सुप्रीम कोर्ट ने पालघर में दो साधुओं सहित तीन व्यक्तियों की पीट पीट कर हत्या के मामले में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी के 21 अप्रैल के कथित रूप से मानहानिकारक समाचार कार्यक्रम के सिलसिले में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने से मंगलवार को इन्कार कर दिया. न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ये प्राथमिकी निरस्त कराने के लिये अर्णब गोस्वामी को सक्षम अदालत के पास जाना होगा. हालाकि, पीठ ने अर्णब गोस्वामी को किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से तीन सप्ताह का संरक्षण प्रदान कर दिया है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि प्रारंभिक प्राथमिकी, जो नागपुर में दर्ज हुई थी, के अलावा बाकी सभी प्राथमिकी रद्द करते हुए कहा कि पत्रकारिता की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी का मूल आधार है. नागपुर में दर्ज प्राथमिकी शीर्ष अदालत ने अर्णब गोस्वामी पर कथित हमले की शिकायत के साथ संयुक्त जांच के लिये मुंबई स्थानांतरित कर दी थी.
आपको बता दें कि पालघर में भीड़ द्वारा साधुओं की पीट-पीटकर हत्या के मामले पर एक समाचार शो में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ कथित अपमानजनक बयान को लेकर गोस्वामी के खिलाफ प्राथमिकियां दर्ज कराई गयी हैं.
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न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ गोस्वामी की एक अन्य याचिका पर भी फैसला सुनाएगी जिसमें उनके शो में कुछ बयानों से कथित तौर पर धार्मिक भावनाएं आहत होने के मामले में पुलिस द्वारा दो मई को उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गयी है. शीर्ष अदालत ने 11 मई को निर्देश दिया था कि मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज नयी प्राथमिकी में गोस्वामी के खिलाफ कोई निरोधक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. शीर्ष अदालत ने उनकी दोनों याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
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गोस्वामी ने शीर्ष न्यायालय में दावा किया था कि मुंबई पुलिस ने कथित मानहानि वाले बयानों के संबंध में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में उनसे 12 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की थी और उनके खिलाफ मामले में जांच कर रहे दो अधिकारियों में से एक को कोविड-19 के संक्रमण की पुष्टि हुई है. महाराष्ट्र सरकार ने भी शीर्ष अदालत में आरोप लगाया कि गोस्वामी शीर्ष अदालत द्वारा प्राप्त संरक्षण का दुरुपयोग कर रहे हैं और पुलिस को धमका रहे हैं.
गोस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि पूरा मामला एक राजनीतक दल द्वारा एक पत्रकार को निशाना बनाने का है क्योंकि शिकायती एक पार्टी विशेष के सदस्य हैं.