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Sadhu Vijay Das Died: आत्मदाह का प्रयास करने वाले संत विजय दास का निधन, बरसाना ले जाया जायगा पार्थिव शरीर

साधु विजय दास ने बीते दिनों 21 जुलाई को खुद को आग लगा ली थी. ऐसे में उनको बेहतर इलाज के लिए राजस्थान से दिल्ली शिफ्ट किया गया था, हालांकि देर रात उनकी मौत हो गई. विजय दास के पार्थव शरीर को बरसाना ले जाया जायगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 23, 2022 11:17 AM

राजस्थान के भरतपुर (Bharatpur) जिले के डीग इलाके में आत्मदाह का प्रयास करने वाले साधु विजय दास (Sadhu Vijay Das) का शुक्रवार देर रात नयी दिल्ली के अस्पताल में निधन हो गया. घायल साधु को बीते गुरुवार को गंभीर अवस्था में नयी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. दिल्ली में मौजूद पहाड़ी भरतपुर के उपखंड अधिकारी संजय गोयल ने साधु के निधन की पुष्टि की.

विजय दास का पार्थिव शरीर बरसाना ले जाया जाएगा

उन्होंने बताया कि साधु विजय दास का शुक्रवार देर रात 2.30 बजे निधन हो गया. पोस्टमार्टम के बाद विजय दास का पार्थिव शरीर शहर उत्तर प्रदेश के बरसाना ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार होगा. उल्लेखनीय है कि डीग क्षेत्र में खनन गतिविधियों को बंद करने की मांग को लेकर पसोपा में साधु-संतों का आंदोलन चल रहा था. इस आंदोलन के बीच बुधवार को साधु विजय दास ने आत्मदाह का प्रयास किया था. विजय दास को गंभीर हालत में इलाज के लिए जयपुर के एसएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां से उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया था.


साधु आत्मदाह मामले में जांच समिति गठित

आपको बता दें कि साधु की ओर से आत्मदाह के प्रयास किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी की ओर से एक जांच समिति गठित की गई है. भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, जो भरतपुर जाकर तथ्यों की जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. पार्टी प्रवक्ता के अनुसार समिति में अलवर के सांसद बाबा बालकनाथ, पूर्व मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और पूर्व विधायक राजकुमारी जाटव शामिल हैं.

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भाजपा कार्यकर्ताओं ने किया था प्रदर्शन

भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी साधु आत्मदाह मामले में राज्य सरकार के खिलाफ भरतपुर जिला कलेक्ट्रेट के बाहर धरना दिया था. भाजपा के एक स्थानीय नेता ने भरतपुर में संवाददाताओं से कहा था, “राजस्थान की कांग्रेस सरकार हिंदू विरोधी है. साधु संत 550 दिन से खनन के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए.”

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