13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Same Gender Marriage: समलैंगिक विवाह मामले में केंद्र ने दायर किया नया हलफनामा, राज्यों को पक्ष बनाने का आग्रह

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं करेगा और कहा कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है.

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिये जाने को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. इस बीच केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कोर्ट में नया हलफनामा दायर किया है.

नये हलफनामे में केंद्र ने राज्यों और केंद्र

समलैंगिक विवाह मामले में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दायर किया है. जिसमें केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक पक्ष बनाने का आग्रह किया है.

समलैंगिक विवाह मामले में कोर्ट ने कहा, ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं किया जाएगा

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं करेगा और कहा कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है, वह लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है.

Also Read: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में गर्मागर्म बहस, CJI बोले- 5 साल में चीजें बहुत कुछ बदलीं

केंद्र ने कोर्ट में दी पुरजोर दलील

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिये जाने का विरोध करते हुए केंद्र ने पुरजोर दलील कोर्ट में दी. केंद्र ने कहा, उसकी प्रारंभिक आपत्ति सुनी जाए और पहले फैसला किया जाए कि अदालत उस सवाल पर विचार नहीं कर सकती, जो अनिवार्य रूप से ‘संसद के अधिकार क्षेत्र’ में है. जिसपर नाराज प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, हम प्रभारी हैं और प्रारंभिक आपत्ति की प्रकृति और विचारणीयता इस पर निर्भर करेगी कि याचिकाकर्ताओं द्वारा क्या पेश किया जाता है.

कोर्ट ने ‘विशेष विवाह अधिनियम’ पर दलीलें पेश करने को कहा

याचिका से संबंधित मुद्दों को जटिल करार देते हुए पीठ ने मामले में पेश हो रहे वकीलों से धार्मिक रूप से तटस्थ कानून ‘विशेष विवाह अधिनियम’ पर दलीलें पेश करने को कहा. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 एक ऐसा कानून है, जो विभिन्न धर्मों या जातियों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है. यह एक सिविल विवाह को नियंत्रित करता है, जहां राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंजूरी देता है.

कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे केंद्र का पक्ष

केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत द्वारा समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की सूरत में विभिन्न ‘पर्सनल लॉ’ पर प्रभाव का उल्लेख किया और विशेष विवाह अधिनियम से उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें भी ‘पुरुष और महिला’ जैसे शब्द हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें