Shraddha Murder Case: क्या है लाई डिटेक्टर टेस्ट, कितना भरोसेमंद हैं नतीजे, जानें कैसे काम करती है यह
Explainer- Shraddha Murder Case: पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान यह देखा जाता है कि यह देखा जाता है कि सवालों के जवाब के दौरान आदमी सच बोल रहा है या झूठ. पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान सांस लेने की दर, नाड़ी की गति, ब्लड प्रेशर आदि बातों पर ध्यान दिया जाता है. आइए जानते हैं कैसे काम करती है लाई डिटेक्टर मशीन.
Shraddha Murder Case: अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा वालकर की हत्या (Shraddha Murder Case) के आरोपी आफताब अमीन पूनावाला के खिलाफ सबूत जुटाने में पुलिस जुटी है. आफताब से पूछताछ कर पुलिस जंगल और तालाब खंगाल रही है. वहीं, सच जानने के लिए आरोपी का लाई डिटेक्टर टेस्ट (Lie Detector Test) भी हो रहा है. जी हां, श्रद्धा हत्याकांड में आरोपी आफताब पूनावाला का पॉलीग्राफ टेस्ट यानी लाई डिटेक्टर टेस्ट (Lie Detector Test) हो रहा है. इस टेस्ट का पहला सेशन बुधवार को पूरा हो गया था.
लाई डिटेक्टर टेस्ट: गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस ने पॉलीग्राफ टेस्ट (Lie Detector Test) के लिए कोर्ट में अर्जी दी थी. इस अर्जी पर कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान यह देखा जाता है कि यह देखा जाता है कि सवालों के जवाब के दौरान आदमी सच बोल रहा है या झूठ. पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान सांस लेने की दर, नाड़ी की गति, ब्लड प्रेशर आदि बातों पर ध्यान दिया जाता है. आइए जानते हैं कैसे काम करती है लाई डिटेक्टर मशीन.
कैसे होता है पॉलीग्राफ टेस्ट: पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान इंसान की कुछ बातों पर गौर किया जाता है. दरअसल, जब इंसान झूठ बोलता है तो उसके दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर बदलता है. उसे पसीना आता है. साथ ही आंख एक जगह स्थिर नहीं रहता है. ऐसे में टेस्ट के दौरान इंसान के सांस लेने की दर, उसके नाड़ी की गति, खून का दबाव, और टेस्ट के दौरान उसे कितना पसीना आ रहा है इन बातों पर गौर किया जाता है. कभी-कभी जवाब देने वाले शख्स के हाथ और पैर की हरकतों पर भी गौर किया जाता है. सवाल-जवाब के दौरान शख्स की छाती और उंगलियों पर मशीन के प्वाइंट्स जोड़े जाते हैं. पहले उससे सामान्य सवाल पूछे जाते हैं फिर उससे उसके अपराध से जुड़े सवाल किये जाते हैं.
कैसे सामने आता है सच: जब पॉलीग्राफ टेस्ट शुरू किया जाता है तो पहले शख्स से आसान और उससे जुड़े सवाल पूछे जाते हैं. इसके बाद उसके अपराध से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं. जब इंसान कोई अपराध किये होता है और वो झूठ बोल रहा होता है तो उसके जवाब और शारीरिक लक्षणों में कुछ परिवर्तन आता है. मशीन के जरिये इन बदलावों को देखा जाता हैं और उसके जवाब देने के अंदाज से एक नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.
झूठ बोलने पर क्या होता है: पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान जब जवाब देने वाला शख्स अगर झूठ बोलता है तो उसके शारीरिक गतिविधियों में बदलाव आने लगती है. झूठ बोलने के समय शख्स का हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, नाड़ी की दर घटती-बढ़ती है. उसके माथे पर पसीना आने लगता है. हथेलियों भी पसीने से भीग जाती है. सवाल के दौरान इन सिग्नलों को रिकॉर्ड किया जाता है. इसके पता चलता है कि जिससे सवाल पूछा जा रहा है वो इंसान झूठ बोल रहा है या सच.
कैसे पता चला है कि इंसान झूठ बोल रहा है: सवाल-जवाब के दौरान अगर इंसान झूठ बोल रहा होता है तो उसका हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, में बदलाव आता है. जबकि, सच बोलने पर शख्स की शारीरिक गतिविधियां सामान्य रहती है. वही, झूठ बोलने पर इंसान के दिमाग से P300 (P3) सिग्नल निकलता है. इस सिग्नल के कारण उसका हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ जाता है. इसके बाद बढ़े हुए प्रेशर को सामान्य दरों से मिलाया जाता है, इससे आंका जाता है कि जवाब सच है या झूठ. इसी कारण पॉलीग्राफ टेस्ट से पहले आरोपी का मेडिकल टेस्ट किया जाता है ताकि उसके सामान्य धड़कन, खून का दबाव और नाड़ी दर का सही सही आकलन किया जाये.
क्या पॉलीग्राफ टेस्ट को कोई चकमा दे सकता है: अब सवाल है कि क्या कोई शख्स पॉलीग्राफ टेस्ट को चकमा दे सकता है. गौरतलब है कि शारीरिक बदलाव के जरिये इस टेस्ट से सच का पता लगाया जा सकता है. हालांकि ये जरूरी नहीं कि जो नतीजे आएंगे वो 100 फीसदी सही होगा. इस टेस्ट पर 100 फीसदी भरोसा नहीं किया जा सकता है. अगर सवाल-जवाब देने के क्रम में कोई शख्स हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, पल्स रेट को किसी तरह सामान्य रख लेता है तो वो आसानी से झूठ बोलकर भी बच सकता है. हालांकि इसके बहुत ज्यादा संभावना है कि कोई ऐसा नहीं कर सकेगा.
गौरतलब है कि आफताब पूनावाला को दिल्ली पुलिस ने 12 नवंबर को दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में एक किराये के फ्लैट से गिरफ्तार किया था. आफताब पर श्रद्धा वालकर की हत्या का आरोप लगा था. पुलिस ने कहा था कि आफताब ने श्रद्धा वालकर की गला घोंटकर हत्या कर दी है. यहीं नहीं हत्या के बाद उसके शव के करीब 35 टुकड़े कर उसे घर में 300 लीटर के फ्रिज में करीब तीन सप्ताह तक रखा. इसके बाद उसके कटे हुए टुकड़े को शहर के विभिन्न इलाकों में फेंकता रहा.
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