मंत्री के बिगड़े बोल, तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा, दोयम दर्जे की नौकरी करते हैं हिंदी भाषी

पोनमुड़ी कोयंबटूर में भरतियार यूनिवर्सिटी के कनवोकेशन में छात्रों को संबोधित कर रहें थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि हिंदी बोलने वाले हमारे यहां पानी-पुरी बेचने का काम करते है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 13, 2022 10:39 PM

तमिलनाडु के उच्च शिक्षामंत्री पोनमुड़ी ने हिंदी भाषा बोलने वालों पर विवादित बयान दिया. पोनमुड़ी कोयंबटूर में भरतियार यूनिवर्सिटी के कनवोकेशन में छात्रों को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि हिंदी बोलने वाले हमारे यहां पानी पुरी बेचने का काम करते है. पोनमुड़ी ने छात्रों को ज्यादा अंग्रेजी को महत्व देने की बात कही. इस मौके पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि भी मौजूद थे.


हिंदी बोलने वाले दोयम दर्जे की करते है नौकरी

उच्च शिक्षा मंत्री ने संबोधन में कहा कि हिंदी बोलने वाले लोग या तो दोयम दर्जे की नौकरी करते हैं. या रेहड़ी पर पानी-पुरी लगाते नजर आते है. हालांकि, उन्होंने तमिल छात्रों कहा कि अगर छात्र हिंदी भाषा को सीखना चाहते हैं तो उनका वैकल्पिक विषय हिंदी होना चाहिए न की अनिवार्य विषय. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 की अच्छी बातों को लागू भी किया जाएगा. तमिलनाडु की सरकार दो भाषा प्रणाली को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.

छात्रों को अंग्रेजी भाषा सीखने की जरुरत

पोनमुड़ी ने प्रश्न करते हुए कहा कि अंग्रेजी एक अंतरराष्ट्रीय भाषा बन चुकी है, तो ऐसे में हिंदी सीखने की कोई जरुरत नहीं. आज हिंदी से कहीं ज्यादा मुल्यवान भाषा अंग्रेजी है. वहीं, उच्च शिक्षा मंत्री ने दावा किया है कि तमिलनाडु राज्य शिक्षा प्रणाली में सबसे आगे है. यहां के छात्र कोई भी भाषा सीखने के लिये तैयार हैं.

भाषा के आधार पर बांटना चाहते है पोनमुड़ी

उच्च शिक्षा मंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमिलनाडु के एक वरिष्ठ मंत्री ने उत्तर भारतीयों को लेकर कुछ टिप्पणी की है, और खास तौर पर हिंदी भाषी लोगों के लिए. हमारे लिए तमिलनाडु भी उतना प्रिय है, और वो प्रगतिशील राज्य है. लेकिन वहां के मंत्री का इस तरह का बयान कि हिंदी बोलने वाले जिंदगी में सिर्फ गोलगप्पे ही बेच पाते हैं. ये बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण बयान है. ऐसे लोगों की मानसिकता दर्शाती है जो देश को बांटना चाहते हैं भाषा के आधार पर. हम इसे कतई स्वीकार नहीं करते हैं और ऐसी भाषा की कड़ी निंदा करते हैं.

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