नौसेना में शामिल हुआ साइलेंट किलर INS Karanj, हिंद महासागर में चीन को देगा मुंहतोड़ जवाब, जानिए क्या है इसकी खासियत
यह बिना किसी आहट के दुश्मन खेमे में पहुंचकर ताबह करने की क्षमता रखती है. INS Karanj करीब 70 मीटर लंबी, 12 मीटर ऊंची और 1565 टन वजनी है. फ्रांस की मदद से मझगांव डॉकयार्ड लिमिटेड यानी एमडीएल ने स्कोर्पिन क्लास की इस तीसरी पनडुब्बी का निर्माण किया है.
भारतीय नौसेना की समुद्री ताकत कई गुना में एक और इजाफा होने जा रहा है. आज स्कोर्पिन क्लास सबमरीन आईएनएस करंज (INS Karanj) नौसेने के बेड़े में शामिल होने गया है. आईएनएस करंज को भारतीय नौसेना में मुंबई में नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह और एडमिरल (सेवानिवृत्त) वीएस शेखावत की उपस्थिति में कमीशन दिया गया. INS Karanj को साइलेंट किलर कहा जा रहा है.
Scorpene-class submarine INS Karanj commissioned into Indian Navy in Mumbai, in presence of Chief of Naval Staff Admiral Karambir Singh and Admiral (Retired) VS Shekhawat pic.twitter.com/8Sk520fhzR
— ANI (@ANI) March 10, 2021
यह बिना किसी आहट के दुश्मन खेमे में पहुंचकर ताबह करने की क्षमता रखती है. INS Karanj करीब 70 मीटर लंबी, 12 मीटर ऊंची और 1565 टन वजनी है. फ्रांस की मदद से मझगांव डॉकयार्ड लिमिटेड यानी एमडीएल ने स्कोर्पिन क्लास की इस तीसरी पनडुब्बी का निर्माण किया है.आईएनएस करंज ऐसे समय में भारतीय नौसेना को मिलने जा रही है, जब हिंद महासागर में चीनी नौसेना और उसका जंगी बेड़ा भारतीय सेना को एक बड़ी चुनौती दे रहा है.
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वहीं DRDO आइएनएस करंज पनडुब्बी को भारतीय नौसेना में शामिल किये जाने के एक दिन पहले सोमवार रात को मुंबई में एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआइपी) तकनीक का सफल परीक्षण किया. इस परीक्षण को नौसेना की ताकत में इजाफा करनेवाला बड़ा कदम माना जा रहा है. यह तकनीक भारतीय पनडुब्बियों को समुद्र के भीतर और भी अधिक घातक बना देगी. बता दें कि डीआरडीओ की इस तकनीक को फ्रांस से मदद मिली है, जो कलवरी क्लास मैन्युफैक्चरिंग के संदर्भ में भारतीयों के संपर्क में थे.
AIP तकनीक से साइलेंट किलर बनेगीं पनडुब्बियां
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एआइपी या मरीन प्रोपल्शन तकनीक गैर-परमाणु पनडुब्बियों को वायुमंडलीय ऑक्सीजन तक पहुंच के बिना संचालित करने की अनुमति देती है.
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एआइपी से लैस पनडुब्बी को अपनी बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर नहीं आना पड़ता है और यह लंबे समय तक पानी के नीचे रहती है.
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न्यूक्लियर सबमरीन जहां शिप रिएक्टर की वजह से शोर मचाती हैं, वहीं एआइपी तकनीक से लैस पनडुब्बी एक घातक चुप्पी बनाये रखती है.
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यह पनडुब्बियों के डीजल-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम को बढ़ाती है. नयी तकनीक भारतीय सबमरीन को और भी ज्यादा घातक बनायेंगी.