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Super Earth: धरती खत्म हो जाएगी तो कहां रहेंगे हमलोग! यह ग्रह हो सकता है इंसानों का अगला ठिकाना

Super Earth: 6.6 करोड़ साल पहले जुरासिक एज में धरती से जीवन तबाह हो गया था. आने वाले समय में भी ऐसा हो सकता है. इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में इंसानों को अपना वजूद कायम रखना है तो उन्हें अपने लिए दूसरा ठिकाना भी तलाश करना होगा. ब्रह्मांड में ऐसे कई ग्रह हैं जो धरती से मिलते जुलते हैं. अगर किसी कारण पृथ्वी पर जीवन को खतरा होता है तो हमें किसी एक्सोप्लैनेट में ही अपना ठिकाना बनाना होगा.

Super Earth: नासा को अगर आज पता चले कि जुलाई 2038 में एक एस्टेरॉयड धरती से टकरा सकता है, और इसके पृथ्वी से टकराने की संभावना 72 फीसदी से भी ज्यादा है. 13 साल बाद आने वाली आफत से बचाव का धरती के लोगों के पास क्या विकल्प होगा. दरअसल, कुछ समय पहले नासा ने ऐसी ही आपदा को लेकर एक मॉक टेस्ट किया था. नासा के जॉन हॉपकिंस अप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी में दुनियाभर के 25 से ज्यादा संगठनों के करीब 100 एक्सपर्ट्स जुटे थे. इस इवेंट में इस बात पर चर्चा हुई थी कि अगर कोई एस्टेरॉयड 13 साल बाद धरती से टकराने आ रहा है तो हम बचाव में क्या-क्या कदम उठा सकते हैं. इस मॉक टेस्ट की रिपोर्ट नासा ने 20 जून 2024 को प्रकाशित की थी, जिसमें वैज्ञानिकों ने कई उपाय सुझाए. बहरहाल यह महज एक मॉक टेस्ट था, लेकिन अगर सच में ऐसी कोई बड़ी आपदा आती है तो धरती का क्या होगा? यह सवाल वैज्ञानिकों को लंबे समय से परेशान कर रहा है.

अंतरिक्ष के खतरे को नहीं कर सकते नजरअंदाज

अंतरिक्ष से अलग-अलग तरह के एस्टेरॉयड के आने और इसके धरती से टकराने के खतरे को हम नजर अंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि करोड़ों साल पहले ऐसा हो चुका है. अब से 66 मिलियन साल पहले जुरासिक एज में धरती से एक एस्टेरॉयड की टक्कर हुई थी. इस टक्कर में धरती के सबसे बड़े जीव एस्टेरॉयड समेत कई जानवरों की पूरी प्रजाति खत्म हो गई थी. तबाही यहीं नहीं रुकी थी उस समय के पेड़ पौधे, वनस्पति, वातावरण सब एस्टेरॉयड के कारण खत्म हो गए थे. मतलब साफ है जो एक बार हो चुका है वो दोबारा भी हो सकता है. अंतरिक्ष से आने वाले खतरे को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या एक बार फिर धरती से जीवों का समूल नाश हो सकता है? क्या कभी ऐसा होगी कि धरती इंसानों के रहने लायक नहीं बचेगी? क्या आज की विकसित मानव सभ्यता डायनोसॉर्स की तरह खत्म हो जाएगी.

हमें दूसरे ग्रहों और सौर मंडलों में बसना होगा

वैज्ञानिक यह बात मानते हैं कि एक न एक दिन धरती से जीवन खत्म हो सकता है. दुनिया के सबसे महानतम साइंटिस्टों में से एक स्टीफन हॉकिंग ने अपनी किताब ‘ब्रीफ आंसर्स टू द बिग क्वेश्चन’ में धरती और इस पर बसे इंसानों के जीवन से जुड़े कई जरूरी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की है. इसी किताब में उन्होंने कई भविष्यवाणियां और दावे भी किए हैं. उन्हीं दावों में से एक है कि कोई अंतरिक्षीय दुर्घटना पूरी पृथ्वी का विनाश कर सकती है. मानवों को इसे नजर अंदाज नहीं करना चाहिए. स्टीफन ने यह भी लिखा है कि अंतरिक्ष जितना शांत दिखता है असल में यह उतना शांत  है नहीं. अंतरिक्ष में भारी उथल-पुथल है. यहां तारे हैं, ब्लैक होल है, वाइट होल समेत न जानें और कितने बड़े-बड़े ऑब्जेक्ट हैं जो दूसरे तारों, सोलर सिस्टम यहां तक की एक गैलेक्सी तक को निगल जाते हैं. कॉस्मिक किरणें पल भर में किसी ग्रह को तबाह कर सकती हैं. बड़े-बड़े नगर और शहर के जितने बड़े उल्का पिंड हजारों किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से घूम रहे हैं. अगर इनमें एक का भी रुख धरती की तरफ हो जाता है तो हमारा विनाश निश्चित है.

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इंसानों को ढूंढ़ना होगा दूसरा ठिकाना

जाने-माने साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग ने इस बात पर जोर दिया है कि … ‘एक दिन धरती खत्म हो जाएगी. पृथ्वी के सारे संसाधन खत्म हो जाएंगे. ऐसे में समय रहे इंसानों को अपने लिए दूसरा ठिकाना तलाश कर लेना चाहिए.’

इंसानों के पास क्या है विकल्प

धरती का अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष के आया कोई एस्टेरॉयड या किसी भी और कारण से अगर हमारी धरती पर कोई संकट आता है तो इंसानों के पास अपना वजूद बचाने का क्या उपाय होगा. बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग काफी पहले से ही ऐसे किसी खतरे को लेकर आगाह करते  रहे हैं. कई और स्पेस साइंटिस्ट ने अपने-अपने तरीके से बचाव के उपाय बताएं हैं.  उन सबसे एक बात समान है कि सभी इस बात पर जोर देते है कि किसी कारण से धरती तबाह होती है तो हमें अंतरिक्ष में  किसी दूसरे ग्रह पर खुद के लिए ठिकाना ढूंढना होगा. यह आसान नहीं है लेकिन इस दिशा में अभी से प्रयास शुरू कर देने चाहिए.

क्या चांद पर इंसान बना सकता है नया ठिकाना!

अगर किसी कारण इंसानों को धरती छोड़ने की नौबत आई तो क्या मनुष्य क्या चांद पर कॉलोनी बना सकते हैं. आज से पांच  दशक पहले अपोलो 11 के जरिए पहली बार इंसानों ने चांद पर कदम रखा था. उसके बाद से ही वैज्ञानिक चांद पर बस्ती बसाने का सपना संजो रहे हैं. कई लोगों ने तो चांद पर प्लॉट भी खरीद चुके हैं. सुनने में भले ही ये अटपटा लगे लेकिन वैज्ञानिक चांद पर इंसानी बस्ती बसाने की कोशिश में  काफी समय से लगे हुए हैं. हालांकि धरती की अपेक्षा छह गुना हल्के वातावरण और चंद्रमा की जटिल परिस्थितियों में मनुष्यों का जीवन कैसे संभव होगा  इसपर हर दिन रिसर्च चल रहा है. वैज्ञानिकों ने चांद पर पानी होने का पता लगा लिया है. अनुमान है कि चांद की सतह के नीचे करोड़ों लीटर पानी है, जो बर्फ के रूप में हैं. ऐसे में  क्या वहां धरती जैसा वातावरण कायम किया जा सकता है. इस पर लंबे समय से वैज्ञानिक  प्रयास कर रहे हैं.  हालांकि अभी यह मुमकिन नहीं हो पाया है, लेकिन आने वाले समय में चांद पर ठिकाना बनाने  में वैज्ञानिक कामयाब हो सकते हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.  

मंगल ग्रह पर इंसानी बस्ती बनाने की तैयारी

चांद के अलावा मंगल ग्रह में भी इंसान अपना अगला ठिकाना तलाश रहे हैं. कई वैज्ञानिकों का दावा है कि कभी लाल ग्रह पर जीवन था. यहां पानी के बड़े-बड़े जलाशय और समुद्र थे. लेकिन, पारिस्थितिकी तंत्र के बदलने से लाल ग्रह बंजर हो गई. तो क्या धरती के इंसान सौर मंडल के इस लाल ग्रह को हरा-भरा कर सकते हैं. नासा ने अपने मंगल मिशन में कई चीजों का पता लगाया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि मंगल की सतह के नीचे प्रचुर मात्रा में पानी है. हालांकि अभी तक मंगल पर इंसानों को नहीं भेजा जा सका है, लेकिन जिस गति से विज्ञान प्रगति कर रहा है उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले सालों में इंसान मंगल पर भेजे जा सकते  हैं. वहां इंसानी बस्ती भी बसाई जा सकती है.

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सौर मंडल के दूसरे ग्रह बन सकते हैं इंसानों का नया ठिकाना

हैबिटेबल ग्रहों की तलाश में नासा

नासा समेत कई स्पेस एजेंसी भविष्य में इंसानों की बस्ती बसाने के लिए दूसरे हैबिटेबल ग्रहों की खोज में लंबे समय से लगे हैं. इतने विशाल अंतरिक्ष में अभी तक कुछ ऐसे ग्रहों का पता चला है जहां धरती की तरह वातावरण और पानी मौजूद हो सकता है. इसके अलावा वो हैबिटेबल जोन में भी मौजूद हो, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है. हैबिटेबल जोन वो इलाका होता है जहां सूर्य से दूरी न कम हो और न ज्यादा हो. जीवन पनपने के लिए एक अनुकूल माहौल, जैसे धरती और सूरज के बीच की दूरी है. नासा ने कई ऐसे ग्रहों को खोजा है जो धरती से इतने मिलते-जुलते हैं इन्हें सुपर अर्थ कहा जाता है. ये ऐसे एक्सोप्लैनेट है जहां पानी के साथ धरती की तरह वातावरण होने की संभावना हो सकती है.

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कहां रह सकते हैं इंसान!

ट्रैपिस्ट-1 e एक्सोप्लैनेट

नासा ने जितने हैबिटेबल जोन वाले एक्सोप्लैनेट की खोज की है उनमें से एक है ट्रैपिस्ट-1e, इसके 2MASS J23062928-0502285 e के नाम से भी जाना जाता है. यह एक चट्टानी, पृथ्वी के आकार का एक्सोप्लैनेट है जो अल्ट्रा कूल बौने तारे ट्रैपिस्ट-1 की परिक्रमा कर रहा है. अपने तारे के यह भी हैबिटेबल जोन में मौजूद है. ट्रैपिस्ट- 1e कुंभ राशि के तारामंडल में मौजूद है. इसकी दूरी पृथ्वी से 40.7 प्रकाश वर्ष यानी 385  ट्रिलियन किलोमीटर है.

ग्लिसे 12 बी एक्सोप्लैनेट

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरिक्ष दूरबीन की सहायता से ग्लीज 12 बी की खोज की है. यह एक सुपर अर्थ एक्सोप्लैनेट है. यह पृथ्वी से करीब 40 प्रकाश वर्ष दूर मीन राशि में स्थित है. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह एक छोटे और ठंडे लाल बौने तारे ग्लीज 12 की परिक्रमा करता है. ग्लीज 12 बी को पृथ्वी जैसा तापमान वाला ग्रह माना जाता है. वैज्ञानिकों की मत है कि यहां जीवन पनपने के अनुकूल माहौल है.

प्रोक्सिमा सेंचुरी एक्सोप्लैनेट

वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक ऐसे तारा का पता लगाया है तो हमारे सूरज से सबसे नजदीक के तारों में से एक है. इसका नाम है प्रोक्सिमा सेंचुरी है. इसकी दूरी धरती से 4 प्रकाश वर्ष है. एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रोक्सिमा सेंचुरी के चारों ओर चक्कर लगा रहा एक ग्रह प्रोक्सिमा सेंचुरी बी आने वाले समय में मनुष्यों का ठिकाना बनाया जा सकता है. प्रोक्सिमा सेंचुरी बी ग्रह अपने तारे के हैबिटेबल जोन में परिक्रमा कर रहा है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इसमें पानी तरल रूप में हो सकता है.

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Super earth: धरती खत्म हो जाएगी तो कहां रहेंगे हमलोग! यह ग्रह हो सकता है इंसानों का अगला ठिकाना 5

कैप्लर 452B एक्सोप्लैनेट

धरती से करीब 1400 प्रकाश वर्ष दूर वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ग्रह खोजा है जो देखने में  बिल्कुल  धरती के जैसा है. कई वैज्ञानिक इसे धरती की जुड़वां बहन तक कहते हैं. इस ग्रह का नाम कैप्लर 452बी है. यह ग्रह की सबसे खास बात यह है कि यह अपने तारे की उतनी ही दूरी से परिक्रमा करता है जितनी दूरी से पृथ्वी सूर्य का करती है. हालांकि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस ग्रह की ग्रेविटी पृथ्वी के दोगुनी है. कैप्लर 452बी अपने स्टार की परिक्रमा 384 दिनों में पूरा करता है. हैबिटेबल जोन में होने के कारण इस पर  भी जीवन की कल्पना की जा सकती है.  

स्पेस ट्रैवल कितनी बड़ी चुनौती

क्या कभी इंसान दूसरे ऐसे ग्रह में जाकर जीवन की शुरुआत कर सकता है. फिलहाल के लिए इसका जवाब है हरगिज नहीं. स्पेस ट्रैवल फिलहाल इंसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. अपने सबसे नजदीकी ग्रह मंगल में अभी तक इंसान भेजने का सपना पूरा नहीं हो पाया है. ऐसे में दूसरे एक्सोप्लैनेट पर यान को भेजना फिलहाल के लिए कोरी कल्पना ही है. दूसरे  ग्रहों में जीवन बसाने में सबसे बड़ी बाधा उसकी दूरी है. कैप्लर से धरती की दूरी 1400 लाइट इयर है.  इसे किलोमीटर में मापे तो यह 13 हजार खरब किलोमीटर होगी. अगर हम इस ग्रह पर वायजर 1 से जाएं तो हमें वहां पहुंचने में 2 करोड़ 30 लाख साल लग जाएंगे. ऐसे में किसी एक्सोप्लैनेट पर इंसानों को बसाने  का सपना फिलहाल दूर की कौड़ी है. हालांकि, वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर इंसानों की पहुंच बनाने को लेकर  तेजी से काम कर रहे हैं. उम्मीद है एक दिन किसी इंसान के कदम लाल ग्रह में भी पहुंचेंगे. 

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