गुजरात में 20 साल पहले नौकरी से बर्खास्त किए गए चौकीदार फिर होंगे बहाल, सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश

भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एसआर भट की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट की एक खंड पीठ के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उन्हें बहाल करने के निर्देश को रद्द कर दिया गया था और करीब एक लाख रुपये का मुआवजा अदा करने का आदेश दिया गया था.

By KumarVishwat Sen | September 23, 2022 11:12 PM

नई दिल्ली : आज से करीब 20 साल पहले गुजरात के जिस चौकीदारों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था, वे दोबारा बहाल किए जाएंगे. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो दशक पहले दिसंबर 2002 में नौकरी से बर्खास्त कर दिए गये एक चौकीदार को बहाल करने का शुक्रवार को आदेश दिया. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि प्रबंधन को उसे कष्ट देने के लिए ‘निष्ठुर कोशिशें’ नहीं करनी चाहिए थी. अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि श्रम अदालत ने अगस्त 2010 में जेके जडेजा की बर्खास्तगी को अवैध करार दिया था और कच्छ जिला पंचायत को उन्हें पिछले वेतन के बगैर सेवा की निरंतरता के साथ बहाल करने का निर्देश दिया था.

भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एसआर भट की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट की एक खंड पीठ के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उन्हें बहाल करने के निर्देश को रद्द कर दिया गया था और करीब एक लाख रुपये का मुआवजा अदा करने का आदेश दिया गया था.

पीठ ने जिक्र किया कि प्रबंधन ने श्रम अदालत के फैसले को चुनौती दी थी लेकिन गुजरात हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश की एक पीठ ने मई 2011 में उसके फैसले को बरकरार रखा तथा व्यक्ति को बहाल करने का निर्देश दिया था. बाद में, प्रबंधन ने एक अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया और इसके बाद उसने शीर्ष न्यायालय का रुख किया था. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यदि प्रबंधन ने फैसला स्वीकार कर लिया होता, तो वादी को 10 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ता.

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पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए कहा कि वादी को आज से छह महीने के अंदर सेवा में बहाल किया जाए और सेवा की निरंतरता रखने के श्रम अदालत और एकल न्यायाधीश के निर्देश का क्रियान्वयन किया जाए. बता दें कि जडेजा को प्रतिवादी सोसाइटी ने पांच अक्टूबर 1992 को चौकीदार नियुक्त किया था और वह गुजरात के बेराजा गांव स्थित शिराई बांध पर चौकीदार के रूप में तैनात थे.

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