24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पर्सनल लॉ पर विचार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की अपील करने वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह विवाह संबंधी पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा.

Same Gender Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट कर दिया कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की अपील करने वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह विवाह संबंधी पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा और वकीलों से विशेष विवाह अधिनियम पर दलीलें पेश करने को कहा.

पीठ ने दलीलों से जुड़े मुद्दे को जटिल करार दिया

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दलीलों से जुड़े मुद्दे को जटिल करार दिया और कहा कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है, वह लैंगिकता के आधार पर पूर्ण नहीं है. पीठ ने कहा, सवाल यह नहीं है कि आपका लिंग क्या है. मुद्दा यह है कि ये कहीं ज्यादा जटिल है. इसलिए, यहां तक कि जब विशेष विवाह अधिनियम पुरुष और महिला कहता है, तब भी पुरुष और महिला की धारणा लैंगिक आधार पर पूर्ण नहीं है. पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं.

समलैंगिक विवाहों को वैध ठहराए जाने पर पीठ ने कही ये बात

शीर्ष अदालत द्वारा समलैंगिक विवाहों को वैध ठहराए जाने की स्थिति में हिंदू विवाह अधिनियम और विभिन्न धार्मिक समूहों के व्यक्तिगत कानूनों के लिए कठिनाइयां पैदा होने और इसके प्रभाव की ओर इशारा किए जाने पर पीठ ने कहा, तब हम पर्सनल लॉ को समीकरण से बाहर रख सकते हैं और आप सभी हमें विशेष विवाह अधिनियम पर संबोधित कर सकते हैं. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 एक ऐसा कानून है जो विभिन्न धर्मों या जातियों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है. यह एक नागरिक विवाह को नियंत्रित करता है जहां राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंजूरी देता है.

सॉलिसिटर जनरल ने किया ट्रांसजेंडर पर कानूनों का उल्लेख

केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ट्रांसजेंडर पर कानूनों का उल्लेख किया और कहा कि कई अधिकार हैं जैसे कि साथी चुनने का अधिकार, गोपनीयता का अधिकार, यौन अभिविन्यास चुनने का अधिकार और कोई भी भेदभाव आपराधिक मुकदमा चलाने योग्य है. सरकार के शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा, विवाह को हालांकि सामाजिक-कानूनी दर्जा प्रदान करना न्यायिक निर्णयों के माध्यम से संभव नहीं है. यह विधायिका द्वारा भी नहीं किया जा सकता है. स्वीकृति समाज के भीतर से आनी चाहिए. उन्होंने कहा कि समस्या तब पैदा होगी जब कोई व्यक्ति, जो हिंदू है, हिंदू रहते हुए समलैंगिक विवाह का अधिकार प्राप्त करना चाहता है.

हिंदू-मुस्लिम और अन्य समुदाय प्रभावित होंगे?

विधि अधिकारी ने कहा, हिंदू-मुस्लिम और अन्य समुदाय प्रभावित होंगे और इसलिए राज्यों को सुना जाना चाहिए. पीठ ने कहा, हम पर्सनल लॉ की बात नहीं कर रहे हैं और अब आप चाहते हैं कि हम इस पर गौर करें, क्यों? आप हमें इसे तय करने के लिए कैसे कह सकते हैं? हमें सब कुछ सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि तब यह मुद्दे को शॉर्ट सर्किट करने जैसा होगा और केंद्र का रुख यह सब सुनने का नहीं है. इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम मध्यमार्ग अपना रहे हैं. हमें कुछ तय करने के लिये सबकुछ तय करने की जरूरत नहीं है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें