21,500 फीट की ऊंचाई से माउंट एवरेस्ट के सामने छलांग लगाने वालीं दुनिया की पहली महिला शीतल महाजन
देश की मशहूर ‘स्काइडाइवर’ शीतल महाजन ने माउंट एवरेस्ट के सामने 21,500 फीट की ऊंचाई से छलांग लगा कर इतिहास रच डाला है. इसके साथ ही ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला बन गयी हैं.
कहते हैं कि अगर इंसान ठान ले, तो बड़े से बड़े काम आसानी से कर सकता है, फिर चाहे पहाड़ पर चढ़ना या आसमान से छलांग लगाना ही क्यों न हो. हालांकि, यह आसान काम नहीं है. मगर वास्तव में जो सभी संघर्षों को पार करके बुलंदियों तक पहुंचता है, दुनिया उसी को सलाम करती है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है देश की मशहूर ‘स्काइडाइवर’ शीतल महाजन ने. हाल ही में देश की जानी-मानी ‘स्काइडाइवर’ शीतल महाजन ने माउंट एवरेस्ट के सामने 21,500 फीट की ऊंचाई से छलांग लगाकर एक बार फिर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया है. ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला बन गयी हैं. दरअसल, देश के चौथे सर्वोच्च पुरस्कार ‘पद्मश्री’ से सम्मानित और कई स्काइडाइविंग रिकॉर्ड धारक 41 वर्षीया महाजन ने 13 नवंबर, 2023 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के सामने वाले हिस्से में स्काइडाइविंग पूरी की. इससे पहले 11 नवंबर को शीतल ने 17,500 फीट की ऊंचाई से अपनी पहली छलांग लगायी. वह न्यूजीलैंड के मशहूर ‘स्काइडाइवर’ वेंडी स्मिथ के साथ विमान में उनके प्रशिक्षक के रूप में काम करते हुए सयांगबोचे हवाई अड्डे पर 12,500 फुट की ऊंचाई पर सफलतापूर्वक उतरी थीं. फिर 12 नवंबर, 2023 को उन्होंने आठ हजार फीट से सयांगबोचे हवाई अड्डे पर भारतीय तिरंगा फहराया. इसके बाद 13 नवंबर को माउंट एवरेस्ट के पास 21,500 फीट से स्काइडाइविंग पूरी कर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर दिया. अपनी इस कामयाबी से आज वह उन बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी गयी हैं, जो इस तरह के साहसिक खेलों में आगे आना चाहती हैं.
सबसे पहले सहेली के बड़े भाई से मिली स्काइडाइविंग की प्रेरणा
शीतल महाजन का जन्म 19 सितंबर, 1982 को महाराष्ट्र के पुणे में ममता महाजन और टाटा मोटर्स में कार्यरत इंजीनियर कमलाकर महाजन के घर हुआ था. उनकी पढ़ाई पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में हुई, जहां से उन्होंने जियोलॉजी में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. शीतल बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थीं, ताकि उनके परिवार व देश का नाम रोशन हो. स्काइडाइविंग के क्षेत्र में वह कैसी आयीं, इसको लेकर वह वह बताती हैं, ‘‘स्काइडाइविंग जैसे साहसिक क्षेत्र में आने की प्रेरणा मुझे सबसे पहले कमांडर कमल सिंह ओबड से मिली. जब मैं साल 2000 में अपने घर के पास वाले प्रेस की दुकान से कपड़े लेने गयी थी, तो मेरी नजर एक न्यूजपेपर के फोटो पर गयी. न्यूज पेपर में कमांडर कमल सिंह ओबड की फोटो छपी थी. कमल उस वक्त पुणे के एनडीए में तैनात थे.’’ शीतल आगे कहती हैं, ‘‘कमांडर कमल सिंह ओबड मेरी सहेली के बड़े भाई थे. इसके चलते अक्सर मैं उनसे बात करते रहती थी. मैंने उसी समय कमल से फोन पर बात कर अखबार में फोटो छपने की वजह पूछी. इसपर उन्होंने मुझे खबर पढ़ने को कहा. वे कहती हैं, उस वक्त मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी. ऐसा कहकर मैंने फोन काट दिया.’’ बाद में मालूम पड़ा कि कमल पहले भारतीय थे, जिन्होंने नॉर्थ पोल व साउथ पोल पर स्काइडाइविंग की थी. इसलिए उनकी फोटो न्यूजपेपर पर छपी थी. उसी दिन से शीतल महाजन ने ठान लिया कि मुझे, तो बस स्काइडाइवर ही बनना है. इसके बाद से ही वह पैरा जंपिंग का ख्वाब बुनने लगीं.
2004 में आर्टिक सर्कल पर अपनी जिंदगी की पहली स्काइडाइव की
अपने सपने को साकार करने के लिए शीतल ने सबसे पहले भारतीय नौसेना में चलने वाले प्रशिक्षण में हिस्सा लेने की कोशिश की, लेिकन नौसेना के अधिकारियों ने उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया. हालांकि, बाद में तत्कालीन भारतीय राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से वह स्काइडाइविंग और पैरा जंपिंग में प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हो गयीं.
दो साल के प्रयास और जिद के बाद शीतल ने
14 अप्रैल, 2004 को आर्टिक सर्कल पर अपनी जिंदगी की पहली स्काइडाइव की. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.15 दिसंबर 2006 को, शीतल महाजन ने ट्विन ओटर विमान से 11600 फीट की ऊंचाई से माइनस 38 डिग्री सेल्सियस के ठंडे तापमान में अंटार्कटिका के सफेद महाद्वीप के दक्षिणी ध्रुव पर जीवन की पहली त्वरित फ्री फॉल पैराशूट जंप की. इसके साथ ही दोनों ध्रुवों पर स्काइडाइव की. इसके बाद महज 23 साल की उम्र में यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह सबसे कम उम्र की महिला भी बन गयीं.
पुणे में की फीनिक्स स्काइडाइविंग अकादमी की शुरुआत
स्काइडाइवर शीतल महाजन ने पुणे में फीनिक्स स्काइडाइविंग अकादमी की शुरुआत की, जहां लोगों को प्रशिक्षण देकर स्काइडाइविंग प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करती हैं. विंगसूट जंप करने वाली पहली भारतीय महिला शीतल महाजन एक यूएस प्रमाणित ए,बी,सी और डी स्काइडाइवर और ट्रेनर हैं. वह उस टीम का हिस्सा थीं, जिसने अंटार्कटिका के ऊपर फ्री फॉल पैराशूट जंप करने वाली पहली टीम के रूप में विश्व रिकॉर्ड बनाया था. उन्होंने एक घंटे में अधिकतम टेंडेम जंप का रिकॉर्ड हासिल करने के लिए 85 भारतीय स्काइडाइवरों की एक टीम का भी नेतृत्व किया है, यह जंप 25 अगस्त 2014 को स्पेन में किया गया था. वहीं, 19 अप्रैल, 2009 को 13000 फीट से लगायी गयी उनकी छलांग भी महिला वर्ग में ऊंचाई का एक रिकॉर्ड है. उन्हें हॉट एयर बैलून से 5800 फीट की ऊंचाई से फ्री फॉल जंप और 24000 फीट की ऊंचाई से छलांग लगाने का भी श्रेय प्राप्त है.
साल 2001 में मिला पद्मश्री सम्मान
शीतल ने अपनी कामयाबी से भारत का नाम विश्वस्तर पर रोशन किया है. इसके लिए उन्हें गोदावरी गौरव पुरस्कार, शिव छात्रपति महाराष्ट्र राज्य खेल विशेष पुरस्कार और वेणुताई चव्हाण युवा पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. साल 2004 में नॉर्थ पोल में स्काइडाइविंग करने के लिए महाजन को तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जिसे वह यह पुरस्कार पाने वाली पहली नागरिक बनीं. वहीं, साल 2001 में उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
शीतल के रिकॉर्ड
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अबतक अपने नाम 17 नेशनल और 6 से ज्यादा इंटरनेशनल रिकॉर्ड कर चुकी हैं शीतल.
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दुनियाभर में लगा चुकी हैं अबतक 704 छलांगें.
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अप्रैल, 2004 में एडवेंचर स्पोर्ट्स के तहत शीतल का डाइविंग सफर हुआ था शुरू.
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नॉर्थ पोल पर माइनस 37 डिग्री टेम्परेचर में 2400 फीट से भी लगा चुकी हैं छलांग.
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2016 में एंटार्टिका में 11,600 फीट से जंप किया, ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली यंगेस्ट महिला हैं.
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