Supreme Court: MANUU के पूर्व चांसलर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला खारिज, SC ने लगाया एक लाख रुपये हर्जाना
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने MANUU के पूर्व चांसलर फिरोज अहमद बख्त के खिलाफ मानहानि का मामला रद्द कर दिया है. साथ ही शिकायतकर्ता को एक लाख रुपये देने और बिना शर्त माफीनामा प्रकाशित करने का आदेश दिया है.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 14 अक्टूबर को मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) के पूर्व चांसलर फिरोज अहमद बख्त के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला रद्द कर दिया है. साथ ही इस मामले में स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के पहले पन्ने पर बड़े अक्षरों में बिना शर्त माफी प्रकाशित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने MANUU के स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म के पूर्व डीन, प्रोफेसर एहतेशाम अहमद खान के खिलाफ यौन शोषण को लेकर टिप्पणी की थी. कोर्ट ने फिरोज बख्त के बेतुके आरोपों के कारण प्रोफेसर एहतेशाम को हुई मानसिक पीड़ा के लिए 4 सप्ताह के भीतर 1 लाख रुपये का प्रतीकात्मक हर्जाना देने का भी आदेश दिया है.
बता दें, कथित तौर पर साल 2018 में फिरोज बख्त ने तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय में दो छात्राओं के यौन उत्पीड़न और अपमान के आरोपों के संबंध में प्रोफेसर एहतेशाम अहमद पर आरोप लगाया था. इसके बाद प्रोफेसर एहतेशाम अहमद ने फिरोज बख्त के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का मामला दायर किया था. जिसमें उन्होंने आरोप लगाया गया था कि विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति को उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने के बावजूद भी ये टिप्पणियां की गईं.
वही साफ तौर पर ये भी जाहिर हो चुका है कि अपनी बातों से विवाद में रहने वाले फिरोज़ बख्त ने आपसी विवाद के कारण प्रोफेसर एहतेशाम अहमद पर आरोप लगाए थे, जिससे उनकी छवि को खराब किया जा सके. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस वीके विश्वनाथन की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 19 सितंबर को बिना शर्त माफी मांगी है और पिछली कार्यवाही के अनुसार, वे इसे अखबार में प्रकाशित करने के लिए भी तैयार हैं. उन्होंने अदालत को सूचित किया कि बयान भावनात्मक रूप से दिए गए थे. मखीजा ने कहा, हम बयान वापस लेने को तैयार हैं. याचिकाकर्ता की समझौता करने की इच्छा को देखते हुए, न्यायालय ने सभी कार्यवाही रद्द कर दी और उन्हें हर्जाना देने का निर्देश दिया.