साल मार्च में युद्ध के दौरान यूक्रेन से करीब 20 हजार भारतीय चिकित्सा छात्रों को वहां से लाया गया था. केंद्र ने पिछले महीने लोकसभा को बताया था कि भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम-1956 और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम- 2019 में किसी भी विदेशी चिकित्सा संस्थान से मेडिकल छात्रों को भारत में मेडिकल कॉलेजों में समायोजित करने या स्थानांतरित करने के नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.