‘मुस्लिम महिला पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार’, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या बोले मौलाना

Supreme Court ने बुधवार को फैसला सुनाया कि एक मुस्लिम महिला आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-125 के तहत अपने शौहर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.

By ArbindKumar Mishra | July 10, 2024 10:12 PM
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Supreme Court ने साथ ही कहा कि सीआरपीसी का यह धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होता है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखती हों. जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी. जस्टिस नागरत्ना ने कहा,हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा-125 सभी महिलाओं के संबंध में लागू होगी. दोनों न्यायाधीशों ने अलग लेकिन समवर्ती आदेश दिए. पीठ ने कहा कि पूर्ववर्ती सीआरपीसी की धारा-125 के दायरे में मुस्लिम महिलाएं भी आती हैं. यह धारा पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार से संबंधित है.

भरण-पोषण दान नहीं, बल्कि हर शादीशुदा महिला का अधिकार

पीठ ने जोर देकर कहा कि भरण-पोषण दान नहीं, बल्कि हर शादीशुदा महिला का अधिकार है और सभी शादीशुदा महिलाएं इसकी हकदार हैं, फिर चाहे वे किसी भी धर्म की हों. उसने कहा, मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को सीआरपीसी की धारा-125 के धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान पर तरजीह नहीं दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका खारिज कर दी. हाई कोर्ट ने गुजारे भत्ते के संबंध में परिवार अदालत के फैसले में दखल देने का समद का अनुरोध ठुकरा दिया था. समद ने दलील दी थी कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है और अदालत को मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू करना होगा.

कोर्ट के फैसले पर क्या बोले मौलाना

मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कोलकाता (पश्चिम बंगाल) की नखोदा मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद शफीक कासमी ने कहा, शरीयत में पहले से ही एक कानून है, पहले से ही एक व्यवस्था है कि जो कोई भी अपनी पत्नी को तलाक देता है, उसे ‘महर’ देता है, 3 महीने की इद्दत का खर्च देता है. कुरान कहता है – अपनी हैसियत के हिसाब से उसे तोहफा दो और सम्मानपूर्वक विदा करो. यह गुजारा भत्ता वाली बात इस्लामी शरीयत के खिलाफ है. इस्लाम में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. यह पुरुषों पर ज्यादती होगी. अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुना दिया है, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. सभी को इसे स्वीकार करना होगा. लेकिन हम कह सकते हैं कि यह फैसला शरीयत कानून के खिलाफ है.

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