जयंती विशेष: मानवीय मनोभावों के अदभुत शिल्पकार थे राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त

हिन्दी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्रों में से एक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी के एक भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण काव्यानुरागी परिवार में 1886 में हुआ था. संस्कृत, बांग्ला, मराठी आदि कई भाषाओं का अध्ययन इन्होंने मुख्यतया घर पर ही किया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 3, 2021 11:58 AM

जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं।

वह हृदय नहीं पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”

हिन्दी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्रों में से एक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी के एक भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण काव्यानुरागी परिवार में 1886 में हुआ था. संस्कृत, बांग्ला, मराठी आदि कई भाषाओं का अध्ययन इन्होंने मुख्यतया घर पर ही किया. तत्पश्चात् आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के संपर्क में आने से इनकी काव्य रचनाएं प्रतिष्ठित ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं. द्विवेदी जी की प्रेरणा और सान्निध्य से इनकी रचनाओं में गंभीरता तथा उत्कृष्टता का विकास हुआ. इनके काव्य राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हैं.

गांधी दर्शन से खासे प्रभावित गुप्त ने स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया और असहयोग आंदोलन में जेल यात्रा भी की. 1930 में महात्मा गांधी ने उन्हें साहित्य साधना के लिए ‘राष्ट्र कवि’ की उपाधि दी. हिन्दी भाषा की विशिष्ट सेवा के लिए आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें 1948 में डी. लिट् की उपाधि से अलंकृत किया.

“साकेत” नामक प्रबंध काव्य परंपरा इनको मंगला प्रसाद पारितोषिक भी प्राप्त है. हिंदी साहित्य में योगदान के लिए भारत सरकार ने देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पदम विभूषण से नवाजा. स्वतंत्रता के बाद पहले राज्य सभा के सर्वप्रथम मनोनीत सदस्य होने का गौरव प्राप्त राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु 1964 में हुई.

रामकथा को दिया नया परिवेश

अपने कवि जीवन में गुप्त ने कई विशिष्ट काव्य रचनाएं की. “साकेत” आधुनिक युग का एक अति प्रसिद्ध महाकाव्य है. साहित्य समीक्षक ईशनाथ झा कहते हैं कि साकेत में लीक से हटकर गुप्त ने रामकथा को एक नए परिवेश में चित्रित कर उपेक्षित उर्मिला के चरित्र और अनुपम त्याग को रेखांकित किया है. नवीन और अलग दृष्टिकोण से रची गई इस रचना ने जनमानस को बहुत प्रभावित किया.

इनकी बहुचर्चित “यशोधरा” एक चंपू काव्य है, जिसमें गद्य और पद्य दोनों का समावेश होता है. यह काव्य गौतम बुद्ध के जीवन चरित पर आधारित है, जिसमें बुद्ध द्वारा परित्यक्त पत्नी यशोधरा के विरह दुख का मार्मिक चित्रण है. रामकथा पर ही आधारित “पंचवटी” एक अद्भुत उपदेशात्मक काव्य है, जहाँ सीता तथा राम के पंचवटी प्रवास का वर्णन है.

“जयद्रथ वध” महाभारत कथा पर आधारित है, जिसमें ओज, शौर्य और युद्धकला का जीवंत वर्णन मिलता है. “भारत-भारती” गुप्तजी की सर्वप्रथम खड़ी बोली की राष्ट्रीय रचना है, जिसमें देश की अधोगति का अत्यंत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्ररत है.

श्री झा कहते हैं कि इस काव्य रचना ने आते ही धूम मचा दी थी और राष्ट्रीय साहित्यिक पटल पर गुप्त को स्थापित कर दिया था. “नहुष”, “मेघनाद वध”, “स्वप्नवासवदत्ता” ( अनूदित) , “वीरांगना” आदि अन्य रचनाएं भी काव्यशास्त्रीय दृष्टाकोण से सर्वतोभावेन सुंदर कृतियां हैं.

राष्ट्रप्रेम से समाज सुधार तक रहे वर्ण्य-विषय

मैथिलीशरण गुप्तजी की कविताओं में वर्ण्य-विषय मुख्यत: भक्ति, राष्ट्रप्रेम, भारतीय संस्कृति और समाज सुधार हैं. इनकी धार्मिकता में संकीर्णता का आरोप नहीं किया जा सकता, बल्कि इनकी धार्मिकता समग्रता और व्यापकता पर आधारित है. ये भारतीय संस्कृति के सच्चे पुजारी हैं और सांस्कृतिक परंपराओं के अक्षुण्ण रखने के प्रबल पक्षधर. इसलिए इन सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण से असंतुष्ट और दुखी हो जाते हैं.

साहित्य प्रणयन इनके लिए लोक-सेवा का ही एक माध्यम है. इनके हृदय में नारी जाति के लिए अपार श्रद्धा, आदर और सहानुभूति परिलक्षित होता है इनकी रचनाओं में. राष्ट्रप्रेम इनके शब्द-शब्द में कूट-कूटकर भरा है. इनकी राष्ट्रीयता पर गांधीवाद की पूरी छाप है. आजादी के आंदोलन के बाद जब देश हिंदू मुस्लिम मतभेद से जूझ रहा था, तब उनकी लिखी ‘काबा और कर्बला’ ने लोगों के अंतर्मन को झकझोर दिया.

इनकी रचनाओं में समाज सुधार का दृष्टिकोण भी दिखता है. इनके प्रकृति चित्ररत में सरसता और जीवंतता है जो इनके संस्कृत साहित्य के अध्ययन का प्रभाव इंगित करता है. मानवीय मनोभावों के चित्रण में इन्हें विशेष दक्षता प्राप्त है. संवादों की अभिव्यक्ति अत्यंत सरल और तर्क-व्यंग्य से मुक्त है.

हिंदी साहित्य में खड़ी बोली के कवि

मैथिली शरण गुप्त की भाषा शुद्ध परिष्कृत खड़ी बोली है, जिसमें सरसता और मधुरता स्वममेव आ गयी है. संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग इनका वैशिष्ट्य है. शब्द-संचयन में ये कुशल हैं. मुहावरों और लोकोक्तियों के सटीक प्रयोग ने इनकी रचनाओं को एक नयी ऊंचाई दी है. भाषा में प्रसाद गुण की प्रधानता है.

इनके काव्य में वीर, रौद्र, हास्य, आदि सभी रसों का सुंदर परिपाक हुआ है. इन्होंने नवीन और प्राचीन दोनों तरह के छंदों का विपुल प्रयोग किया है, जिसमें हरिगीतिका इनका प्रिय छंद प्रतीत होता है. इनके काव्य में उपमा, रूपक, श्लेष, अनुप्रास अलंकारों का प्राधान्य है. विशेषण विपर्यय ( transferred epithet) तथा मानवीकरण (personification) अलंकारों का प्रयोग इन्हें आधुनिक बनाता है.

कीर्त्तिर्यस्य स जीवति ….

मैथिली शरण गुप्त आधुनिक हिंदी साहित्य जगत के अनुपम रत्न हैं और सही अर्थों में राष्ट्रकवि हैं. इन्होंने अपनी प्रेरणादायक और उद्बोधक कविताओं से राष्ट्रीय जीवन में जिस चेतना का संचार किया वह लंबे समय तक स्मरण रखा जाएगा.

हिंदी साहित्य में योगदान के लिए 59 वर्षों में उन्होंने ने हिंदी को लगभग 74 रचनाएं दी, जिनमें दो महाकाव्य, 17 गीतिकाव्य, 20 खंड काव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य शामिल हैं. उनके संबंध में महादेवी वर्मा ने लिखा है, ‘अब तो भगवान के यहां वैसे साँचे ही टूट गये, जिनसे दद्दा जैसे लोग गढ़े जाते थे।’कीर्त्तिर्यस्य स जीवति …….!

Posted by Ashish Jha

Next Article

Exit mobile version