नई दिल्ली : जर्मनी के फॉस्टर होम में फंसी बेबी अरिहा को वापस भेजने के लिए भाजपा-कांग्रेस समेत करीब 19 सियासी दलों के 59 सांसदों ने संयुक्त रूप से भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन को चिट्ठी लिखी है. इन सियासी दलों ने जर्मनी के राजदूत से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि बेबी अरिहा पिछले 20 महीने से बर्लिन के फास्टर होम में फंसी हुई है. बेबी अरिहा शाह को जल्द से जल्द भारत वापस लाया जाए. बेबी अरिहा शाह को भारत वापस भेजने के लिए जर्मन राजदूत को चिट्ठी लिखने वाली पार्टियों में सत्तारूढ़ भाजपा, कांग्रेस, वामपंथी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), शिवसेना (एकनाथ शिंदे) समेत 19 राजनीतिक दल के सांसद शामिल हैं.
वापसी में देरी होने बेबी अरिहा के लिए अपूरणीय क्षति
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन को लिखी चिट्ठी में लोकसभा और राज्यसभा सांसदों ने कहा कि बेबी अरिहा को उसका अपना देश, अपने लोग, अपनी संस्कृति और अपने वातावरण में पलने-बढ़ने के लिए भारत वापस लाना आवश्यक है. उन्होंने तर्क दिया कि भारत में भेजने में होने वाली कोई भी देरी बेबी अरिहा के लिए अपूरणीय क्षति होगी.
भारत सरकार ने भी जर्मनी से किया है अनुरोध
इसके साथ ही, भारत ने सरकार ने भी शुक्रवार को जर्मनी से बेबी अरिहा को जल्द से जल्द वापस भेजने का अनुरोध किया है, जो 20 महीने से भी अधिक समय से बर्लिन के फास्टर होम में फंसी हुई है. भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि बच्ची का उसके भाषाई, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश में रहना महत्वपूर्ण है. जर्मन अधिकारियों ने 23 सितंबर, 2021 को सात महीने की अरिहा शाह को यह आरोप लगाते हुए अपनी कस्टडी में ले लिया था कि उसके माता-पिता ने उसे परेशान किया है.
युगेनतम्त ने लगाया है प्रताड़ित करने का आरोप
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी की बाल कल्याण एजेंसी ‘युगेनतम्त’ ने अरिहा शाह के माता-पिता पर बच्ची को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए उसकी देखभाल की जिम्मेदारी (कस्टडी) अपने हाथों में ले ली थी. उस समय अरिहा महज सात महीने की थी. ‘युगेनतम्त’ ने अरिहा के माता-पिता से उसकी देखभाल की जिम्मेदारी उस समय अपने हाथों में ले ली थी, जब मूलाधार (किडनी और अंडाशय के बीच का हिस्सा) में चोट लगने के कारण उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.
आ गया है बेबी अरिहा को स्वदेश भेजने का समय
भारतीय सांसदों ने जर्मन राजदूत को लिखी चिट्ठी में कहा है कि हम आपके देश की किसी भी एजेंसी पर आक्षेप नहीं लगा रहे हैं. हम यह मान रहे हैं कि उस वक्त जो कुछ भी किया गया था, उसे बच्ची के लिए सबसे ज्यादा हितकर माना गया था. सांसदों ने लिखा है, “हम आपके देश की कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करते हैं, लेकिन उस परिवार के किसी भी सदस्य के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं है. इसलिए समय आ गया है कि बेबी अरिहा को स्वदेश भेज दिया जाए. विभिन्न दलों के सांसदों ने इस पत्र का समर्थन किया है. इनमें हेमा मालिनी (भाजपा), अधीर रंजन चौधरी (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (एनसीपी), कनिमोई करुणानिधि (डीएमके), महुआ मोइत्रा (टीएमसी), अगाथा संगमा (एनपीपी), हरसिमरत कौर बादल (शिअद), मेनका गांधी (भाजपा), प्रणीत कौर (कांग्रेस), शशि थरूर (कांग्रेस) और फारूक अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस) शामिल हैं.
अस्पताल ने बाल यौन शोषण से किया इनकार
सांसदों ने कहा कि अरिहा के अभिभावक धरा और भावेश शाह बर्लिन में थे, क्योंकि उसके पिता वहां की एक कंपनी में कार्यरत थे. उन्होंने कहा कि परिवार को अब तक भारत लौट आना चाहिए था, लेकिन कुछ दर्दनाक घटनाक्रमों की वजह से ऐसा नहीं हो सका. चिट्ठी में कहा गया है कि अभिभावकों के खिलाफ बाल यौन शोषण के आरोपों में जांच शुरू की गई थी और फरवरी 2022 में उन पर कोई आरोप लगाए बिना मामला बंद कर दिया गया था. इसमें कहा गया है कि अस्पताल ने भी अपनी रिपोर्ट में बच्ची के यौन शोषण से इनकार किया था.
स्थायी कस्टडी के लिए अदालत गई युगेनतम्त
सांसदों ने कहा कि इन सबके बावजूद बच्ची को उसके माता-पिता को नहीं लौटाया गया और ‘युगेनतम्त’ ने उसकी स्थायी अभिरक्षा (कस्टडी) के लिए जर्मनी की अदालतों का रुख कर दिया. ‘युगेनतम्त’ का कहना है कि भारतीय अभिभावक अपने ही बच्ची की देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं और बच्ची जर्मन पालकों की देखरेख में ज्यादा अच्छे से रहेगी. सांसदों ने कहा कि अदालत की ओर से नियुक्त मनोवैज्ञानिक की ओर से माता-पिता के मूल्यांकन के चलते मामला डेढ़ साल से अधिक समय तक खिंच गया है.
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15 दिन पर बच्ची से मिल सकते हैं माता-पिता
सांसदों ने आगे कहा कि बच्ची को एक देखभालकर्ता से दूसरे के पास स्थानांतरित करने से उसे गहरा आघात लगेगा. माता-पिता को केवल हर 15 दिनों पर उससे मिलने की अनुमति है. इन मुलाकातों के वीडियो दिल दुखा देने वाले हैं और ये बच्ची के अपने माता-पिता के साथ गहरे लगाव और अलगाव के दर्द को जाहिर करते हैं. सांसदों ने कहा कि एक और पहलू है. हमारे अपने सांस्कृतिक मानदंड हैं. बच्ची एक जैन परिवार से ताल्लुक रखी है, जो पूर्ण शाकाहारी है. बच्ची को विदेशी संस्कृति में पाला जा रहा है, उसे मांसाहारी खाना खिलाया जा रहा है. यहां भारत में होने के नाते आप इस बात को बेहतर समझ सकते हैं कि यह हमारे लिए कितना अस्वीकार्य है.