सुप्रीम कोर्ट ने 10 फीसदी EWS कोटा के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा, ‘बहुमत के विचार ने आरक्षण को “न केवल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए, बल्कि किसी भी वर्ग या वर्ग को इस तरह से वंचित करने के लिए शामिल करने के लिए एक साधन” के रूप में वर्णित किया.’
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि फैसले में प्रत्यक्ष रूप से कोई खामी नजर नहीं आती है.
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सात नवंबर, 2022 को तीन-दो के बहुमत से फैसला देते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के संवैधानिक प्रविधान 103वें संविधान संशोधन को सही ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट में करीब एक दर्जन याचिकाएं दाखिल हुईं थीं जिनमें ईडब्लूएस आरक्षण को सही ठहराने वाले फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गई थी.
आपको बताएं, जनवरी 2019 में संविधान में किए गए 103वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) को जोड़ा गया था. इसके जरिए सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए विशेष व्यवस्था बना सकती है. इसके बाद सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीबों को नौकरी और उच्च शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था बनाई. इसे सुप्रीम कोर्ट में 30 से अधिक याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई थी.
तीनों जजों ने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पहले से आरक्षण पा रहे SC, ST और OBC के लिए तय की थी. नया 10 प्रतिशत आरक्षण सामान्य वर्ग को दिया गया है. ऐसे में इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं कहा जा सकता है. जजों ने यह भी कहा था कि इस 10 प्रतिशत आरक्षण में SC, ST और OBC का कोटा तय करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह वर्ग पहले से आरक्षण का लाभ ले रहा है. चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट का फैसला अल्पमत का रहा था. उन्होंने कहा था कि गरीबी के आधार पर आरक्षण देते समय SC, ST और OBC के गरीबों को भी उसमें शामिल किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. यह भेदभाव है और संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.
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