National Tribal Dance Festival में अफ्रीकी मूल की सिद्दी जनजाति, 850 साल पुराना है इनका इतिहास, जानें
बता दें कि अफ्रीकी मूल के सिद्दी जनजाति 850 साल पहले भारत आए थे. भारत में रहने वाले अफ्रीकी लोगों के बारे में लोगों को कम ही जानकारी है. भारत के पश्चिमी तट पर जम्बुर (गुजरात का एक गांव) जैसे गांव में ये लोग अभी भी रह रहे हैं. इनके पूर्वज अफ्रीकी थे जो लड़ाके, व्यापारी और नाविक के रूप में यहाँ आए थे.
National Tribal Dance Festival: छत्तीसगढ़ के रायपुर में राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव के तीसरे संस्करण का आयोजन किया जा रहा है. इस कार्यक्रम का उद्घाटन बीते गुरुवार को राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपस्थिति में की गयी. इस कार्यक्रम के आयोजन में देश विदेश के कई जनजातियों के लोगों ने अपनी संस्कृति दिखायी. इस दौरान अफ्रीकी मूल के सिद्दी जनजाति ने रायपुर में राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव में अपने सांस्कृतिक नृत्य का प्रदर्शन किया.
बता दें कि अफ्रीकी मूल के सिद्दी जनजाति 850 साल पहले भारत आए थे. भारत में रहने वाले अफ्रीकी लोगों के बारे में लोगों को कम ही जानकारी है. भारत के पश्चिमी तट पर जम्बुर (गुजरात का एक गांव) जैसे गांव में ये लोग अभी भी रह रहे हैं. इनके पूर्वज अफ्रीकी थे जो लड़ाके, व्यापारी और नाविक के रूप में यहाँ आए थे. पूर्वी व दक्षिणी अफ्रीकी और भारत में गुजरात के साथ समुद्री व्यापार दो हज़ार साल पहले स्थापित हुआ था.
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि लाखों अफ़्रीकी लोगों ने समुद्र पार कर इधर का रुख किया था. अफ्रीकी-भारतीय लोग सिदी (शीदि) कहलाते हैं. सिद्दी समुदाय के लोक कलाकार ने कहा कि हमारी संस्कृति अफ्रीकी हो सकती है लेकिन हमारा दिल भारतीय है. लगभग 850 साल पहले, हमारे पूर्वज अफ्रीका से आए और अफ्रीकी संस्कृति को साथ लाए और यहां बस गए. हमारा समूह अभी भी संस्कृति को जीवित रख रहा है. अब हम सिर्फ भारतीय हैं. भारत जैसा कोई देश नहीं.
छत्तीसगढ़ के रायपुर में 3 दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव बस्तर की ‘गोडना’ टैटू कला जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. युवाओं में टैटू बनवाने को लेकर स्याही लगाने के लिए भारी भीड़ को आकर्षित करता है. बता दें कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रायपुर में राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव में भाग लिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य उत्सव के पीछे का उद्देश्य यह है कि देश के विभिन्न हिस्सों से आदिवासी यहां इकट्ठा हों. हम पिछले 3 साल से ऐसा कर रहे हैं. इस तरह के त्यौहार उन्हें आर्थिक रूप से आगे बढ़ने और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद करते हैं.