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School Reopen : लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लास से वंचित रह गये पांच राज्यों के 80 फीसदी बच्चे

School reopen: लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान देश के पांच राज्यों के सरकारी स्कूलों (government Schools) के 80 फीसदी बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित रह गये. वो ऑनलाइन क्लास (Online class) भी नहीं कर पाये. इस बात का खुलासा ऑक्सफेम इंडिया (Oxfam India) के द्वारा देश के पांच राज्यों में किये गये सर्वे में हुआ है. सर्वे के दौरान सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के 80 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाये. बिहार जिन अभिभावकों से बात की गयी उन सभी ने एक सुर में कहा कि उनके बच्चे ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पायें.

School reopen: लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान देश के पांच राज्यों के सरकारी स्कूलों (government Schools) के 80 फीसदी बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित रह गये. वो ऑनलाइन क्लास (Online class) भी नहीं कर पाये. इस बात का खुलासा ऑक्सफेम इंडिया (Oxfam India) के द्वारा देश के पांच राज्यों में किये गये सर्वे में हुआ है. सर्वे के दौरान सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के 80 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाये. बिहार जिन अभिभावकों से बात की गयी उन सभी ने एक सुर में कहा कि उनके बच्चे ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पायें.

इसके पीछे जो सबसे बड़ी वजह बतायी गयी वह यह थी कि अधिकांश परिवारों के बच्चों के पास ऑनलाइन क्लास करने के लिए संसाधन नहीं थे. चार सितंबर 2020 को जारी किये गये इस रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में यह सर्वे किया गया. मई और जून के बीच किये गये इस सर्वेक्षण में 1158 अभिभावक और 488 शिक्षकों को शामिल किया गया था.

हालांकि इससे पहले इंडिया स्पेंड ने बताय था कि भारत के केवल 15 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट तक पहुंच है और ये संख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों जैसे हाशिए के सामाजिक समूहों में और भी कम है. लॉकडाउन के दौरान डिजिटल माध्यमों की कमी के कारण लड़कियों की शिक्षा पर भी खासा असर पड़ा.

छात्रों के पास सबसे बड़ी समस्या यह रही ही कि लॉकडाउन के दौरान ना ही उनके पास किताबें थी और ना ही ऑनलाइन क्लास की सुविधा. ऑक्सफेम के सर्वे में 80 फीसदी अभिभावकों ने बताया कि ऑनलाइन क्लास में सहायता करने के लिए उनके पास पाठ्यपुस्तकें भी नहीं थी. 71 फीसदी शिक्षक जो उस सर्वे में शामिल हुए थे उन्होंने कहा कि ऑनलाइन क्लास के लिए बच्चों के पास किताब होना जरूरी है.

बिजनेस स्टैंडर्ड़ के मुताबिक एनजीओ प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के सीइओ ने कहा कि डिजिटल वर्गीकरण कोई नयी बात नहीं है, पर बुरे दौर में इसका नुकसान सबसे अधिक उन्हें होता है जो डिजिटल नहीं है. क्योंकि किसी ने यह कभी नहीं सोचा था कि स्कूल कभी इतने लंबे समय के लिए बंद हो सकते हैं.

बता दें कि कोरोना महामारी के के प्रसार को रोकेने के लिए देशभर में लॉकडाउन किया गया. मार्च में स्कूल बंद हो गये, इसके बाद जून महीने से ऑनलाइन क्लास शुरू हो गये. ऑक्सफेम ने अपने अध्ययन में यह भी पता लगाने का प्रयास किया है कि इस दौरान छात्रों पर किस तरह का प्रभाव पड़ा.

ऑक्सफेम ने अपने सर्वे में पाया कि कोरोना के प्रभाव से ना केवल सरकारी स्कूलों के बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा बल्कि वो अपने अधिकार से भी वंचित रहे. इस दौरान उन्हें शिक्षण सामग्री नहीं मिली. मिड डे मील नहीं मिला. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के दिये गये आदेश में बच्चों को आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कहा था. इसके बावजूद सर्वेक्षण में पाया गया कि 35 फीसदी बच्चों को मिड डे मील नहीं मिला.

इस दौरान निजी स्कूलों की स्थिति भी अच्छी नहीं थी. पर निजी स्कूलों मे प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले शिक्षा प्रदान करने कि स्थिति बेहतर रही. निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 59 फीसदी बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि ल़ॉकडाउन के दौरान पढ़ाई नहीं हुई है.

Posted By: Pawan Singh

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