अगर किसी चुनाव में नोटा जीत जाती है तो क्या होगा ? एक जनहित याचिका में इसी सवाल का जवाब जानने की कोशिश की गयी है. इस सवाल का जवाब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा है. अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एक जनहित याचिका में यह सवाल किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 4 सप्ताह का समय दिया है जिसके भीतर इस सवाल का जवाब देना अनिवार्य है.
अश्विनी उपाध्याय का प्रितिनिधित्व करते हुए सीनियर अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा, नोटा का अर्थ वोटर की ओर से उम्मीदवार को रिजेक्ट करना होता है. अगर किसी उम्मीदवार से ज्यादा नोटा को वोट मिलता है तो चुनाव दोबारा होना चाहिए.
इस संबध में मेनका गुरुस्वामी से सवाल किया गया कि ‘समस्या यह है कि यदि किसी राजनीतिक पार्टी का वोटर्स पर अच्छा प्रभाव है और उसके कैंडिडेट्स को रिजेक्ट कर दिया जाता है तो फिर संसद ही नहीं चल पाएगी.
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यदि कई उम्मीदवार रिजेक्ट कर दिए जाते हैं तो फिर वे निर्वाचन क्षेत्र खाली रह जाएंगे. फिर आप कैसे संसद का संचालन कर पाएंगे?’ इस सवाल पर जवाब देते हुए मेनका ने कहा, चुनाव आयोग की ओर से भी कहा गया है कि यदि कहीं NOTA के ज्यादा वोट रहते हैं तो फिर दोबारा चुनाव कराए जाएंगे. ‘
मेनका ने कहा, इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है अभी अगर नोटा जीतता है तब भी उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है. उन्होंने राइट टू रिजेक्ट का जिक्र करते हुए कहा, इससे राजनीतिक दलों में थोड़ा डर आयेगा और अच्छे उम्मीदवारों को चुनाव में टिकट देंगे. उन्हें नोटा के जीतने का डर होगा.
इस संबंध में कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ- साथ चुनाव आयोग से भी जवाब मांगा है. इस जनहित याचिका में चुनाव आयोग को अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने की सिफारिश की गयी है. आर्टिकल 324 के तहत नोटा में वोट ज्यादा होने पर चुनाव को रद्द कर देना चाहिए. इस अर्जी में यह भी अपील की गयी है कि उन उम्मीदवारों को दोबारा चुनाव में टिकट नहीं दिया जाना चाहिए.