इन देशों में समलैंगिक विवाह को मिल चुकी है कानूनी मान्यता, देखें पूरी सूची

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. जिसमें प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस के कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं.

By ArbindKumar Mishra | April 18, 2023 2:26 PM

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर इस समय सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. केंद्र सरकार ने इसका जोरदार विरोध किया है और इसे कहा, कानून की मांग केवल शहरी एलीट क्लास की है. केंद्र ने यहां तक कह दिया कि विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए. आपको बता दें कि भारत में इस मुद्दे पर फिलहाल बहस जारी है, लेकिन दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को पहले से ही कानूनी मान्यता मिल चुकी है.

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिये जाने वाली याचिका पर पांच जजों की पीठ कर रही सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. जिसमें प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस के कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं.

इन देशों में मान्य है समलैंगिक विवाह

क्यूबा

एंडोरा

स्लोवेनिया

चिली

स्विटरलैंड

कोस्टा रिका

ऑस्ट्रिया

ताइवान

इक्वेडोर

बेल्जियम

ब्रिटेन

डेनमार्क

फिनलैंड

फ्रांस

जर्मनी

आइसलैंड

आयरलैंड

लक्समबर्ग

माल्टा

नॉर्वे

पुर्तगाल

स्पेन

स्वीडन

मेक्सिको

दक्षिण अफ्रीका

संयुक्त राज्य अमेरिका

कोलंबिया

ब्राज़िल

अर्जेंटीना

कनाडा

नीदरलैंड

न्यूज़ीलैंड

पुर्तगाल

उरुग्वे

एनसीपीसीआर ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का किया विरोध

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. याचिकाओं में कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग करते हुए आयोग ने कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम समान-लिंग वाले युगलों द्वारा बच्चे गोद लिए जाने को मान्यता नहीं देते. याचिका में कहा गया है, समान लिंग वाले माता-पिता की पारंपरिक लिंग रोल मॉडल के प्रति सीमित पहुंच हो सकती है और इसलिए, बच्चों की पहुंच सीमित होगी तथा उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा.

Also Read: समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में गर्मागर्म बहस, CJI बोले- 5 साल में चीजें बहुत कुछ बदलीं

Next Article

Exit mobile version