नयी दिल्ली : पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उम्रकैद की सजा निलंबित करने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने छह सप्ताह के लिए टाल दिया है. मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के अनुरोध पर यह सुनवाई टाल दी.
मालूम हो कि साल 1990 में हिरासत में मौत मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को जामनगर अदालत ने 2019 में उम्रकैद की सजा सुनायी थी. इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी. हाईकोर्ट ने भी जामनगर अदालत के फैसले को स्थगित करने से इनकार कर दिया था. उसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई कर रही पीठ को जून 2019 के आदेश के खिलाफ लंबित पुनर्विचार याचिका पर ध्यान आकृष्ट कराया. उन्होंने कहा कि ट्रायल में अतिरिक्त गवाह बुलाने की संजीव भट्ट की याचिका खारिज करने पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गयी थी. मालूम हो कि उन्होंने याचिका में आरोप लगाते हुए कहा है कि मेरे गवाहों को नहीं बुलाया गया है.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि 300 गवाहों में से मात्र 37 गवाहों को बुलाया गया. कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि संजीव भट्ट की याचिका रद्द किये जाने के बाद पुनर्विचार याचिका दाखिल की गयी थी. पहले पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने का सुझाव दिये जाने के बाद मामले की सुनवाई छह सप्ताह के लिए टाल दी गयी. साथ ही उन्होंने मामले की सुनवाई खुली अदालत में करने की मांग की.
मालूम हो कि भारत और अमेरिका के कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और संगठन संजीव भट्ट के समर्थन में आगे आ गये हैं. इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल और हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स जैसे संगठनों और कार्यकर्ताओं ने हिरासत में मौत मामले में कहा है कि संजीव भट्ट की दोष सिद्धि गलत है और झूठे सबूतों पर आधारित है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता और नृत्यांगना मल्लिका साराभाई ने भी समर्थन देते हुए कहा है कि केवल संजीव भट्ट के मामले में ‘निश्चित एजेंडा’ नहीं चलाया जा रहा, बल्कि ”मोदी सरकार के अधिकतर आलोचकों के साथ ऐसा ही हो रहा है.”