पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स में 100 फीसदी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, एमपी सरकार और एमसीआई से मांगा जवाब
Reservation Post Graduate Medical Courses सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल पाठ्यक्रमों में स्टेट डोमिसाइल स्टूडेंट्स को 100 फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर मध्य प्रदेश सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को नोटिस जारी किया है.
Reservation Post Graduate Medical Courses सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल पाठ्यक्रमों में स्टेट डोमिसाइल स्टूडेंट्स को 100 फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर मध्य प्रदेश सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को नोटिस जारी किया है. राज्य के स्थानीय छात्रों को पीजी में 100 फीसदी आरक्षण देने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गयी है.
न्यूज एजेसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल पाठ्यक्रमों में राज्य के मूल निवासी छात्रों के लिए 100 फीसदी आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार और भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) से जवाब मांगा है.
Supreme Court seeks response from Madhya Pradesh Govt and Medical Council of India (MCI) on a plea challenging 100% reservation for state domicile students in the post-graduate medical courses
— ANI (@ANI) October 2, 2021
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता व मृगांक प्रभारक ने कोर्ट को बताया कि प्रदेश में पीजी मेडिकल कोर्सेस की शत-प्रतिशत सीटें मूल निवासियों के लिए शत प्रतिशत सीटें मूल निवासियों के लिए आरक्षित कर दी गई है. राज्य में अक्टूबर 2021 से 600 से अधिक सीटों पर पीजी मेडिकल कोर्स में प्रवेश के लिए काउंसिलिंग संभावित है. निजी मेडिकल कालेजों में भी सौ फीसदी सीटें प्रदेश के मूल निवासी छात्रों के लिए आरक्षित कर दी गई हैं.
राज्य में निजी मेडिकल कालेजों के संघ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें अदालत ने राज्य सरकार के प्रवेश नियम 2018 को रद करने से इनकार कर दिया था. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में प्रवेश नियमों को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा इस आधार पर किया था कि इसी से मिलता जुलता मुद्दा शीर्ष अदालत की बड़ी पीठ के समक्ष लंबित है. ऐसे में इस मामले का फैसला करना उच्च न्यायालय के लिए उपयुक्त नहीं होगा.