कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के मामले में पूरे देश में तमिलनाडु टॉप पर, दिल्ली, बिहार और पश्चिम बंगाल सबसे पीछे

पैन इंडिया और लोकसर्किल की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश के करीब-करीब प्रत्येक राज्यों की उस समय पोल खोलकर रख दी, जब मार्च के तीसरे सप्ताह में संक्रमण के नए मामलों की 47,000 की संख्या मई के पहले सप्ताह में बढ़कर 4,12,000 को पार कर गई. संक्रमण के नए मामलों की संख्या में तेजी से होने वाली बढ़ोतरी की वजह से शहरों के ज्यादातर अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं चरमरा गई. देश के अस्पताल कतार में खड़े लोगों को समुचित उपचार में विफल रहे. यहां तक कि अस्पताल तो अस्पताल, श्मशान घाटों पर भी अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बची हुई थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 1, 2021 6:34 PM

नई दिल्ली : कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के मामले में पूरे देश में तमिलनाडु सबसे आगे रहा है, जबकि इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सबसे पीछे रही है. एक सर्वे में कहा गया है कि दूसरी लहर के दौरान पैदा हुए स्वास्थ्य संकट से निपटने में तमिलनाडु ने देश के 17 राज्यों में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है, जब लोग अपने लोगों का इलाज कराने के लिए अस्पताल में बिसतर, ऑक्सीजन, दवा और टेस्ट के लिए दर-दर भटक रहे थे.

पैन इंडिया और लोकसर्किल की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश के करीब-करीब प्रत्येक राज्यों की उस समय पोल खोलकर रख दी, जब मार्च के तीसरे सप्ताह में संक्रमण के नए मामलों की 47,000 की संख्या मई के पहले सप्ताह में बढ़कर 4,12,000 को पार कर गई. संक्रमण के नए मामलों की संख्या में तेजी से होने वाली बढ़ोतरी की वजह से शहरों के ज्यादातर अस्पतालों में बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं चरमरा गई. देश के अस्पताल कतार में खड़े लोगों को समुचित उपचार में विफल रहे. यहां तक कि अस्पताल तो अस्पताल, श्मशान घाटों पर भी अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं बची हुई थी.

चार राज्यों में चुनाव को ठहराया जा रहा जिम्मेदार

सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर महामारी की दूसरी लहर ने भारत और उसके नागरिकों पर विनाशकारी प्रभाव डाला है, जो आने वाले कई सालों तक लोगों को सालता रहेगा. यह बात दीगर है कि पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में कोरोना संक्रमितों की संख्या में अचानक हुई वृद्धि के पीछे मार्च और मई के बीच हुए विधानसभा चुनाव को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

देश के 17 राज्यों में किया गया सर्वे

पैन इंडिया और लोकलसर्किल की ओर से अप्रैल और मई के बाद देश के 17 राज्यों के 383 जिलों में सर्वेक्षण किया गया. इसमें इन जिलों के करीब 38,991 लोगों को शामिल किया गया था. सर्वे के दौरान पूछे गए सवालों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने अपने जवाब में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को सबसे टॉप पर रखा. वहीं, दिल्ली, बिहार और पश्चिम बंगाल को सबसे खराब दर्जा दिया गया.

संक्रमण प्रसार को रोकने के लिए लगाई गईं पाबंदियां

सर्वे रिपोर्ट में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को दूसरी लहर की रोकथाम के लिए कठिन चुनौतियों को सामना करना पड़ा. आलम यह कि संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए राज्य सरकारों को स्थानीय स्तर पर लॉकडाउन और पाबंदियां तक लगानी पड़ीं. सर्वे में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा अनुमोदित परीक्षण सुविधाएं विभिन्न राज्यों में सीमित थीं, जहां आरटी-पीसीआर परीक्षणों की रिपोर्ट तैयार होने में लगभग 3-4 दिन लगते थे, जिससे कई रोगियों को अस्पताल के बिस्तर के बिना आगोश में छोड़ दिया गया था क्योंकि उनके पास सकारात्मक कोविड परीक्षण रिपोर्ट नहीं थी.

संकट के दौर में चरम पर घोटाला और कालाबाजारी

सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि संकट के समय जब देखभाल करने वाले रोगी के लिए सहायता और इलाज के लिए दर-दर भटक रहे थे, तब कई लोग कालाबाजारी और घोटाले का शिकार हो गए. ऐसी आपात स्थिति के दौरान जब मरीज ऑक्सीजन के लिए हांफ रहे थे, कुछ अपराधी एम्बुलेंस सेवा के लिए मरीज की देखभाल करने वालों से मोटी रकम वसूल रहे थे. यहां तक कि ऑटो चालकों ने अस्पताल जाने के लिए लोगों का शोषण किया. अस्पतालों में कोविड रोगी के इलाज के लिए आईसीयू बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर और आवश्यक दवाएं खत्म हो गईं.

सर्वे का क्या है उद्देश्य?

सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों के अनुभव से पता चला कि लगभग हर जिला अस्पताल में कई मरीजों को इलाज के लिए लाइन में लगना पड़ा. आखिरकार, समय पर उपचार की कमी कोविड से संबंधित अधिकांश मौतों का एक प्रमुख कारण बन गई, जिनमें से कुछ का आधिकारिक रिकॉर्ड पर उल्लेख भी नहीं मिला. लोकलसर्किल ने एक बयान में कहा कि सर्वेक्षण का उद्देश्य नागरिकों और सरकार दोनों को यह समझने में मदद करना था कि कहां चीजें गलत हुईं और कोरोना की तीसरी लहर आने की स्थिति में क्या काम करने की जरूरत है, जिसे कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है. कि यह 6-8 सप्ताह में आ सकती है.

Also Read: कोरोना की दो लहरों ने बिहार में मचाई तबाही, तो क्या तीसरी लहर में भी होगी भागमभाग? बचाव का उपाय बता रहे हैं पटना एम्स के निदेशक डॉ पीके सिंह

Posted by : Vishwat Sen

Next Article

Exit mobile version