बेंगलुरु : भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि जब चीन जैसी क्षेत्रीय शक्ति महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रही हो, तो भारत को इससे होने वाले ‘अस्थिरतापूर्ण बदलावों’ के लिए तैयार रहना होगा. पीईएस विश्वविद्यालय में छात्रों से बातचीत के दौरान चीन और ताइवान के मौजूदा हालात के प्रभावों को लेकर पूछे गये सवाल पर उन्होंने कहा कि यदि आप हिंद महासागर क्षेत्र समेत तटीय क्षेत्रों के आसपास चीन की व्यापक मौजूदगी की बात कर रहे हैं, तो मेरा मानना है कि इस बारे में भारत को आकलन और मूल्यांकन करना होगा, जिसमें हमारी अपनी सुरक्षा पर पड़ने वाला असर भी शामिल है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से हमने चीन को हमेशा हमारे उत्तर में स्थित देश की तरह देखा है. इस स्थिति पर हम नजर रखे रहते हैं. उन्होंने कहा कि जब कोई शक्ति क्षेत्रीय ताकत से महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रही हो, तो बहुत अस्थिरतापूर्ण बदलाव होते हैं और इन बदलावों के लिए हमारे देश को तैयार रहना होगा.
उन्होंने कहा कि जब हमारे हित शामिल हों, तो मुझे लगता है कि यह बात बहुत मायने रखती है कि हम अपने हितों की रक्षा करने के लिए बहुत स्पष्ट और दृढ़ हों. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के सवाल पर विदेश मंत्री ने कहा कि यह बड़ा मसला है और आसानी से ऐसा नहीं होने वाला, क्योंकि दुनिया उदार जगह नहीं है और देशों को जो मिलता है, उसके लिए बहुत संघर्ष करना होता है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आगे कहा कि भारतीय राजनयिकों का एक दल अफगानिस्तान गया है और भारत पड़ोसी देश से अपने ऐतिहासिक संबंधों के मद्देनजर लोगों के बीच संबंधों को जारी रखेगा. इस दल में राजदूत शामिल नहीं हैं. जयशंकर ने कहा कि भारतीय राजनयिकों ने पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान के हालात को देखते हुए वहां स्थित दूतावास को छोड़ दिया था और अब राजनयिकों का एक बैच वापस गया है. विदेश मंत्री के अनुसार, वहां नियुक्त अफगान कर्मी यथावत हैं और भारत उन्हें वेतन अदा करेगा.
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि यदि बेंगलुरु में अमेरिका का वाणिज्य दूतावास हो, तो अच्छा होगा. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक सिटी में कारोबारी समुदाय के साथ बातचीत में भी उनके समक्ष ऐसी मांग आई थी. हालांकि, उन्होंने कहा कि अंतिम निर्णय अमेरिका की सरकार का होगा. जयशंकर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि अमेरिकी नजरिये से यह (वाणिज्य दूतावास खोलना) सही होगा, लेकिन इसका फैसला मेरे मंत्रालय को नहीं करना. निर्णय अमेरिकी अधिकारियों को करना है. वैसे मैं अगले महीने अमेरिका जा रहा हूं. मैं इस बात को निश्चित रूप से दिमाग में रखूंगा.’