नयी दिल्ली : ‘ईशा फाउंडेशन’ के फाउंडर सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2021’ में विस्तार से बताया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में भारतीय मंदिरों को कैसे-कैसे खोखला किया गया? साथ ही बताया कि मंदिरों को पुजारियों के हाथों में क्यों सौंपा गया? मालूम हो कि ‘ईशा फाउंडेशन’ के फाउंडर सद्गुरु जग्गी वासुदेव लंबे समय से भारतीय मंदिरों के संरक्षण के लिए अभियान चला रहे हैं.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2021′ में सद्गुरु ने कहा कि, ”मैं रोजाना मंदिर नहीं जाता. साल-दो साल में मंदिर जाता हूं. किसी मंदिर के शक्तिशाली या खूबसूरत या संरचना में खास बात होती है, तो वहां अवश्य जाता हूं. आज तक मैंने अपने जीवनकाल में प्रार्थना नहीं की है. योग की संस्कृति मदद मांगना नहीं सिखाती. बल्कि, जीवन जीने की कला सिखाती है.”
उन्होंने कहा कि, ”भारतीय मंदिर पूजास्थल के रूप में ही नहीं, बल्कि स्थापत्य और संस्कृति से भी अद्भुत हैं. मैंने मोटर साइकिल से भारत की काफी यात्राएं की हैं. तमिलनाडु में मंदिरों का बेहद अलग स्थान है. तमिलनाडु के मंदिर शहर की धड़कन हैं. मंदिर से यहां शहर बसता है, ना कि लोग के कारण मंदिर निर्मित किये गये हैं.”
उन्होंने कहा कि, ”तमिनलाडु में ग्रेनाइट पर नक्काशी कर जैसे तराशा गया है, ऐसी अद्भुत कला पूरी दुनिया में कहीं नहीं है. ग्रेनाइट पर नक्काशी बेहद मुश्किल कला है.’ मंदिर के कारण ही बड़े शहर की पहचान मिली है.
सद्गुरु ने कहा कि तमिलनाडु के मंदिरों की हालत पर यूनेस्को ने भी चिंता जाहिर की है. मद्रास हाईकोर्ट में तमिलनाडु सरकार ने बताया है कि सूबे के 11,999 ऐसे मंदिर है, जहां वित्तीय संकट के कारण एक बार भी पूजा नहीं हुई है. वहीं, 34 हजार मंदिरों की सालाना आय 10,000 से भी कम बतायी है. करीब 37,000 मंदिर ऐसे थे, जहां पूजा, केयरटेकर, सिक्योरिटी और क्लिनिंग के लिए एक आदमी ही थे.
उन्होंने बताया कि मंदिरों के नाम पर पांच लाख एकड़ जमीन आवंटित है. करीब 2.33 करोड़ स्क्वॉयर फीट में निर्मित भवन हैं. इनसे करीब सालाना 128 करोड़ रुपये रेवेन्यू आता है. इनमें से 14 फीसदी ऑडिट और मैनेजमेंट को जाता है. एक से दो प्रतिशत पूजा और त्योहारों के कार्यक्रमों पर खर्च होता है.
गुरुद्वारा प्रबंधन की मिसाल देते हुए सद्गुरु ने कहा कि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी करीब 85 गुरुद्वारों का संचालन करती है, लेकिन उनका बजट 1000 करोड़ रुपये सालाना होता है. साथ ही समुदाय के प्रति जनसेवा भी उनका सराहनीय है. तमिलनाडु में हिंदुओं की जनसंख्या 85 प्रतिशत है. जबकि, कुल 44,000 मंदिरों से मात्र 128 करोड़ रुपये की वार्षिक आय हो रही है.