नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 1984 सिख विरोधी दंगा मामले में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को रिकॉर्ड में लिया है. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को 1984 के सिख विरोधी दंगा मामलों में दर्ज किए फर्जी मुकदमे से अवगत कराया. वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने एसआईटी रिपोर्ट का हवाला दिया, जो 29 नवंबर, 2019 को दायर की गई थी. एसआईटी की रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर संख्या 433/84 थाना कल्याणपुरी में दर्ज की गई थी, जबकि पुलिस ने विभिन्न मामलों को जोड़कर 56 लोगों की हत्या के संबंध में चालान भेजा. ट्रायल कोर्ट ने केवल 5 व्यक्तियों की हत्या के संबंध में आरोप तय किए और शेष हत्याओं के संबंध में कोई बदलाव नहीं किया गया.
एसआईटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि गवाहों को अदालत के सामने पेश किया गया और अपने प्रियजनों की हत्याओं के बारे में सबूत दिए, लेकिन चूंकि बाकी हत्यारों और आरोपी व्यक्तियों के संबंध में कोई आरोप तय नहीं किया गया था. इसलिए गवाहों की गवाही बेकार हो गई और किसी को भी दंडित नहीं किया गया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह ज्ञात नहीं है कि केवल 5 हत्याओं के लिए आरोप क्यों तय किए गए, न कि 56 हत्याओं के लिए और ट्रायल कोर्ट ने अपराध की प्रत्येक घटना के लिए मुकदमे को अलग करने का आदेश क्यों नहीं दिया.
एसआईटी रिपोर्ट के अनुसार, इन फाइलों में मिले फैसलों को देखने के बाद पता चलता है कि जब गवाह ने अदालत में कहा कि उसने घटना को देखा है और दोषियों की पहचान की जा सकती है, तो सरकारी वकील ने अदालत में मौजूद कई आरोपी व्यक्तियों में दंगाइयों की पहचान करने के लिए भी नहीं कहा. जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने विशेष जांच दल की रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया और सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी. कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का को भी नोट दाखिल करने का निर्देश दिया. अदालत याचिकाकर्ता एस गुरलाद सिंह कहलों की सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने दंगा पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए एसआईटी के गठन के लिए अदालत के निर्देश की मांग की थी.
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इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की उस याचिका को गुरुवार को खारिज कर दिया, जिसमें उसने 2000 के लाल किला हमले के मामले में मौत की सजा देने के उसके फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी. हमले में सेना के दो जवान सहित तीन लोग मारे गए थे. मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की एक पीठ ने कहा कि उसने ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ पर विचार करने के आवेदन को स्वीकार किया है. पीठ ने कहा कि हम उस आवेदन को स्वीकार करते हैं कि ‘इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड’ पर विचार किया जाना चाहिए. वह दोषी साबित हुआ है. हम इस अदालत द्वारा किए गए फैसले को बरकरार रखते हैं और पुनर्विचार याचिका खारिज करते हैं. आरिफ लाल किले पर 22 दिसंबर 2000 को किए गए आतंकवादी हमले के दोषियों में से एक है.