नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का कारण बन रही पराली के जलाने पर रोक संबंधी निगरानी और उचित कदम उठाने के लिए सेवानिवृत्त जस्टिस मदन बी लोकुर की एक सदस्यीय कमेटी गठित की है. यह कमेटी पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाये जाने की घटनाओं के संबंध में अपनी रिपोर्ट दुर्गापूजा की छुट्टियों के बाद सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी. हालांकि, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पराली जलाने की घटनाओं पर नजर रखने के लिए न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) लोकुर की अगुवाई में एक सदस्यीय समिति बनाने का विरोध किया.
Supreme Court appoints Justice (retd) Madan B Lokur, a former judge of the top court, to act as the one-man monitoring committee to prevent stubble burning in states of Punjab, Haryana and Uttar Pradesh pic.twitter.com/y3SnZsyI73
— ANI (@ANI) October 16, 2020
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने तृतीय वर्ष के लॉ स्टूडेंट आदित्य दुबे की याचिका में दिये गये सुझाव के परिप्रेक्ष्य में जस्टिस लोकुर की समिति बनायी है. हालांकि, आदित्य दुबे ने जस्टिस लोकुर के साथ-साथ पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को शामिल करने का सुझाव दिया था.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि, ”यह आदेश किसी भी प्राधिकरण के खिलाफ नहीं है. हम केवल इस बात से चिंतित हैं कि दिल्ली एनसीआर के नागरिक ताजा स्वच्छ हवा में सांस लेने में सक्षम हों.” न्यायालय ने सुझाव देते हुए कहा कि एनसीसी, एनएसएस और भारत स्काउट्स एंड गाइड को राज्यों में कृषि क्षेत्रों में जलनेवाली पराली की निगरानी में सहायता के लिए तैनात किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि पंजाब और हरियाणा में पहले से ही मौजूद टीमों को जो पराली जलाने से रोकने के लिए हैं, लोकुर समिति को रिपोर्ट करना और निर्देश लेना होगा. साथ ही कहा कि राज्यों को अपने काम को पूरा करने के लिए समिति को पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए. पीठ ने कहा, ”ईपीसीए सहित सभी प्राधिकरण मांगी गयी सूचना के लिए समिति को रिपोर्ट करेंगे.” पीठ ने कहा, ”हमें विश्वास है कि प्रत्येक उपाय प्रदूषण को कम करने के इरादे से अधिकारियों द्वारा लिया गया है.”
याचिकाकर्ता व कानून के छात्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत को बताया कि अगर यह याचिका 23 नवंबर को पराली जलाने से संबंधित एमसी मेहता के मामलों में सूचीबद्ध की गयी, तो बहुत देर हो जायेगी. उन्होंने कहा, ”उस समय तक, हम स्मॉग से उबर जायेंगे.” जैसा कि पराली जलाने का सीजन आ चुका है. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि पराली जलाने का दिल्ली के वायु प्रदूषण में लगभग 40-45 फीसदी तक योगदान होता है. इसलिए वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर इस साल के दौरान खास तौर से कोविड-19 महामारी के दौरान पराली जलाने से खतरनाक स्तर पर ना पहुंचे.
साथ ही बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में ”स्वच्छ जीवन के अधिकार” में स्वच्छ वायु का अधिकार भी मौलिक अधिकार का एक अभिन्न अंग है और हर साल पराली जलाने के मौसम सितंबर से जनवरी की अवधि के दौरान दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के स्तर को खतरनाक स्तर से नीचे रखने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की विफलता से उक्त मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है.”