देश के सर्वोच्च अदालत ने एक सुनवाई के दौरान कहा कि जब एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से शादी वादा करके शादी नहीं करता तो बलात्कार का आरोप हर मामले में लागू नहीं होता. शीर्ष अदालत के कहा कि यदि शादी का झूठा वादा करके कोई शारीरिक संबंध बनाता है तो ऐसे हर मामले को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है. न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की एक पीठ ने एक सुनवाआ के दौरान यह कहा.
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप के 30 वर्षीय व्यक्ति के मामले में सुनवाई के दौरान यह कहा. बता दें कि मामला उत्तर प्रदेश के मथुरा का है. जहां मार्च 2018 में अपनी प्रेमिका द्वारा उस व्यक्ति के खिलाफ पहली सूचना निरस्त (एफआईआर) दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि डेढ़ साल के रिश्ते के बाद उसने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था. महिला ने उस पर उसे धोखा देने और शादी का झूठा वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया था.
अप्रैल 2018 में उस शख्स के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई थी, जिसमें एफआईआर को रद्द करने के लिए उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा गया था. आरोपी ने मजिस्ट्रेट को महिला के बयान का हवाला दिया कि वह अपनी स्वतंत्र इच्छा के संबंध में थी और किसी भी तथ्य के बारे में किसी भी तरह के धोखे या गलत धारणा का कोई सवाल नहीं था. आरोपी ने कहा कि उससे शादी करने का उनका वादा वास्तविक था, लेकिन वह परिस्थितियों में बदलाव के मद्देनजर और अपने माता-पिता के विरोध के कारण ऐसा नहीं कर सका.
वहीं कुछ दिनों पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप में सहमति से शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी में रखने से इनकार किया है. अदालत ने कहा कि अगर लंबे वक्त तक चले रिश्ते में सहमति से सेक्स होता है और पुरुष महिला से शादी करने का अपना वादा नहीं निभा पाता तो इसे रेप नहीं कहा जा सकता.