Sanjay Gandhi: सिर पर बाल भले ही कम हों लेकिन कलम कान के नीचे तक नजर आता था. यह शख्स भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ अमूमन दिखता था. उसने इंदिरा गांधी को इतना प्रभावित कर रखा था कि हर बात उसकी सुनी जाती थी. शायद 1975 की इमरजेंसी भी उसी का नतीजा रही. जी हां, आपने सही समझा यहां बात हो रही है इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की जो अपनी मां इंदिरा गांधी से हर बात मनवा लेते थे.
बात 12 जून 1975 की करें तो, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने सलाहकार डीपी धर की मौत के बाद उनके परिवार को सांत्वना देने गईं थीं. इसके बाद जैसे ही वह ऑफिस लौटीं और अपने काम में व्यस्त हुईं तो राजीव गांधी एक कागज लेकर इंदिरा के पास पहुंचे. इस वक्त घड़ी की छोटी सुई 3 पर थी और बड़ी सुई 12 पर यानी दोपहर तीन बजे का वक्त था. राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी को बताया कि आपको 1971 के चुनाव में प्रतिबंधित साधनों का प्रयोग करने का दोषी पाते हुए चुनाव रद्द कर दिया गया है. यह बात सुनकर इंदिरा गांधी चुप हो गईं.
कोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद का त्याग करना ही पड़ता. इस बीच इंदिरा के पास पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे और कानून मंत्री एचआर गोखले पहुंचे. इस दौरान इंदिरा गांधी चिंतित मुद्रा में बैठी हुईं थीं. वहां इंदिरा गांधी की कैबिनेट के कई मंत्री भी पहुंचे जिनके सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे इस्तीफा देना होगा. ये सारी बातें जब संजय गांधी के कानों तक पहुंचीं तो उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया और कहा कि यदि आप इस्तीफा देंगी तो विपक्ष आपको किसी न किसी बहाने जेल में डाल देगा. इंदिरा गांधी को संजय की बातों में आ गईं और इमरजेंसी का दौर देश को देखना पड़ा.
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जहां जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे थे. वहीं दूसरी ओर संजय गांधी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सचिव आरके धवन ने फार्म में नजर आये. उन्होंने डीटीसी बसों से लोगों को बुलाकर इंदिरा के समर्थन में रैलियां निकाली. जय प्रकाश नारायण इस जंग में भारी पड़ते नजर आये. बताया जाता है कि 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी यानी जय प्रकाश नारायण की रैली होनी थी. इसे लेकर इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी को विद्रोह के इनपुट प्राप्त हो चुके थे. इन सबके बाद देश में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया गया.
बताया जाता है कि संजय गांधी जहां इमरजेंसी के पक्ष में थे, वहीं राजीव गांधी इससे इत्तेफाक नहीं रखते थे. संजय ने मुख्यमंत्रियों को एक लिस्ट सौंपी, जिसमें विरोध करने वालों के नाम थे. विपक्षी नेताओं को चुन-चुनकर दबोचा गया और सलाखों के पीछे डाला गया. राजीव गांधी ने जब यह बात मां के कानों में डाली तो इंदिरा गांधी पर इसका ज्यादा असर नहीं हुआ.
1. इंदिरा गांधी के विरोधियों को जेल में डाला जाने लगा.
2. अखबार इंदिरा के खिलाफ खबर नहीं चला सकें, इसलिए देश के सभी अखबारों की बिजली आपूर्ति को रोकने का काम दिया गया.
3. जबरन नसबंदी पर जोर दिया गया जिससे लोग बेवजह परेशान हुए. 120 रुपये का लालच देकर नसबंदी कराया जाने लगा.