सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई शुरू की. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एस के कौल, जस्टिस एस आर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं. सुनवाई के दौरान गर्मागम बहस भी हुई.
सीजेआई ने कहा- पांच साल में चीजें काफी बदल गयीं
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, पांच साल में चीजें काफी बदल गयी हैं. उन्होंने कहा, जैविक पुरुष और महिला की पूर्ण अवधारणा जैसी कोई चीज नहीं है.
समलैंगिक विवाह का कपिल सिब्बल ने किया विरोध
समलैंगिक विवाह को कानून मान्यता का विरोध करते हुए कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में सवाल किया कि अगर शादी टूट गई तो क्या होगा? उन्होंने कहा, जिस बच्चे को गोद लिया है उसका क्या होगा? इस मामले में उस बच्चे का पिता कौन होगा? उन्होंने कहा, मामले में राज्यों को सुना जाना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC को अवगत कराया कि केंद्र ने याचिका की पोषणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए एक याचिका दायर की है.
A five-judge Constitution Bench headed by the Chief Justice of India DY Chandrachud begins hearing a batch of petitions seeking legal recognition of same-sex marriage pic.twitter.com/WWRG9lmMAQ
— ANI (@ANI) April 18, 2023
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की याचिका पर विचार करने की बात दोहराई
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, सजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम में कोई कानूनी कमी नहीं है और सवाल सामाजिक-कानूनी मंजूरी देने का नहीं है. उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि कोई भी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं करेगा.उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण के प्रावधान हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च को सुनवाई के लिए मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के भेजा
गौरतलब है कि समलैंगिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च को इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजा था. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया था.
केंद्र ने कोर्ट से कहा था कि अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए
केंद्र सरकार ने सुप्रीक कोर्ट से कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए. केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाहों की कानूनी वैधता ‘पर्सनल लॉ’ और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी.
क्या है मामला
दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने के उनके अधिकार के क्रियान्वयन और विशेष विवाह कानून के तहत उनके विवाह के पंजीकरण के लिए संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर न्यायालय ने पिछले साल 25 नवंबर को केंद्र से अपना जवाब देने को कहा था.