सुप्रीम कोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र और सीएए विरोधी कार्यकर्ता शरजील इमाम की याचिका पर शुक्रवार को दिल्ली सरकार से जवाब मांगा. शरजील ने कथित भड़काऊ भाषणों के कारण उसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह के आरोप लगाने वाली सभी प्राथमिकी को एकसाथ करने का अनुरोध किया है.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से शरजील की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार को 10 दिन के भीतर इस पर जवाब देने का निर्देश दिया. शरजील की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में दिये गये दो भाषणों के संबध में अलग अलग राज्यों में पांच मामले दर्ज हैं.
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पीठ ने कहा कि पुलिस को अगर किसी संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी मिलती है तो उसमें प्राथमिकी दर्ज करने में कुछ भी गलत नहीं है. दवे ने वरिष्ठ पत्रकार अर्नब गोस्वामी के मामले में शीर्ष अदालत के 24 अप्रैल के आदेश का जिक्र किया जिसमें कोर्ट ने एक मामले को छोड़ उनके खिलाफ दायर तीन प्राथमिकी और 11 शिकायतों पर रोक लगा दी थी. उन्होंने कहा कि इसी तरह की राहत उन्हें भी दी जा सकती है.
उन्होंने कहा कि शरजील इमाम के खिलाफ दिल्ली, उत्तर प्रदेश, असम, मणिपुर और अरूणाचल प्रदेश में मामले दर्ज किये गये हैं और उन पर राष्ट्रद्रोह का आरोप है. हाल ही में दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत भी मामला दर्ज किया है.
पीठ ने दवे से कहा कि वह अपनी याचिका की एक प्रति दिल्ली सरकार के स्थाई वकील को सौंपे और इसके साथ ही इस मामले को दस दिन बाद आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया. शरजील इमाम ने अपनी याचिका में विभिन्न राज्यों में दर्ज सभी पांच प्राथमिकी एक में मिलाने और इसकी जांच दिल्ली की एक एजेन्सी को सौंपने का अनुरोध किया है. शरजील इमाम को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने 28 जनवरी को बिहार के जहानाबाद से राष्ट्रद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इतिहास अध्ययन केन्द्र से पीएचडी कर रहे शरजील के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान कथित भड़काऊ भाषणों के वीडियो सामने आने के बाद उसके खिलाफ राष्ट्रद्रोह और दूसरे आरोपों में मामला दर्ज किया गया था. शरजील के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने 25 जनवरी को भारतीय दंड सहिता की धारा 124ए (राष्ट्रद्रोह) और धारा 153ए (जाति, धर्म, वर्ण और आवास के आधार पर कटुता पैदा करने के प्रयास) सहित कई अन्य आरापों में मामला दर्ज किया था.