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Russia Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा, जीत-हार का जारी है खेल

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुए एक वर्ष बीत चुका है. बीते वर्ष 24 फरवरी को शुरू हुआ युद्ध अब तक जारी है. जिसमें बच्चों समेत हजारों यूक्रेनी नागरिक और दोनों ही देशों के अनेक सैनिक मारे जा चुके हैं.

आरती श्रीवास्तव : नाटो में शामिल होने की यूक्रेन की जिद और रूस की इस सैन्य गठबंधन को पूर्व की ओर विस्तार से रोकने की कोशिश सहिततमाम कारणों से रूस-यूक्रेन युद्ध बीते एक वर्ष से जारी है. इस युद्ध से केवल दोनों देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हुई है. खाद्यान्न संकट और बढ़ती ऊर्जा कीमतों ने लोगों का जीवन मुश्किल में डाल दिया है. कोरोना के बाद धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा है. क्या कुछ हुआ युद्ध के एक वर्ष के दौरान, इसी पड़ताल के साथ प्रस्तुत है…

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुए एक वर्ष बीत चुका है. बीते वर्ष 24 फरवरी को शुरू हुआ युद्ध अब तक जारी है. जिसमें बच्चों समेत हजारों यूक्रेनी नागरिक और दोनों ही देशों के अनेक सैनिक मारे जा चुके हैं. हालांकि मारे गये लोगों का वास्तविक आंकड़ा बताना तो कठिन है, पर ज्यादातर अनुमान यही कहते हैं कि युद्ध से काफी क्षति पहुंची है. अपनी जान बचाने के लिए लाखों लोग अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए और अपने ही देश में या अन्य देशों में उन्हें शरणार्थी बनना पड़ा है. चूंकि युद्ध अब भी जारी है, सो रूस व यूक्रेन के पश्चिमी दोस्तों के बीच के तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए इस संघर्ष के और बढ़ने व परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. क्योंकि युद्ध के तेज होने के बाद पश्चिमी देशों के साथ रूस के संबंध और अधिक खराब हो चुके हैं.

2014 से चल रही तनातनी की परिणति

बीते वर्ष 24 फरवरी को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूरी तैयारी के साथ यूक्रेन पर हमला किया. इसके पीछे पुतिन का तर्कथा कि यूक्रेनी सरकार 2014 से ही पूर्वी डोनबास क्षेत्र के रूसी भाषी नागरिकों का नरसंहार करती आ रही है. उसी वर्ष रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया. उसके बाद मास्को समर्थित अलगाववादियों ने डोनबास को अपने नियंत्रण में लेकर डोनेस्क और लुहांस्क पीपुल्स रिपब्लिक (डीपीआर व एलपीआर) के स्थापना की घोषणा कर उसे कीव से अलग करने की कोशिश की.

वर्ष 2014 से यूक्रेनी सरकारी बलों और रूस समर्थित बागियों के बीच संघर्ष में यहां लगभग 14,000 लोग मारे जा चुके हैं. उधर रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन पर अपने आक्रमण का एक कारण अमेरिका की अगुवाई वाली नाटो ट्रांसअटलांटिक सैन्य गठजोड़ को भी बताया है. पुतिन ने कहा है कि रूस पूर्व की तरफ नाटो के विस्तार को रोकने और सैन्य आधार हासिल करने पर आमादा है, जो 1991 में सोवियत संघ के टूटने से पहले उसका हिस्सा था. पर यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने रूस के सभी तर्क खारिज कर दिये हैं. उनका मानना है कि यह युद्ध अकारण है और रूस का उद्देश्य यूक्रेन की भूमि हड़पना तथा उसे अपने अधीन करना है. नाटो यूक्रेन को सदस्य बनाने के लिए आगे नहीं आया है, बल्कि यह विशुद्ध रूप से एक रक्षात्मक गठबंधन है.

हजारों मारे गये

संयुक्त राष्ट्र के 13 फरवरी, 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक कम से कम 7,200 नागरिक मारे गये हैं. हालांकि, वास्तविक संख्या इससे अधिक होने की संभावना है. युद्ध में दोनों तरफ के हजारों सैनिक भी मारे गये हैं. पर किसी भी पक्ष ने युद्ध में मारे गये लोगों का वास्तविक आंकड़ा अब तक उपलब्ध नहीं कराया है.

युद्ध से संकट में दुनिया

युद्ध के कारण इस समय दुनिया के लाखों लोग विकराल खाद्य और ऊर्जासंकट से जूझ रहे हैं. यूक्रेन और रूस पारंपरिक रूप से खाद्य के वैश्विक निर्यातक हैं, दोनों के युद्धरत होने से वैश्विक आपूर्ति-शृंखला बुरी तरह बाधित हुई है. रूस ऊर्जा- तेल व गैस- का बड़ा निर्यातक है और पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाने से नाराज होकर उसने इन देशों की तेल व गैस आपूर्ति कम कर दी है, जिससे महंगाई काफी बढ़ गयी है. कोरोना के बाद फिर से शुरू हुई आपूर्ति-श्रृंखला में युद्ध के कारण आये व्यवधान व ऊर्जा लागत में वृद्धि ने आमजन की जेब पर बड़ा बोझ डाला है.

जीत-हार का जारी है खेल

रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के पश्चात अनुमानित दो लाख सैनिकों ने यूक्रेन के उत्तरी, पूर्वीव दक्षिण इलाकों का रुख किया और इन क्षेत्रों के बड़ेहिस्से को अपने कब्जेमें ले लिया. इसके बाद उन्होंने कीव के बाहरी इलाके को अपने नियंत्रण में लेने के लिए हमले शुरू किये. इसके बावजूद वे यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने में विफल रहे.

  • मार्च के अंत में यूक्रेनी सैनिकों के पलटवार ने रूसी सैनिकों को उत्तर व दक्षिण में पीछे की ओर धकेल दिया और अपने कुछ क्षेत्रों पर वापस नियंत्रण पाने में सफल रहे. यूक्रेनी सैनिकों द्वारा वापस पाये गये इलाके में कीव का उपनगर, बुचा भी शामिल था. यूक्रेन की मानें, तो रूसी सैनिकों ने यहां के लोगों के साथ बेहद क्रूर व्यवहार किया. रूस के ज्यादतियों की कई तस्वीरों को यूक्रेनी सैनिकों ने दुनिया के सामने रखा.

  • पीछे हटने के बाद रूसी सैनिक यूक्रेन के पूर्वी क्षेत्र में एक बार फिर इकट्ठा हुए और पुतिन ने डोनबास की मुक्ति के क्रेमलिन के लक्ष्य को फिर से दोहराया. दक्षिणी और पूर्वी मोर्चे पर महीनों तक दोनों पक्षों के बीच लड़ाई जारी रही.

  • सितंबर के अंत में मॉस्को ने अकेले ही यूक्रेन के आंशिक रूप से कब्जा किये गये चार क्षेत्रों- डोनेस्क, लुहांस्क, खेरसान और जैपोरिझिया पर अधिकार कर उसे अपना क्षेत्र घोषित कर दिया. रूस के इस कदम की वैश्विक स्तर पर काफी निंदा हुई.

  • इसके बाद पश्चिमी हथियारों से लैस यूक्रेनी सैन्य बलों ने पलटवार किया और मध्य नवंबर में खेरसान को वापस अपने कब्जेमें ले लिया. यह रूस के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि खेरसान यूक्रेन का दक्षिणी शहर है और यह खेरसान ओब्लास्ट की राजधानी है. दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू होने के बाद खेरसान ऐसी पहली क्षेत्रीय राजधानी थी, जिसे रूस ने अपने कब्जेमें लिया था.

  • इसके बाद से डोनबास पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों के बीच खूनी संघर्ष चल रहा है, जो कि डोनेस्क और लुहांस्क क्षेत्रों को मिलाकर बना है.

यूक्रेन को मिल रहा पश्चिमी देशों का सहयोग

रूस-यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ने के साथ ही यूक्रेन को अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ जैसे पश्चिमी देशों के साथ जापान, ऑस्ट्रेलिया व अन्य देशों से सहयोग मिलना शुरू हो गया, जो अब तक जारी है. ये तमाम देश न केवल यूक्रेन को सैन्य सहायता मुहैया करा रहे हैं, बल्कि हरसंभव मानवीय सहायता भी दे रहे हैं. इन देशों में नाटो के कई सदस्य भी शामिल हैं. इनमें से कई देशों ने शरणार्थियों का खुले दिल से स्वागत भी किया है. कील इंस्टीट्यूट के अनुसार, 24 जनवरी से 20 नवंबर, 2022 तक 40 देशों से यूक्रेन को 108 बिलियन यूरो की सहायता मिल चुकी है.

भारत का तटस्थ रवैया

रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही भारत पर पश्चिमी देशों के साथ मिलकर रूस का विरोध करने व यूक्रेन का साथ देने का दबाव था, पर भारत ने तटस्थ रहना चुना. उसने दोनों देशों से शांति व समझौते के तहत इस मामले को सुलझाने की अपील की. उसने मध्य मार्ग अपनाया और किसी भी खेमे में जाने से बचा हुआ है. चीन ने भी भारत की तरह मध्य मार्ग का चुनावकिया है और किसी भी देश के पक्ष में पूरी तरह खड़े होने से अब तक बचा हुआ है.

युद्ध के फिर से तेज होने की आशंका

यूक्रेनी अधिकारियों का मानना है कि युद्ध के एक वर्ष पूरे होने पर रूस नये सिरे से आक्रमण शुरू कर सकता है. वे इस बात को लेकर आशंकित हैं कि मॉस्को पिछले वर्षसेना में भर्ती सैनिकों को एकजुट कर एक बार फिर से कीव को कब्जा करने का प्रयास करेगा. वहीं यूक्रेन भी पश्चिमी देशों से मिले युद्धक टैंकों और लंबी दूरी की मिसाइलों के साथ फिर से आक्रमण की तैयारी कर रहा है. यूक्रेनी राष्ट्रपति, वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि उनकी सरकार का लक्ष्य केवल आक्रमणों का सामना करना नहीं है, बल्कि क्रीमिया सहित रूस द्वारा कब्जाये सभी यूक्रेनी क्षेत्रों को फिर से प्राप्त करना है. इसी कारण यूक्रेन ने अमेरिकी एफ-16 समेत पश्चिमी फोर्थ जेनरेशन सुपरसोनिक फाइटर जेट की मांग की है. दोनों पक्षाें की मंशा को देखते हुए युद्ध के एक बार फिर से तेज होने की आशंका नजर आ रही है.

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