नई दिल्ली : महंगाई की मार से केवल भारत, पाकिस्तान या श्रीलंका ही त्रस्त नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया इसकी चपेट में आई हुई है. पूरी दुनिया में महंगाई क्यों बढ़ रही है, इसका सटीक जवाब न तो सरकारें दे पा रही हैं और न ही वैश्विक आर्थिक और रेटिंग एजेंसियां. लेकिन, रूस के ऊर्जा मंत्री निकोलाई शुलगिनोव की मानें, तो राष्ट्रपति पुतिन द्वारा यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई का ऐलान किए जाने के बाद पश्चिमी देशों की ओर से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से दुनिया भर के देश महंगाई की चपेट में आ गए हैं. इसके पीछे उनका अपना तर्क है, लेकिन यह बता पाना जरा कठिन है कि वैश्विक मंदी और महंगाई के पीछे असली कारण क्या है? आइए, यह टटोलने का प्रयास करते हैं कि आखिर रूस के ऊर्जा मंत्री निकोलाई शुलगिनोव ने ऐसा बयान क्यों दिया कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से दुनिया महंगाई की मार झेल रही है.
बता दें कि 2020 की शुरुआत से ही कोरोना जैसी महामारी से दुनिया अभी उबर भी नहीं पाई थी कि रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी. हालांकि, उस समय पूरे विश्व समुदाय को इसका अंदाजा भी नहीं था कि दोनों देशों के बीच वर्चस्व की यह लड़ाई इतनी लंबी खींचेगी. पहले, कोरोना महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति को थाम दिया और अब रूस-यूक्रेन के युद्ध की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था और आर्थिक-कारोबारी गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं. ऊपर से प्राकृतिक आपदाएं इसकी आग में घी डालने का काम कर रही हैं.
दुनिया भर में बढ़ती महंगाई को लेकर रूस के ऊर्जा मंत्री निकोलाई शुलगिनोव ने कहा कि पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ जो एकतरफा प्रतिबंध लगाए हैं, उससे दुनिया भर में ऊर्जा आपूर्ति बाधित हुई है और ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. शुक्रवार को जी-20 ऊर्जा संक्रमण मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि मौजूदा ऊर्जा संकट ने सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को बाधित किया है. खासकर, जब सभी के लिए सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने की बात आती है.
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रूस के ऊर्जा मंत्री निकोलाई शुलगिनोव ने कहा कि केवल इसके मूल कारणों को खत्म करके ही संकट को दूर करना संभव होगा और इसके लिए ऊर्जा आपूर्ति शृंखला को बहाल करने और एक संतुलित ऊर्जा और जलवायु नीति स्थापित करने की आवश्यकता होगी. जी-7 के वित्त मंत्रियों ने शुक्रवार को एक बैठक के बाद रूसी तेल पर मूल्य कैप लगाने पर सहमति व्यक्त की. हालांकि, रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने रूस के तेल पर मूल्य कैप पेश करने की जी-7 की योजना को पूरी तरह से बेतुका बताया. नोवाक ने कहा कि रूस उन देशों को तेल और पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति नहीं करेगा, जो रूसी तेल पर मूल्य सीमा का समर्थन करते हैं, क्योंकि रूस गैर-बाजार स्थितियों के तहत तेल की आपूर्ति करने की योजना नहीं बना रहा है.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से बीते 7 जुलाई गुरुवार को दुनिया में बढ़ रही महंगाई और गरीबी को लेकर एक रिपोर्ट पेश की गई थी, जिसमें कहा गया था कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से दुनिया भर में खाद्य पदार्थ और ऊर्जा की कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई. खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों में भारी बढ़ोतरी से दुनिया भर में करीब 7.1 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अपनी रिपोर्ट में यह अनुमान भी जाहिर किया कि युद्ध शुरू होने के बाद पहले तीन महीनों में 5.16 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए और वे प्रति दिन 1.90 डॉलर या उससे भी कम पैसे में जीवन यापन कर रहे हैं. इसके साथ ही विश्व की कुल जनसंख्या का करीब नौ फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे हो गया. इसके अलावा, करीब दो करोड़ लोग रोजाना 3.20 डॉलर से कम पैसे में जीवन यापन कर रहे हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम आमदनी वाले देशों के परिवार अपनी घरेलू आय का 42 फीसदी हिस्सा भोजन पर खर्च करते हैं, लेकिन पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने से ईंधन और मुख्य खाद्य पदार्थों जैसे गेहूं, चीनी और खाना पकाने के काम आने वाले तेल की कीमतें बढ़ गईं. यूक्रेन के बंदरगाहों के अवरूद्ध हो जाने और कम आय वाले देशों को अनाज निर्यात नहीं कर पाने के कारण कीमतों में और वृद्धि हुई.
इतना ही नहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद आपूर्ति प्रभावित होने से संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित दिखाई दे रहा है. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने पहले ही चेतावनी दी थी कि 24 फरवरी को शुरू हुआ यूक्रेन में युद्ध आपूर्ति शृंखला को बाधित कर रहा है और अनाज, उर्वरक और ऊर्जा की कीमतों को और प्रभावित कर रहा है. नतीजतन, 2022 की पहली छमाही के दौरान कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि तेजी से होने वाली और भीषण जलवायु से जुड़ी घटनाएं भी आपूर्ति शृंखला को बाधित कर रही हैं.
यूक्रेन और रूस मिलकर दुनिया के गेहूं और जौ का लगभग एक तिहाई और सूरजमुखी के तेल का आधा उत्पादन करते थे. वहीं, रूस और उसका सहयोगी बेलारूस दुनिया में पोटाश के नंबर 2 और 3 उत्पादक हैं. पोटाश उर्वरक का एक प्रमुख घटक होता है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया भर में गेहूं की आपूर्ति बाधित होने और आटा की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी होने की वजह से भारत की ओर से भी गेहूं के आटे के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. इसके पीछे भारत सरकार का तर्क यह है कि देश में गेहूं के आटे के कीमतों में तेजी से हो रही बढ़ोतरी पर नियंत्रण करने और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं के आटे के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है.
इतना ही नहीं, महामारी की बिसात पर शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद तेजी से बढ़ती महंगाई के बाद दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में भी तीव्र गति से बढ़ोतरी की जा रही है. यह जानकर हैरानी होती है कि दुनिया के बैंकों को दिशा देने वाले अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने 2022 के जुलाई महीने में बीते 28 साल के दौरान ब्याज दरों में सबसे अधिक 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी करने का ऐलान किया. फेडरल रिजर्व ने 1994 के बाद पहली बार ब्याज दर में 75 बेसिस प्वाइंट बढ़ोतरी करने का फैसला किया. अगर, भारत की बात करें, तो मई 2022 से लेकर अगस्त महीने तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो रेट में करीब 1.40 फीसदी या फिर 140 बेसिस प्वाइंट तक इजाफा किया है.
भारत में आरबीआई ने मई महीने में अचानक रेपो रेट में 0.40 फीसदी या 40 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ोतरी करने का फैसला किया. इसके बाद भारत के केंद्रीय बैंक ने जून में 0.5 फीसदी या 50 बेसिस प्वाइंट और अगस्त में भी 0.50 फीसदी या 50 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ोतरी किया. इस प्रकार, आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में 140 बेसिस प्वाइंट तक का इजाफा कर दिया गया. सबसे बड़ी बात यह है कि मई महीने में ही जब आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास रेपो रेट का ऐलान कर रहे थे, तब उन्होंने उसी समय कहा था कि रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से साल 2022 में महंगाई से निजात नहीं मिलेगी. शक्तिकांत दास ने भी महंगाई के पीछे रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से प्रभावित आपूर्ति शृंखला को अहम कारण बताया गया.