अबू धाबी संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) की राजधानी है, जहां पहला हिंदू मंदिर बन कर तैयार है. भारत के बाहर यह दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है. इस मंदिर की योजना दो नेताओं- संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनायी थी. आबू धाबी का यह मंदिर इस बात का प्रमाण है कि विगत कुछ वर्षों में भारत-यूएइ के द्विपक्षीय संबंध किस प्रकार आगे बढ़े हैं. रेगिस्तान की सुनहरी रेत के इस शहर में इस मंदिर के निर्माण की परिकल्पना 1997 में तब की गयी थी. दो संस्कृतियों को आपस में जोड़ने का यह सपना तब से आकार लेने की कोशिश में लगा रहा. इसको एक कदम और आगे बढ़ने का मौका तब मिला, जब अगस्त 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर पहली बार वहां पहुंचे. उनकी उपस्थिति में वहां की सरकार ने इस मंदिर निर्माण की अनुमति दी. अबू धाबी में बनकर तैयार भव्य स्वामीनारायण मंदिर के उद्घाटन की तारीख करीब है. 14 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे और 18 फरवरी से यह आम श्रद्धालुओं के खुल जायेगा. अबू धाबी में इस्लाम आधिकारिक धर्म है. आबादी करीब 90 लाख है, जिसमें करीब 20 लाख भारतीय हैं. 2019 में यहां हिंदी को तीसरी आधिकारिक अदालती भाषा का दर्जा मिला. संयुक्त अरब अमीरात में यह पहला हिंदू मंदिर है.
2017 में अबू धाबी के युवराज शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने मंदिर के लिए 27 एकड़ जमीन उपहार में दी. 2018 में यूएइ के दूसरे दौरे पर पहुंचे पीएम मोदी ने पूरे शाही परिवार और 250 से अधिक स्थानीय नेताओं की उपस्थिति में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया. तब पीएम मोदी ने कहा था कि यह मंदिर एक पवित्र स्थान होगा, जो मानवता और सद्भाव की अद्भुत मिसाल होगा. 11 फरवरी, 2018 को पीएम मोदी ने इसका शिला-पूजन किया. 2019 में इस मंदिर ने ‘मैकेनिकल प्रोजेक्ट्स ऑफ द ईयर’ का खिताब जीता, तब से लोग इस मंदिर की भव्यता के कायल हो गये और इसके पूरा होने का इंतजार करने लगे. अब यह मंदिर बन कर तैयार है और इसका उद्घाटन होना है. यह मंदिर 27 एकड़ भूमि में फैला हुआ है. इसमें बेहद नाजुक नक्काशी की गयी है. मंदिर का निर्माण गुलाबी बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से हुआ है. इसके निर्माण पर 700 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आया है. मंदिर का निर्माण बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) के नेतृत्व में हुआ है.
27 एकड़ जमीन पर निर्माण
108 फीट ऊंचाई
12 गुंबद पिरामिड की आकृति में बने हैं
07 शिखर और 410 स्तंभ हैं मंदिर में
1000 साल तक मंदिर रहेगा जस-का-तस
108 फीट चौड़ाई
262 फीट लंबाई
मंदिर में लगे हैं – 40,000 घन मीटर संगमरमर, 180 हजार घन मीटर बलुआ पत्थर, 18 लाख ईंट
सुरक्षा है खास – 100 सेंसर लगे हैं मंदिर की नींव में भूकंपीय गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने के लिए
मौसम पर नजर – 350 से अधिक सेंसर क्षेत्र में होनेवाले तापमान में अंतर व दबाव परिवर्तन का डेटा करेगा रिकॉर्ड
वैदिक वास्तुकला से प्रेरित है डिजाइन, तल में है अभिषेक मंडपम
राम मंदिर की तरह ही लोहे और स्टील का नहीं किया गया है उपयोग
इंटरलॉकिंग पद्धति से संगमरमर के विशाल शिलाओं की फिटिंग
शिव पुराण, भागवत पुराण की कहानियों पर नक्काशी
स्वामीनारायण, वेंकटेश्वर और अय्यप्पा के जीवन का चित्रण
स्वामी नारायण हिंदू मंदिर के भव्य गुंबदों को कहा गया है ‘सद्भाव का गुंबद’
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व अंतरिक्ष को प्रदर्शित करता है गुंबद
यहां एक झरना है, जो गंगा, यमुना व सरस्वती के स्रोत का है प्रतीक
रामकथा-कृष्ण कथा की अभिव्यक्ति
बनारस की तर्ज पर रोज संध्या आरती
गूंजेगी घंटा-ध्वनि, होेंगे शंखनाद
विग्रह के समक्ष जलेंगे दीप, हवन समिधा
आरती की सुरलहरियों से बहेगी भक्तिधारा
आकाश तक लहरायेगा पताका
स्वामीनारायण, अक्षर-पुरुषोत्तम, राम-सीता, लक्ष्मण, हनुमान, शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, राधा-कृष्ण, पद्मावती-वेंकटेश्वर, जगन्नाथ और अय्यप्पा
मंदिर की दीवारों पर रामायण की अलग-अलग कहानियों की नक्काशी की गयी है. एक तरफ राम जन्म, सीता स्वयंवर, राम वनगमन, लंका दहन, राम-रावण युद्ध और भरत-मिलाप जैसे प्रसंगों के दृश्यों को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा गया है. ये दृश्य रामकथा को देखने का सुकून देते हैं. वहीं, हाथी के सुंदर दृश्य भी उकेरे गये हैं, जो भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं. एक तरफ ऊंट हैं, जो कि अरबी संस्कृति को दिखाते हैं, तो वहीं अरबी घोड़े भारत और अरब के बीच के मैत्री संबंध का प्रतीक हैं.
अरब, मिस्र, मेसोपोटामिया और अन्य सभ्यताओं के दृष्टांतों के 14 चित्रण
मंदिर में एकीकृत सात शिखर हैं, जो अमीरात
की एकता का प्रतीक हैं
यूएइ के मूल निवासी, ऊंट, ओरिक्स व बाज जैसे प्रतीकात्मक जानवरों की नक्काशी
सभी प्रतीकोंे को बिना किसी दोहराव के सभी स्तंभों पर उकेरा गया है
अमेरिका, यूके, जर्मनी, जापान, इस्राइल, इटली, कनाडा, आयरलैंड, बहरीन, आर्मेनिया, बांग्लादेश, घाना, चाड, चिली, यूरोपीय यूनियन, फिजी, अर्जेंटीना, साइप्रस, चेक गणराज्य, डोमिनिकन गणराज्य, मिस्र, गाम्बिया समेत अन्य देशों के राजदूत.
यूएइ के सहिष्णुता मंत्री शेख नहयान मुबारक अल नहयान ने कहा कि मंदिर का शिल्प कौशल अद्भुत है, और यह स्थान वैश्विक सद्भाव फैलाने में करेगा मदद.
जापान के राजदूत अकीओ इसोमाटा ने कहा था कि मुझे नक्काशी में सहिष्णुता का दर्शन दिखायी देता है. यूके के उप राजदूत जोनाथन नाइट ने कहा कि इतने सारे अलग-अलग धर्म एक साथ आकर कुछ ऐसा बना रहे हैं, जो पीढ़ियों तक चलेगा.
राजस्थान के कारीगरों ने इस भव्य मंदिर की कल्पना को साकार किया है. इन कारीगरों ने संगमरमर के टुकड़ों को तराश कर मंदिर के स्तंभों के साथ ही भगवान श्रीराम और भगवान गणेश की मूर्तियों का गढ़ा है. इनकी कला को अबू धाबी के पहले हिंदू मंदिर में जगह मिली है. कारीगर राम किशन सिंह ने बताया कि वह तीसरी पीढ़ी के मूर्तिकार हैं. उन्होंने इस मंदिर के लिए 83 टुकड़ों पर काम किया है. मंदिर के अग्रभाग पर बलुआ पत्थर की पृष्ठभूमि पर उत्कृष्ट संगमरमर की नक्काशी है, जिसे राजस्थान और गुजरात के कुशल कारीगरों द्वारा 25,000 से अधिक पत्थर के टुकड़ों से तैयार किया गया है.
इस हिंदू मंदिर का नाम बीएपीएस हिंदू मंदिर है. इसे जिस बीएपीएस संस्था के नेतृत्व में बनाया गया है, उसने दुनियाभर में 1,100 से ज्यादा हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया है. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर का निर्माण भी इसी संस्था ने कराया है.
अबू धाबी में बना पहला हिंदू मंदिर उद्घाटन के लिए तैयार है. मंदिर का निर्माण करानेवाली संस्था बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख स्वामी ब्रह्मबिहारीदास ने बताया कि सद्भाव और सहिष्णुता इस मंदिर की आत्मा है. उन्होंने मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए यूएइ के नेताओं को धन्यवाद दिया है. एक बयान में स्वामी ने यूएइ के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान को बड़े दिल वाला एक सौम्य नेता बताया. उन्होंने बताया कि 2018 में यूएइ के दूसरे दौरे पर पहुंचे पीएम मोदी की मौजूदगी में हमने उन्हें दो योजनाएं दिखायीं. एक पारंपरिक सामान्य इमारत जैसा था. वहीं, दूसरा पत्थर का बना था. हमने उनसे पूछा कि इसमें से कौन-सा बनना चाहिए. इस पर वह मुस्कुरा कर बोले कि मंदिर एक मंदिर की तरह ही बनना चाहिए. उन्होंने कहा कि मंदिर शांति को बढ़ावा देगा और यूएइ व भारत के बीच घनिष्ठ संबंधों का भी प्रतीक होगा. यह मंदिर 27 एकड़ की जमीन पर बनाया गया है, जिसे राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने दान में दी थी. इस मंदिर को भारत के कारीगरों ने बनाया है, जिसे अरबी और हिंदू संस्कृति का प्रतीक माना गया है. मंदिर में सात शिखरों का निर्माण किया गया है, जिसके हर शिखर में देवी-देवताओं की मूर्ति उपस्थित है. मंदिर के निर्माण में राजस्थान के उन्हीं गुलाबी पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है, जिससे अयोध्याधाम में भव्य राममंदिर निर्मित की गयी है. मंदिर में इटली के संगमरमर का भी उपयोग किया गया है. यूएइ की भीषण गर्मी में भी इन पत्थरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. मंदिर की अपनी वेबसाइट www.mandir.ae भी है. इस वेबसाइट पर क्लिक करके मंदिर के बारे में विवरण जान सकते हैं.
इस मंदिर में दो गुंबद और सात शिखर हैं, जो संयुक्त अरब अमीरात (यूएइ) के सात अमीरात के प्रतीक हैं. मंदिर के नीचे के तल में अभिषेक मंडपम बनाया गया है. यहां निजी समारोह होंगे. यहां स्वामी नारायण की प्रतिमा स्थापित है. इसके पास सरस्वती नदी का स्वरूप बनाया गया है, जिसमें अभिषेक का पवित्र जल बहा करेगा.
इस मंदिर परिसर को ज्ञान, अध्यात्म, शांति और मित्रता की दृष्टि से भी विकसित किया गया है. यहां आगंतुक केंद्र, प्रार्थना स्थल, प्रर्दर्शनी, बच्चों के खेलने का स्थान, फूड कोर्ट, किताबें और उपहार की दुकानें भी हैं.
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