Shikshak Diwas 2020 : देश का मान बढ़ा रहे भारतवंशी शिक्षक, दुनिया भर में है इनका नाम
Shikshak Diwas 2020, Teachers Day, 05 september : अपने ज्ञान और प्रतिभा के दम पर भारतीय आज पूरी दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं. मौजूदा समय में अनेक भारतवंशी व प्रवासी भारतीय अलग-अलग देशों के प्रमुख संवैधानिक पदों से लेकर बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के सीइओ तक की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. शिक्षण के क्षेत्र में भी भारतवंशी किसी से पीछे नहीं हैं. भारतवंशी शिक्षक अपने ज्ञान से न सिर्फ पूरी दुनिया को लाभान्वित कर रहे हैं, बल्कि अपने देश का नाम भी ऊंचा कर रहे हैं. शिक्षक दिवस के मौके पर जानते हैं ऐसे ही कुछ भारतवंशी शिक्षकों की उपलब्धि.
Shikshak Diwas 2020, Teachers Day, 05 september : अपने ज्ञान और प्रतिभा के दम पर भारतीय आज पूरी दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं. मौजूदा समय में अनेक भारतवंशी व प्रवासी भारतीय अलग-अलग देशों के प्रमुख संवैधानिक पदों से लेकर बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों के सीइओ तक की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. शिक्षण के क्षेत्र में भी भारतवंशी किसी से पीछे नहीं हैं. भारतवंशी शिक्षक अपने ज्ञान से न सिर्फ पूरी दुनिया को लाभान्वित कर रहे हैं, बल्कि अपने देश का नाम भी ऊंचा कर रहे हैं. शिक्षक दिवस के मौके पर जानते हैं ऐसे ही कुछ भारतवंशी शिक्षकों की उपलब्धि.
फील्ड्स मेडल जीतनेवाले भारतीय मूल के दूसरे गणितज्ञ हैं अक्षय
अक्षय वेंकटेश गणित, संस्थान : इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडी, न्यू जर्सी
भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई गणितज्ञ अक्षय वेंकटेश का जन्म वर्ष 1981 में दिल्ली के एक तमिल परिवार में हुआ था. अक्षय की मां श्वेता वेंकटेश कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर हैं. जब अक्षय सिर्फ दो वर्ष के थे, तब से ही उनका परिवार ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में जाकर बस गया. अभी अक्षय अमेरिका के न्यू जर्सी स्थित इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडी में गणित के प्रोफेसर हैं. गणित का नोबेल प्राइज कहे जाने वाले फील्ड्स मेडल जीतने वाले मंजुल भार्गव के बाद अक्षय भारतीय मूल के दूसरे व्यक्ति हैं.
यह अवार्ड उन्हें वर्ष 2018 में मिला था. स्कूल के समय से ही वे फिजिक्स और मैथ्स के कई ओलिंपियाड में हिस्सा लेते रहे और मेडल भी जीतते रहे. मात्र 13 वर्ष की ही उम्र में अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर अक्षय ने यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में दाखिला ले लिया था. वर्ष 2002 में मात्र 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी पूरी कर ली. अमेरिका स्थित एमआइटी से पोस्ट डॉक्ट्रल उपाधि हासिल करने के बाद अक्षय ने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में पढ़ाने की शुरुआत की. इस दौरान नंबर थ्योरी पर उनके रिसर्च से पूरी दुनिया में गणितज्ञों के बीच अक्षय को पहचान मिली.
वर्ष 2010 में अक्षय वेंकटेश हैदराबाद के इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ मैथेमेटिक्स में स्पीकर के रूप में भाग लेने भारत भी आये थे. अक्षय ने शिक्षक के रूप में काउंटिंग, इक्वीडिस्ट्रीब्यूशन, नंबर थ्योरी, रिप्रजेनटेशन थ्योरी, अलजेब्रिक टोपोलॉजी जैसे विषयों पर काफी गहन शोध किया है. रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन की ओर से उन्हें फेलोशिप ऑफ द रॉयल सोसाइटी (एआरएस) मिली हुई है. यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 2019 में अक्षय को डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की है. इनके अलावा दर्जनों प्रतिष्ठित अवार्ड्स अक्षय वेंकटेश के नाम दर्ज हैं.
प्रतिष्ठित शिक्षण पुरस्कार जीत चुकी हैं जयश्री
जयश्री रविशंकर एजुकेशन टेक्निक, संस्थान : न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी, सिडनी
जयश्री रविशंकर ने एक शिक्षक के रूप में अपनी लगन और परिश्रम से अपने देश का मान बढ़ाने का काम किया है. इसी वर्ष मार्च महीने में जयश्री को ‘ऑस्ट्रेलियन अवार्ड्स फॉर यूनिवर्सिटी टीचिंग-2019’ से सम्मानित किया गया. इसे ऑस्ट्रेलिया में शिक्षण के क्षेत्र में दिया जानेवाला सर्वोच्च अवार्ड माना जाता है. जयश्री अभी ऑस्ट्रेलिया के सिडनी स्थित न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर व एजुकेशन डिपार्टमेंट की डिप्टी हेड हैं. उनको खासकर शिक्षा व शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जाना जाता है.
उन्होंने ऑनलाइन शिक्षण के लिए नयी तकनीक विकसित करने में खास योगदान दिया है. इससे पहले उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को स्किल बेस्ड और ज्यादा रोजगारपरक बनाने की स्ट्रेटजी पर भी काम किया था. मूलत: तमिलनाडु से आने वाली जयश्री ने अपना ग्रेजुएशन मद्रास यूनिवर्सिटी से पूरा किया और मास्टर्स व पीएचडी चेन्नई के अन्ना यूनिवर्सिटी से की है. इसके बाद जयश्री ने 10 वर्षों तक अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई में टीचिंग की. फिर वर्ष 2010 में जयश्री ने सिडनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स में लेक्चरर बनीं, तबसे जयश्री ऑस्ट्रेलिया में ही शिक्षण कार्य कर रही हैं.
नयी शिक्षा नीति तैयार करने में मंजुल ने दिया योगदान
मंजुल भार्गव, गणित- संस्थान : प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, वॉशिंगटन
गणित के शिक्षक मंजुल भार्गव का जन्म वर्ष 1974 में कनाडा में हुआ था. कुछ दिनों बाद उनके माता-पिता अमेरिका शिफ्ट हो गये, इसलिए मंजुल भी अमेरिका में ही पले-बढ़े, लेकिन इस दौरान वे अपने नाना-नानी के पास राजस्थान आते रहे. इस तरह भारत से भी मंजुल का जुड़ाव बना रहा. उन्होंने राजस्थान में तबला और सितार बजाना भी सीखा. पिछले दिनों 34 वर्ष बाद आयी भारत की नयी शिक्षा नीति को तैयार करने वाले आठ सदस्यों की टीम में मंजुल भी शामिल थे. मंजुल अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर हैं, वहां से लीव लेकर भारत की नयी शिक्षा नीति बनाने में वे अपना योगदान दे रहे थे.
मंजुल ने अपना ग्रेजुएशन भी प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से ही किया था. गणित का नोबेल प्राइज कहे जाने वाले फील्ड्स मेडल को जीतने वाले वे भारतीय मूल के पहले गणितज्ञ हैं. यह अवार्ड उन्हें वर्ष 2014 में मिला था. मंजुल प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में नंबर थ्योरी के एक्सपर्ट हैं. मंजुल के मुताबिक, बच्चों को गणित के अंकों से नहीं, बल्कि बोरियत से डर लगता है. इस बात को ध्यान में रख कर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के लिए जब मंजुल ने मैजिक ट्रिक्स, गेम्स और पोएट्री पर आधारित मैथ्स करिकुलम डिजाइन किया, तो स्टूडेंट्स को मैथ्स खेल लगने लगा.
शिक्षण के रास्ते आइएमएफ की चीफ इकोनॉमिस्ट बनीं गीता
गीता गोपीनाथ अर्थशास्त्र, संस्थान : हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, मैसाचुसेट्स
गीता गोपीनाथ ने शिक्षण के रास्ते एक बड़ा मुकाम हासिल किया है. गीता अभी अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आइएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री हैं. इस मुकाम तक पहुंचने वाली गीता दुनिया की पहली महिला हैं. वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में टेन्योर प्रोफेसर पद तक पहुंचने वाली तीसरी महिला और अमर्त्य सेन के बाद दूसरी भारतीय हैं. आइएमएफ की 11वीं चीफ इकोनॉमिस्ट बनाये जाने की वजह से इस समय गीता हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक सर्विस लीव पर हैं. मूलत: केरल की रहनेवाली गीता का जन्म वर्ष 1971 में कोलकाता में हुआ था. दरअसल, गीता के पिता टीवी गोपीनाथ कोलकाता में ही नौकरी करते थे.
गीता की स्कूली पढ़ाई कोलकाता में ही शुरू हुई, लेकिन बांग्लादेश बनने की वजह से उपजे तनाव के कारण गीता के पिता 1980 में नौकरी छोड़ कर परिवार के साथ मैसोर चले गये. गीता ने अर्थशास्त्र में अपनी रुचि के चलते दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र विषय में ग्रेजुएशन किया. वर्ष 1990-91 के समय जब वे डीयू से ग्रेजुएशन कर रही थीं, तब भारत आर्थिक मसलों से जूझ रहा था. दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स करने के बाद गीता आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गयीं. वर्ष 2001 में उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की.
मैनेजमेंट गुरु के रूप में सौमित्र को जानती है दुनिया
सौमित्र दत्ता प्रबंधन, संस्थान : कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क
वर्ष 2012 में सौमित्र अमेरिका के किसी बड़े बिजनेस स्कूल का डीन बनने वाले अमेरिका से बाहर के पहले व्यक्ति थे. सौमित्र कार्नेल यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध सैमुअल कुर्टिस जॉनसन कॉलेज ऑफ बिजनेस के 11वें डीन बने. अभी वे कार्नेल यूनिवर्सिटी में ही मैनेजमेंट, बिजनेस एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर हैं. सौमित्र का जन्म वर्ष 1963 में चंडीगढ़ शहर में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से पूरी हुई.
वर्ष 1985 में सौमित्र ने आइआइटी, दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग व कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की. आज सौमित्र को ऑक्सफर्ड, कैंब्रिज जैसे दुनियाभर के कई प्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में बतौर गेस्ट फैकल्टी पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया जाता है. अपने देश से भी सौमित्र का बेहद लगाव है. देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने आइआइटी, दिल्ली को एक करोड़ रुपये का फंड अपनी तरफ से दिया है.
Posted By : Sumit Kumar Verma