नई दिल्ली : पीठीसीन पदाधिकारी के साथ कथित दुर्व्यवहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के निलंबित 12 विधायकों के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है. विधानसभा सत्र के दौरान पीठासीन पदाधिकारी के साथ कथित तौर पर दुर्व्यहार करने के मामले में इन विधायकों को एक साल के लिए विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था. इससे पहले, सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने इन विधायकों के निलंबन का उद्देश्य और प्रबल कारण पूछा था. इसके साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि असली मुद्दा यह है कि निर्णय कितना तर्कसंगत है.
Supreme Court reserves order on a plea of 12 BJP MLAs from Maharashtra challenging their one-year suspension from the state Legislative Assembly for allegedly misbehaving with the presiding officer pic.twitter.com/e4XixrHXSY
— ANI (@ANI) January 19, 2022
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक साल के लिए विधानसभा से निलंबन निष्कासन से भी बदतर है, क्योंकि इसके परिणाम बहुत भयानक हैं और इससे सदन में प्रतिनिधित्व का किसी निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार प्रभावित होता है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने महाराष्ट्र की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए सुंदरम से कहा कि निर्णय का कोई उद्देश्य होना चाहिए. एक प्रबल कारण होना चाहिए, जिससे कि उसे (सदस्य) अगले सत्र में भी भाग लेने की अनुमति न दी जाए. मूल मुद्दा तर्कसंगत निर्णय के सिद्धांत का है.
सुनवाई के दौरान सुंदरम ने अदालत के समक्ष राज्य विधानसभा के भीतर कामकाज पर न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे के मुद्दे पर दलील दी थी. उन्होंने कहा कि सदन में जो हो रहा है, उसकी न्यायिक समीक्षा घोर अवैधता के मामले में ही होगी, अन्यथा इससे सत्ता के पृथककरण के मूल तत्व पर हमला होगा.
सुंदरम ने कहा कि अगर मेरे पास दंड देने की शक्ति है, तो संविधान, कोई भी संसदीय कानून परिभाषित नहीं करता है कि सजा क्या हो सकती है. यह विधायिका की शक्ति है कि वह निष्कासन सहित इस तरह दंडित करे, जो उसे उचित लगता हो. निलंबन या निष्कासन से निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व से वंचित होना कोई आधार नहीं है.
पीठ ने कहा कि संवैधानिक तथा कानूनी मानकों के भीतर सीमाएं हैं. इसने कहा, “जब आप कहते हैं कि कार्रवाई तर्कसंगत होनी चाहिए, तो निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए और और उद्देश्य सत्र के संबंध में होना चाहिए. इसे उस सत्र से आगे नहीं जाना चाहिए. इसके अलावा, कुछ भी तर्कहीन होगा. असली मुद्दा निर्णय के तर्कसंगत होने के बारे में है और यह किसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए. पीठ ने कहा कि कोई प्रबल कारण होना चाहिए. एक साल का आपका निर्णय तर्कहीन है, क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक समय तक प्रतिनिधित्व से वंचित हो रहा है.