डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से हजारों भारतीय छात्र को छोड़ना होगा अमेरिका
अमेरिकी आव्रजन प्राधिकार ने घोषणा की है कि उन विदेशी छात्रों को देश छोड़ना होगा या निर्वासित होने के खतरे का सामना करना होगा जिनके विश्वविद्यालय कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस सेमेस्टर पूर्ण रूप से ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करेंगे .
झवाशिंगटन/न्यूयॉर्क : अमेरिकी आव्रजन प्राधिकार ने घोषणा की है कि उन विदेशी छात्रों को देश छोड़ना होगा या निर्वासित होने के खतरे का सामना करना होगा जिनके विश्वविद्यालय कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस सेमेस्टर पूर्ण रूप से ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करेंगे.
इस कदम से सैकड़ों-हजारों भारतीय छात्र प्रभावित होंगे. आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) ने सोमवार को घोषणा की कि 2020 में पड़ने वाले सेमेस्टर में पूरी तरह से ऑनलाइन चलने वाले स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र पूर्ण ऑनलाइन पाठ्यक्रम का लाभ लेकर अमेरिका में नहीं रह सकते हैं.
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आईसीई ने एक प्रेस विज्ञप्ति में सितंबर से दिसंबर के सेमेस्टर का संदर्भ देते हुए कहा गया, ‘‘ अमेरिकी विदेश मंत्रालय उन छात्रों के लिए वीजा जारी नहीं करेगा जिनके स्कूल या पाठ्यक्रम शरदऋतु के सेमेस्टर में पूरी तरह ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित कर रहे हैं और अमेरिकी सीमा शुल्क एवं सीमा सुरक्षा इन छात्रों को अमेरिका में दाखिल होने की अनुमति भी नहीं देगी.”
एजेंसी ने अमेरिका में पढ़ रहे ऐसे छात्रों को उन स्कूलों में तबादला कराने का सुझाव दिया, जहां कक्षाएं परिसर में आमने-सामने आयोजित की जा रही हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाई करने वाले ये छात्र एफ-1 वीजा पर यहां आते हैं. वहीं अमेरिका में वोकेशनल या अन्य मान्यता प्राप्त गैर-शैक्षणिक संस्थानों में तकनीकी कार्यक्रमों में दाखिला लेने वाले छात्र (भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम से इतर) एम -1 वीजा पर यहां आते हैं.
‘स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम’ (एसईवीआईपी) की 2018 ‘सेविस बाई नंबर रिपोर्ट’ के अनुसार अमेरिका में 2017 में चीन के सबसे अधिक 4,78,732 छात्रों के बाद 2,51,290 भारतीय छात्र थे. वहीं, वर्ष 2017 से 2018 के बीच अमेरिका पढ़ने आए भारतीय छात्रों की संख्या में 4157 की बढ़ोतरी हुई.
आव्रजन एजेंसी ने कहा कि मौजूदा समय में सक्रिय छात्र जो अमेरिका में इन पाठ्यक्रमों में पंजीकृत है उन्हें अपने देश लौट जाना चाहिए या वैधता बनाए रखने या आव्रजन नियमों के तहत संभावित कार्रवाई से बचने के लिए अन्य उपाय जैसे उन स्कूलों में स्थानांतरण कराना चाहिए जहां पारंपरिक कक्षाओं में पढ़ाई हो रही है.
अंतरराष्ट्रीय छात्रों के अमेरिका में रहने की अर्हता को बताते हुए आईसीई ने कहा कि छात्रों को संघीय कानून के अंतर्गत चल रही स्कूलों में पांरपरिक कक्षाओं में पढ़ाई करनी होगी. आईसीई ने कहा, ‘‘योग्य एफ छात्र अधिकतम एक कक्षा या तीन क्रेडिट घंटे ऑनलाइन ले सकते हैं.”
गैर आव्रजक एफ-1 छात्र जो हाइब्रिड मॉडल- ऑनलाइन और पारंपरिक कक्षा समिश्रण- के तहत अध्ययन कर रहे हैं उन्हें एक से अधिक कक्षाएं या तीन क्रेडिट घंटे ऑनलाइन लेने की अनुमति होगी. स्कूलों को यह प्रमाणित करना होगा कि ‘स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम के तहत पाठ्यक्रम पूरी तरह से ऑनलाइन नहीं है और छात्र 2020 के आगामी सेमेस्टर में सभी कक्षाएं ऑनलाइन नहीं लेगा, छात्र न्यूनतम ऑनलाइन कक्षाएं लेगा जो उसके डिग्री कार्यक्रम की समान्य प्रगति के लिए जरूरी है.
आईसीई ने कहा कि उपरोक्त रियायत अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम में पंजीकृत एफ-1 छात्रों और वोकेशनल डिग्री की पढ़ाई कर रहे एम-1 श्रेणी के छात्रों पर लागू नहीं हो जिन्हें ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में पंजीकृत कराने की अनुमति नहीं है. इस दिशानिर्देश से यहां पढ़ रहे हजारों छात्रों में चिंता और निश्चितता घर कर गई है और वे छात्र भी चिंतित है जो सितंबर में शुरू हो रहे अकादमिक सत्र के लिए अमेरिका आने की तैयारी कर रहे हैं. ट्रम्प प्रशासन ने कोरोना वायरस की महामारी के बीच अमेरिकी आव्रजन में कई बदलाव किए हैं.
उन्होंने 22 जून को आदेश जारी कर 31 दिसंबर तक विदेशी कामगारों के आने पर रोक लगा दी. इसमें एल-1, एच-1बी, एच-2बी और जे-1 वीजाधारक शामिल हैं. हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अध्यक्ष लैरी बकाउ ने बयान में कहा, ‘‘हम आईसीई द्वारा जारी दिशानिर्देशों को लेकर चिंतित है जो काफी कुंद लगता है… अंतरराष्ट्रीय छात्रों खासतौर पर ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में पंजीकृत छात्रों को देश छोड़ने या स्कूल बदलने के इतर सीमित विकल्प देता है.”
अमेरिकी सीनेटर एलिजाबेथ वारेन ने ट्वीट किया, ‘‘ अंतरराष्ट्रीय छात्रों को महामारी के समय बाहर निकाला जा रहा है क्योंकि कॉलेज सामाजिक दूरी कायम रखने के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की ओर बढ़ रहे हैं और इससे छात्रों को परेशानी होगी. यह मनमाना, क्रूर और विदेशियों के प्रति भय का नतीजा है. आईसीई और आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय को इस नीति को तुरंत वापस लेना चाहिए.”
Posted By – Pankaj Kumar Pathak