निकाय चुनाव में त्रिस्तरीय जांच के बिना ओबीसी को नहीं मिलेगा 27 फीसदी आरक्षण : सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र ने इस अदालत से अन्य पिछड़े वर्गों के संबंध में राज्य के पास पहले से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर चुनाव की अनुमति देने के लिए कहा है. आंकड़ों की जांच करने की बजाय, इन आंकड़ों को राज्य द्वारा नियुक्त आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना उचित कदम होगा, जो इनकी सत्यता की जांच कर सकता है.
नई दिल्ली : स्थानीय निकाय चुनावों में तीन स्तरीय जांच के बिना ओबीसी को अब 27 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर दिसंबर 2021 में दिए गए अपने आदेश को वापस लेने से इनकार करते हुए कहा कि देश के किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) उनके प्रतिनिधित्व की सत्यता की जांच के बिना 27 फीसदी आरक्षण पर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को यह निर्देश भी दिया है कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित आंकड़े अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के समक्ष पेश करे, ताकि इनकी सत्यता की जांच की जा सके और वह स्थानीय निकायों के चुनावों में उनके प्रतिनिधित्व पर सिफारिशें कर सके. सर्वोच्च अदालत ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) को यह निर्देश दिया कि वह राज्य सरकार से सूचना मिलने के दो हफ्ते के अंदर संबंधित प्राधिकारियों को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपे.
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र ने इस अदालत से अन्य पिछड़े वर्गों के संबंध में राज्य के पास पहले से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर चुनाव की अनुमति देने के लिए कहा है. आंकड़ों की जांच करने की बजाय, इन आंकड़ों को राज्य द्वारा नियुक्त आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना उचित कदम होगा, जो इनकी सत्यता की जांच कर सकता है.
पीठ ने कहा कि अगर वह उचित समझे तो राज्य को सिफारिशें करें, जिसके आधार पर राज्य या राज्य चुनाव आयोग आगे कदम उठा सकता है. राज्य सरकार से सूचना या आंकड़े प्राप्त होने के दो हफ्ते के भीतर संबंधित प्राधिकारियों को अगर सलाह दी जाती है, तो आयोग अपनी अंतरिम रिपोर्ट दे सकता है. हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संबंध में राज्य सरकार की ओर से तैयार की जाने वाली सूची केंद्र द्वारा की गई जनगणना से अलग होगी.
पीठ ने कहा कि राज्य उपलब्ध जानकारी और आंकड़े संबंधित आयोग के समक्ष पेश कर सकता है, जो इसकी प्रभावशीलता के बारे में निर्णय ले सकता है और राज्य सरकार को आवश्यकतानुसार सिफारिशें कर सकता है. यह स्पष्ट रूप से ओबीसी श्रेणी के लिए स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण देने से पहले तीन स्तरीय जांच की कवायद को पूरा नहीं करेगा, जो (2010 के फैसले के अनुसार) पूरी की जानी चाहिए थी.
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह टिप्पणी उन विभिन्न राज्यों में लागू होगी, जहां स्थानीय चुनाव होने हैं. उसने कहा कि जब तक तीन स्तरीय जांच पूरी नहीं होगी, तब तक इन सीटों को सामान्य श्रेणी का माना जाएगा. महाराष्ट्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि राज्य के पास कुछ आंकड़े हैं, जिनके आधार पर आरक्षण कायम रखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि मार्च में चुनाव हैं और आंकड़े आयोग के पास पहले से ही मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि आयोग से दो हफ्ते में रिपोर्ट देने के लिए कहा जा सकता है, ताकि सरकार मार्च में होने वाले चुनाव पर काम कर सके. अन्यथा, समुदाय का बड़ा वर्ग प्रतिधिनित्व से वंचित रह सकता है.
मध्य प्रदेश के संबंध में राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराजन ने कहा कि चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश 2021 रद्द कर दिया है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि नया अध्यादेश सर्वोच्च अदालत के निर्देश के मुताबिक होगा. सर्वोच्च अदालत ने 17 दिसंबर 2021 को महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के राज्य चुनाव आयोगों को स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी के तहत फिर से अधिसूचित करने का निर्देश दिया था.