UP Madarsa Act: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, यूपी मदरसा एक्ट वैध, हाई कोर्ट के फैसले को पलटा

UP Madarsa Act: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा एक्ट को संविधान के मुताबिक माना है. मुख्य न्यायाधीश धनंजय डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा के बीच संतुलन पर ध्यान देने की बात कही है.

By Aman Kumar Pandey | November 5, 2024 1:57 PM

UP Madarsa Act: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा एक्ट को संवैधानिक करार दिया है. 3 जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम मानते हैं कि यूपी मदरसा एक्ट (UP Madarsa Act) पूरी तरह से संविधान के मुताबिक है. इसलिए इसकी मान्यता खारिज नहीं की जा सकती. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर कहा कि मदरसों में उचित सुविधाओं के साथ-साथ पढ़ाई का ख्याल रखा जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि मदरसा एक्ट जिस भावना और नियम के अनुसार बनाया गया था, उसमें कोई खामी नहीं है. इसलिए मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार देना ठीक नहीं है. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा ऐक्ट को असंवैधानिक करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने बीते 22 अक्टूबर को सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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मुख्य न्यायाधीश धनंजय डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा के बीच संतुलन पर ध्यान देने की बात कही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के विनियमन यानी ( रोकने या नियत्रंण) का उद्देश्य मदरसा सिस्टम को खत्म करने के बजाय उसका समर्थन करना होना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि 2004 का मदरसा कानून एक विनियामक एक्ट है. इसे संविधान के अनुच्छेद 21A के प्रावधानों के मुताबिक समझा जाना चाहिए, जो एजुकेशन के संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित करता है.

कांग्रेस नेता ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने पर कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा, “मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करता हूं. संविधान अल्पसंख्यकों को अपने मदरसे और विश्वविद्यालय जैसे संस्थान बनाने और उन्हें अपनी इच्छानुसार चलाने की अनुमति देता है – यह संविधान में बहुत स्पष्ट रूप से लिखा है. इसके बावजूद, अगर कोई कोर्ट या सरकार ऐसा फैसला देती है जो संविधान के खिलाफ है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है.”

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