केंद्र सरकार ने भले ही झारखंड में जैनियों के धार्मिक स्थल सम्मेद शिखरजी से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी, लेकिन अब भी जैन समुदाय की नाराजगी कम होने का नाम नहीं ले रहा है. दूसरी ओर इस मामले में अब आदिवासियों ने भी आवाज बुलंद कर ली है. बुधवार को हैदराबाद में सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाने के विरोध में जैन समुदाय के लोगों ने रैली निकाली. जिसमें बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोग शामिल हुए. एक प्रदर्शनकारी हर्ष जैन कहते हैं, हम श्री सम्मेद शिखरजी (जैनों के धार्मिक स्थल) को पर्यटन स्थल घोषित करने के झारखंड सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं.
आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को मरांग बुरु करार दिया
केंद्र सरकार ने पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल बनाये जाने पर रोक लगा दिया और झारखंड सरकार को इसकी शुचिता अक्षुण्ण रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिये. लेकिन अब आदिवासी भी मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने इस इलाके पर अपना दावा जताया है तथा इसे मुक्त करने की मांग की है. संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ करार दिया है और उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है.
क्या है जैन समुदाय की मांग और क्यों कर रहे आंदोलन
देश भर के जैन धर्मावलम्बी पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, उन्हें डर है कि उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन करने वाले पर्यटकों का तांता लग जाएगा.
Hyderabad| People of Jain community held rally to protest against the turning of Sammed Shikharji into a tourist spot
"We're protesting against Jharkhand govt's decision to declare Shri Sammed Shikharji (religious site of Jains) as a tourist spot," says Harsha Jain, a protestor pic.twitter.com/aJ8Y7VbSbq
— ANI (@ANI) January 11, 2023
आदिवासियों ने विद्रोह की दी धमकी
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा. उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेजीकरण के आधार पर कदम उठाए. (वर्ष) 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है. जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था.